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महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) के वैज्ञानिक कार्यों की सराहना करने के लिए प्रत्येक वर्ष 12 फरवरी को ‘चार्ल्स डार्विन दिवस ’ (Charles Darwin day) मनाया जाता है। चार्ल्स डार्विन, जिन्हें “प्राकृतिक चयन” (Natural Selection) या 'योग्यतम की उत्तरजीविता' (Survival of the fittest) के सिद्धांत के जनक के रूप में जाना जाता है, का जन्म 12 फरवरी, 1809 को हुआ था। 1859 में डार्विन ने अपनी पुस्तक "ऑन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज़" (On the Origin of Species) प्रकाशित की, जिसमें प्राकृतिक चयन का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया था। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय जीवों के विकास और चयन को समझने तथा इस विषय पर कार्य करने में व्यतीत किया। जैसा कि हम इस माह 12 फरवरी को ‘चार्ल्स डार्विन दिवस’ के करीब आ रहे हैं, तो आइए इस मौके पर उनके प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के बारे में जानकारी प्राप्त करें तथा यह भी जानें कि उनके सिद्धांत से पूर्व विकासवाद के बारे में विभिन्न धर्मों द्वारा क्या विचार प्रस्तुत किए गए थे ?
चार्ल्स डार्विन के प्राकृतिक चयन के सिद्धांत के अनुसार प्रकृति में अनेकों जीव मौजूद हैं, तथा अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इन सभी जीवों के बीच प्रतिस्पर्धा होती रहती है। इन सजीवों में केवल वही सजीव अपने अस्तित्व को बनाए रख पाता है, जो प्रतिस्पर्धा में प्रभावी होता है तथा प्रकृति के अनुरूप अनुकूलन दर्शाता है। जो जीव ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाते हैं, वे नष्ट हो जाते हैं। हालांकि, इस सिद्धांत से पूर्व और बाद में विभिन्न धर्मों ने भी विकासवाद के बारे में अनेकों सुझाव दिए हैं। साथ ही, सभी मानव संस्कृतियों ने दुनिया, मनुष्यों और अन्य प्राणियों की उत्पत्ति के लिए अपनी-अपनी व्याख्याएं विकसित की हैं। पारंपरिक यहूदी धर्म और ईसाई धर्म जीवित प्राणियों की उत्पत्ति और पर्यावरण के प्रति उनके अनुकूलन, जैसे पंख, गलफड़े, हाथ आदि, की व्याख्या एक सर्वज्ञ ईश्वर के हस्तकार्य के रूप में करते हैं।
प्राचीन यूनान (Greece) के दार्शनिकों द्वारा सृजन के बारे में अपनी भिन्न व्याख्याएं व्यक्त की गई थी । यूनानी दार्शनिक एनेक्सीमेंडर (Anaximander) ने प्रस्तावित किया कि जानवरों को एक प्रकार से दूसरे प्रकार में रूपांतरित किया जा सकता है, जबकि एक अन्य यूनानी दार्शनिक एम्पेडोकल्स (Empedocles) ने यह अनुमान लगाया कि वे पहले से मौजूद विभिन्न भागों के संयोजनों से बने थे। वहीं प्रारंभिक चर्च के महान बिशप और अन्य प्रतिष्ठित ईसाई शिक्षकोंजैसे नाजियनज़स (Nazianzus) के ग्रेगरी (Gregory) और ऑगस्टाइन (Augustine) द्वारा दिए गए विचार आधुनिक विकासवादी विचारों के काफी करीब थे। दोनों के अनुसार पौधों और जानवरों की सभी प्रजातियाँ ईश्वर द्वारा नहीं बनाई गई थी,बल्कि इनमें से कुछ ऐतिहासिक समयों पर परमेश्वर की पूर्व रचनाओं से ही विकसित हुए थे। हालांकि उनके द्वारा व्यक्त विचारों की प्रेरणा जैविक नहीं बल्कि धार्मिक थी। “जीव प्राकृतिक प्रक्रियाओं से बदल सकते हैं”,इस धारणा की व्याख्या मध्य युग के ईसाई धर्मशास्त्रियों द्वारा एक जैविक विषय के रूप में नहीं, बल्कि धार्मिक विषय के रूप में की गई थी, हालांकि ऎल्बर्टस मैग्नस (Albertus Magnus) और उनके छात्र थॉमस अकीना (Thomas Aquinas) सहित कई लोगों द्वारा जीवो में प्राकृतिक रूप से परिवर्तन की संभावना स्वीकार की गई थी । ईसाई धर्म की विस्तृत चर्चा के बाद, अकीना ने निष्कर्ष निकाला कि सड़े हुए मांस जैसे निर्जीव पदार्थों से कीड़े और मक्खियों जैसे जीवित प्राणियों का विकास हुआ । पियरे-लुईस मोरेउ डी मौपर्टुइस (Pierre-Louis Moreau de Maupertuis) ने उत्पत्ति के अपने सिद्धांत के हिस्से के रूप में सहज पीढ़ी और जीवों के विलुप्त होने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने एक प्रजाति का दूसरी प्रजाति में प्राकृतिक परिवर्तन जैसे किसी विकास के सिद्धांत को आगे नहीं बढ़ाया। महान फ्रांसीसी प्रकृतिवादी जीन-बैप्टिस्ट डी मोने, शेवेलियर डी लैमार्क (Jean-Baptiste de Monet, chevalier de Lamarck) ने यह विचार रखा कि जीवित जीवों में प्रगति होती है, तथा मनुष्य इसमें उच्चतम स्थान रखता है।
