विश्व कैंसर दिवस: महँगी दवाओं के आर्थिक दबाव से कुछ राहत की है ज़रुरत

लखनऊ

 04-02-2023 10:36 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

भारत पूरी दुनिया में बहुत तेजी के साथ उभरती हुई अर्थव्यवस्था बन रहा है। लेकिन स्वास्थ्य देखभाल पर किया जाने वाला अतिरिक्त खर्च नागरिकों की आर्थिक और मानसिक स्थिति पर गंभीर दुष्प्रभाव छोड़ रहा है, और भारत के बढ़ते कदम पीछे खींच रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति इतनी गंभीर है कि इलाज संभव होने के बावजूद पैसों के अभाव में यहां पर लोग कैंसर जैसे गंभीर रोग का इलाज नहीं करा पा रहे हैं, और अकाल मृत्यु की भेंट चढ़ रहे हैं।
बीमारियों के उपचार के लिए प्रौद्योगिकी की उन्नति के बावजूद भारत में लोगों द्वारा घरेलू आमदनी का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ देखभाल पर खर्च कर दिया जाता है। हालांकि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य खातों के अनुसार, यह आंकड़ा 2004-2005 में 69.4 प्रतिशत था जो 2018-2019 में घटकर 48.21 प्रतिशत हो गया है। किंतु मार्च 2022 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य पर किया गया आमदनी से अधिक घरेलू खर्च सालाना लगभग 55 मिलियन भारतीयों को प्रभावित कर रहा है, जिसमें 17 प्रतिशत से अधिक परिवारों को हर साल स्वास्थ्य व्यय के भयावह स्तर का सामना करना पड़ रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश का वर्तमान स्वास्थ्य व्यय 5,40,246 करोड़ रुपये है, जहां सरकार ने 2,42,219 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। इसमें पूंजीगत व्यय भी शामिल है।
स्वास्थ्य पर आमदनी से अधिक घरेलू खर्च की राज्यवार विषमता बनी रहती है । जैसे:
उत्तर प्रदेश (71.3 प्रतिशत),
केरल (68.6 प्रतिशत),
झारखंड (63.9 प्रतिशत),
आंध्र प्रदेश (63.2 प्रतिशत),
बिहार (53.5 प्रतिशत),
मध्य प्रदेश (55.7 प्रतिशत),
ओडिशा (53.2 प्रतिशत),
पंजाब (65.5 प्रतिशत)
पश्चिम बंगाल (68.7 प्रतिशत)
दक्षिणी राज्यों में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च भारत में दूसरे स्थान (प्रति व्यक्ति 2,479 रुपये) पर है। वहीं इस सूची में पहला स्थान हिमाचल प्रदेश का है जहां स्वास्थ्य पर सरकार द्वारा प्रति व्यक्ति 3,604 रुपये खर्च किए जाते है। हालांकि, आमदनी से अधिक घरेलू खर्च के यह बड़े आंकड़े एक कठोर वास्तविकता की ओर इशारा करते हैं, अर्थात “सरकार के लिए स्वास्थ्य प्राथमिकता नहीं है।" भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार, राज्य और केंद्रीय दोनों स्तरों पर सरकारी बजट में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के मामले में भारत 10 सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक था। मौजूदा जानकारी से पता चलता है कि आमदनी से अधिक घरेलू खर्च भुगतान न केवल बड़ी संख्या में परिवारों को गरीब बनाता है, बल्कि पहले से ही गरीब परिवारों में गरीबी को और भी अधिक बढ़ाता है।" कई भारतीय परिवार तो उपचार हेतु अस्पताल में भर्ती होने के लिए अपनी निजी संपत्ति भी बेच देते हैं जिससे गरीबी में और भी अधिक वृद्धि होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्षों से, भारत में स्वास्थ्य पर उच्च घरेलू खर्च के कारण गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बड़ी है। इसमें 1993-1994 में 4.2 प्रतिशत अंक, 2004-2005 में 4.8 प्रतिशत अंक और 2011-2012 में 4.5 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, यदि पूर्ण आंकड़ों में देखा जाए, तो 1993-1994 में 26 मिलियन और 2011-2012 में लगभग 55 मिलियन लोग उपचार की लागत के कारण गरीबी रेखा के नीचे आ गए । भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2021 द्वारा स्वास्थ्य के लिए बजट आवंटित करने के मामले में भारत 10 सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक है। यह प्रवृत्ति भारत के सबसे गरीब राज्यों में विशेष रूप से गंभीर है, जहां गरीबी में रहने वाले लोगों को अपने आर्थिक रूप से बेहतर समकक्षों की तुलना में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाने के लिए अपनी क्षमता से अधिक खर्च करना पड़ता है। इसका मुख्य कारण कम सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश, खराब सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा, दवाओं की कम उपलब्धता , नैदानिक परीक्षण की कमी और उपयोगकर्ता शुल्क है। इस समस्या का समाधान यह होगा कि स्वास्थ्य पर सार्वजनिक व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 2.5-3% तक बढ़ाया जाना चाहिए और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त दवाएं, शल्य चिकित्सा और नैदानिक परीक्षण प्रदान किए जाना चाहिए, जिससे स्वास्थ चिकित्सा पर घरेलू खर्च और गरीबी में काफी कमी आएगी। वर्तमान में, स्वास्थ सेवाओं पर भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 2% खर्च करता है, जिसमें भी बढ़ौतरी किये जाने की आवश्यकता है।
कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों का बढ़ता प्रचलन विश्व स्तर पर मृत्यु का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (International Agency for Research on Cancer) की वैश्विक परियोजना का अनुमान है कि 2012 में एक मिलियन की तुलना में 2035 तक भारत का कैंसर बोझ लगभग दोगुना होकर अनुमानित 1.7 मिलियन हो जाएगा, और कैंसर से संबंधित मौतों की संख्या 0.68 से बढ़कर 1.2 मिलियन हो जाएगी। भारत में एक संसदीय पैनल ने हाल ही में सरकार से ‘सरकार द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजना’ के माध्यम से मध्यम वर्ग के परिवारों को मुफ्त कैंसर उपचार प्रदान करने और सरकारी और निजी अस्पतालों में कैंसर निदान और उपचार सेवाओं को व्यापक करने का आह्वान किया है। हालांकि, कई दवा कंपनियों (Pharmaceutical Companies) ने बीमारी से निपटने के लिए कई कैंसर रोधी दवाएं विकसित की हैं, लेकिन ये ब्रांडेड दवाएं, खासकर वंचित तबके के लिए, आमतौर पर बेहद महंगी और दुर्गम होती जा रही हैं।
पीएम जन औषधि योजना की वार्षिक रिपोर्ट (2021-22) के अनुसार, भारत 60 चिकित्सीय श्रेणियों में 60000 विभिन्न जेनेरिक ब्रांडों का निर्माण करके वैश्विक आपूर्ति में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। भारत 'दुनिया की फार्मेसी' होने के नाते अधिक जेनेरिक दवाओं का उत्पादन करने की क्षमता रखता है, जो देश में बेहतर राजनीतिक और अनुसंधान समर्थन के साथ संभव हो पाएगा। दवाओं की इस सूची का विस्तार किया जा सकता है ताकि अधिक कैंसर दवाओं को शामिल किया जा सके, खासकर इसलिए क्योंकि हमारे देश में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक कैंसर ही है। केंद्र सरकार ने भी आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में 34 नई कैंसर रोधी दवाओं को शामिल किया है, जिसका उद्देश्य "मरीजों के खर्च" को कम करना है। कई कैंसर रोधी दवाएं, एंटीबायोटिक्स और टीके अब अधिक किफायती हो जाने की उम्मीद हैं। प्रसिद्ध कैंसर चिकित्सक और लेखक सिद्धार्थ मुखर्जी के अनुसार, भारत में ‘सिमेरिक एंटीजन रिसेप्टर टी-सेल थेरेपी (Chimeric Antigen Receptor T-cell Therapy), जिसे संक्षेप में (सीएआर) टी-सेल थेरेपी कहा जाता है, को सस्ता बनाना उनके और उनकी टीम के लिए एक प्रमुख लक्ष्य है। मुखर्जी, जो कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) में एक कैंसर चिकित्सक हैं, ने बेंगलुरु स्थित एक स्टार्टअप ‘इम्यूनोल थेरेप्यूटिक्स’ (Immunol Therapeutics) को भी सह-वित्त पोषित किया है, जो लिम्फोमा और ल्यूकेमिया (Lymphoma and Leukemia) जैसे कैंसर के लिए सीएआर-टी सेल थेरेपी विकसित कर रहा है। सीएआर-टी सेल थेरेपी एक कैंसर उपचार है, जिसमें कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करने के लिए रोगी की टी कोशिकाओं को प्रयोगशाला में संशोधित किया जाता है। मुखर्जी ने CAR-T थेरेपी की लागत को कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो कि अमेरिका में $1 मिलियन तक है, जिससे यह भारतीय संदर्भ में एक व्यवहार्य विकल्प नहीं है। इसलिए, उन्होंने इसे व्यवहार्यपूर्ण बनाने के लिए अपने CAR-T को विकसित करने में भारतीय इंजीनियरिंग और नवाचार का उपयोग किया है। कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाने और लोगों को इसकी रोकथाम, पता लगाने और इलाज के लिए प्रोत्साहित करने लिए आज ही के दिन प्रतिवर्ष विश्व कैंसर दिवस भी मनाया जाता है। कैंसर के कई मामलों को रोका जा सकता है। अगर इस बीमारी का जल्दी पता चल जाए, तो इसका इलाज भी किया जा सकता है और कईयों को ठीक भी किया जा सकता है। रोकथाम, शीघ्र पहचान और उपचार के लिए सही तरीकों का उपयोग करके हम कई लोगों की जान बचा सकते हैं। हम अब कैंसर के बारे में बहुत कुछ जानते हैं और अनुसंधान और नवाचारों के साथ, हम जोखिम को कम करने, कैंसर को रोकने और उपचार और देखभाल में सुधार करने में और भी अधिक प्रगति कर सकते हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3Rg91UR
https://bit.ly/3kRt3ZT
https://bit.ly/3DpcECm

चित्र संदर्भ
1. अस्पताल में बीमार महिला मरीज को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. प्रति 10,000 लोगों पर कैंसर से आयु-मानकीकृत मृत्यु दर। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कैंसर से पीड़ित बच्चों के साथ सेवा स्वयंसेवको को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अस्पताल में भर्ती वृद्ध महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. टी-सेल थेरेपी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. विश्व कैंसर दिवस को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)



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