इस विचार से उन्होंने 19वीं सदी के शुरुआती वर्षों में विकासवाद के पहले व्यापक सिद्धांत का प्रस्ताव रखा। जीवों का विकास समय के साथ-साथ निम्न से उच्च रूपों में होता है, और यह प्रक्रिया अभी भी चल रही है, तथा मनुष्य इस विकास का उच्चतम रूप है। जैसे-जैसे जीव अपनी आदतों के माध्यम से अपने वातावरण के अनुकूल होते जाते हैं, वैसे-वैसे संशोधित होते जाते हैं। किसी अंग या संरचना का उपयोग इस संशोधन को प्रबलित करता है, जबकि किसी अंग या संरचना का अनुपयोग इसे विनाश की ओर ले जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, उपयोग और अनुपयोग से प्राप्त होने वाली विशेषताएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होती हैं । यह धारणा, जिसे बाद में ‘अधिग्रहीत विशेषताओं की आनुवंशिकी’ या लैमार्कवाद (Lamarckism) का नाम दिया गया, को 20वीं सदी में पूरी तरह से खारिज कर दिया गया था। वहीं विकास और प्राकृतिक चयन पर विभिन्न धर्मों के विचार देंखे तो बौद्ध धर्म अपनी धार्मिक शिक्षाओं और विकासवादी सिद्धांत के बीच कोई अंतर्निहित संघर्ष नहीं देखता हैं। दरअसल, कुछ बौद्ध विचारकों के अनुसार, डार्विन के सिद्धांत के कुछ पहलू धर्म की कुछ मूल शिक्षाओं के अनुरूप हैं, जैसे कि यह धारणा कि मनुष्य का संपूर्ण जीवन अस्थिर है। कैथलिक धर्म में भी सभी जीवों के विकास के लिए वैज्ञानिक स्पष्टीकरण के रूप में आम तौर पर विकासवादी सिद्धांत को स्वीकार किया गया है।
हालाँकि, यह स्वीकृति इस बात पर भी आधारित है कि प्राकृतिक चयन जैविक विकास का एक ईश्वर-निर्देशित तंत्र है और मनुष्य की आत्मा ईश्वर की दिव्य रचना है। ‘चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंट्स’ (Church of Jesus Christ of Latter-day Saints) द्वारा मानव उत्पत्ति पर 1909 में जारी किए गए पहले सार्वजनिक बयान में चर्च के सर्वोच्च शासी निकाय ने कहा, "मनुष्य ईश्वर की संतान है, जो दिव्य छवि में बना है और दिव्य गुणों से संपन्न है।" हालाँकि, कई उच्च पदस्थ अधिकारियों ने यह सुझाव दिया है कि डार्विन का सिद्धांत सीधे तौर पर चर्च की शिक्षाओं का खंडन नहीं करता है। 1982 में, एपिस्कोपल चर्च (Episcopal Church) ने एक प्रस्ताव पारित किया,जिसमें उन्होंने जीवों को बनाने की भगवान की शानदार क्षमता में अपने विश्वास की पुष्टि की। इस पुष्टि में 'सृजनवादी' आंदोलन की कठोर हठधर्मिता को अस्वीकार कर दिया गया। जबकि जीवन की उत्पत्ति पर एक भी हिंदू शिक्षण मौजूद नहीं है, लेकिन कई हिंदुओं का मानना है कि ब्रह्मांड ब्रह्म का एक रूप है, जो कि हिंदू धर्म के सर्वोच्च देवता और सारी सृष्टि को चलाने वाली शक्ति है।
हालाँकि, आज बहुत से हिंदू अपने विश्वासों को विकासवाद के सिद्धांत के साथ असंगत नहीं पाते हैं। वहीं मुस्लिम धर्म की बात करें तो इस्लामी विद्वानों और अनुयायियों के विकासवाद के सिद्धांत अलग-अलग हैं। धार्मिक रूप से रूढ़िवादी मुसलमान आम तौर पर प्राकृतिक चयन के लिए विकासवादी तर्क की निंदा करते हैं, जबकि कई उदारवादी मुसलमानों का मानना है कि हालांकि अल्लाह ने इंसानों को बनाया है, विकासवाद इस्लामी सिद्धांतों के साथ असंगत नहीं है। जबकि अमेरिकी (American) यहूदी धर्म के सभी प्रमुख पंथ यह सिखाते हैं कि ईश्वर ब्रह्मांड और सभी जीवन का निर्माता है। आम तौर पर विकासवादी सिद्धांत और यहूदी शिक्षाओं के बीच एक अंतर्निहित संघर्ष देखने को नहीं मिलता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/2lEKMFk
https://pewrsr.ch/3Y5cKHw
चित्र संदर्भ
1. धार्मिक प्रतीकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. चिम्पाजी के रूप में चार्ल्स डार्विन को संदर्भित करता एक चित्रण (Free SVG)
3. इंसानों के संभावित भविष्य को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
4. धार्मिक राय अभिव्यक्ति को दर्शाता करता एक चित्रण (Flickr)
5. ब्रह्माण्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
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