City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
147 | 439 | 586 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
महान संस्कृति, इतिहास, विरासत और हर पहलू में सुंदरता के साथ लखनऊ जैसे शहर के नागरिक होने के रूप में हमें खुद पर हमेशा ही गर्व होता है, लेकिन एक चीज, जो हर लखनऊ वासी को हमेशा चिंतित करती है और विशेषकर इस समय ज्यादा चिंतित कर रही है, वह है भारत के 19 सबसे बड़े शहरों की तुलना में लखनऊ में महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराधों की घटनाएं । क्या यह चिंता का विषय नहीं है ? इसलिए हमें हमेशा ही इस शहर को हर एक महिला के लिए अधिक अनुकूल और सुरक्षित बनाने का प्रयास करना है।
‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (National Crime Records Bureau (NCRB) द्वारा जारी साल 2017 के आंकड़े बताते है कि लखनऊ में प्रत्येक दिन महिलाओं के खिलाफ औसतन 7 अपराध दर्ज किए जा रहे हैं। ये आंकड़े 20 लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले शहरों के लिए संकलित किए गए थे। अपराध की दर, जो कि प्रति एक लाख जनसंख्या पर एक घटना के अनुपात में है, लखनऊ में 178.5 प्रतिशत है, और जिसकी वजह से लखनऊ अपराध की घटनाओं में शीर्ष स्थान पर है। महिलाओं के खिलाफ 152.4 प्रतिशत अपराध दर के साथ दिल्ली दूसरे स्थान पर है, जबकि इसके बाद इंदौर (129.9 प्रतिशत) और जयपुर (127.8 प्रतिशत) का स्थान है। हालांकि, महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की पूर्ण संख्या के हिसाब से, 2,468 मामलों के साथ लखनऊ, दिल्ली (11,542), मुंबई (5,453) और बेंगलुरु (3,568) के बाद चौथे स्थान पर है।
उसी वर्ष के आंकड़ों के अनुसार शहर में कुल अपराधों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 6% थी। शहर में महिलाओं के खिलाफ उनके पति और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के कुल 1,155 मामले दर्ज किए गए, जिनमें दिल्ली (2,450) और हैदराबाद (1,278) के बाद लखनऊ तीसरे स्थान पर था। हालाँकि, अपराध की दर के मामले में लखनऊ 83.5 प्रतिशत के साथ पहले स्थान पर है, उसके बाद जयपुर (61.9 प्रतिशत) और कानपुर (49 प्रतिशत) का स्थान है। साथ ही, 35 दहेज हत्याओं के साथ, लखनऊ, दिल्ली (102), पटना (65) और बेंगलुरु (48) के बाद जयपुर के साथ चौथे स्थान पर था।
हालांकि, अगर शहरों की जनसंख्या की तुलना में दहेज मृत्यु दर को देखा जाए, तो लखनऊ, पटना (6.8) के बाद कानपुर (2.5) के साथ दूसरे स्थान पर है। ‘दहेज निषेध अधिनियम’ के तहत वर्ष 2017 में शहर में दहेज संबंधित 183 मामले दर्ज किए गए थे, जिसके कारण बेंगलुरु (728 मामले) के बाद लखनऊ दूसरे स्थान पर था। हालांकि, अगर दहेज अधिनियम के मामलों की दर को देखा जाए, तो ये दोनो शहर समान स्थान पर रहते है। वर्ष 2017 में लखनऊ में औसतन 60 अपराध प्रति दिन के हिसाब से कुल 21,845 अपराध दर्ज किए गए थे।
वर्ष 2019 में शहर में महिलाओं के खिलाफ 2922 अपराध दर्ज किए गए थे, जो उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हुए कुल अपराधों का 4.88% था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 19975 अपराधों के साथ लखनऊ की अपराध दर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक थी। वर्ष 2020 को छोड़कर, दिल्ली और मुंबई के बाद जयपुर और लखनऊ में सबसे अधिक अपराध दर्ज किए गए थे। जयपुर और लखनऊ शहरों में अब तक पंजीकृत अपराधों की संख्या अधिक आबादी वाले अन्य शहरों की तुलना में सबसे अधिक है।
दुनिया 21 वी शताब्दी में प्रवेश कर चुकी है, लेकिन मानव सभ्यता की शुरुआत से लेकर आज तक, भारत के पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं पर अत्याचार और दुर्व्यवहार जारी है। महिलाएं आज भी आश्रित, कमजोर और शोषित है और जीवन के हर क्षेत्र में लैंगिक भेदभाव का सामना करती है। आज भी भारत में सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और यहां तक कि धार्मिक क्षेत्रों में लिंग आधारित हिंसा महिलाओं की भलाई, गरिमा और अधिकारों के लिए खतरा है । और लखनऊ इसके बारे में कोई अपवाद नहीं है।
आइए जानते है, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कुछ कारणों के बारे में-
1- पति द्वारा शराब का सेवन महिलाओं के खिलाफ हिंसा का एक प्रमुख कारण है एवं यह महिलाओं के खराब मानसिक स्वास्थ्य के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ है। शराब का सेवन हमेशा से ही हिंसा को बढ़ावा देने के लिए उत्तेजक के रूप में कार्य करता है। शराब के सेवन के साथ ही, अन्य रुग्णताएं जैसे बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorders), पैरानॉयड सिज़ोफ्रेनिया (Paranoid Schizophrenia), भ्रमपूर्ण और असामाजिक व्यक्तित्व विकार पुरुषों को यौन अपराध करने के लिए अधिक संवेदनशील बनाते हैं।
2- पितृसत्ता को महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुख्य कारण के रूप में देखा जाता है।पितृसत्ता की वजह से महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार बनना पड़ता है। जब कोई पुरूष खुद को किसी महिला से प्रबल समझता है, तब वह उस महिला को नीचा दिखाने के लिए हिंसा का सहारा ले सकता है।
3- बचपन में किसी पुरुष पर कठोर शारीरिक अनुशासन का प्रभाव होना तथा पिता को बचपन में मां को पीटते हुए देखना, वयस्कता में अपनी पत्नी के खिलाफ अत्याचार और अपराध का पूर्वसूचक होता है। इसके अलावा, दहेज संबंधित विभिन्न बातें भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से दृढ़ता से संबंधित पाई गई है।
4- गंभीर मानसिक बीमारी से पीड़ित महिलाओं को भी हिंसा का सामना करना पड़ता है।
5- इनके अलावा, बालविवाह या कम उम्र में लड़कियों की शादी, महिला जननांग अंगभंग, परिवार की इज्जत के नाम पर किसी महिला की हत्या आदि कुछ महिलाओं के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देने वाली पारंपरिक और सांस्कृतिक प्रथाएं है।
अब प्रश्न उठता है कि क्या महिलाओं के खिलाफ अपराधो के बारे में अब तक कुछ किया भी गया है या नही ? आइए जानते है। घरेलू हिंसा के लिए कुछ महिलाओं द्वारा शुरू की गई सामुदायिक-स्तर की प्रतिक्रियाएँ प्रशंसा के योग्य हैं। शिक्षा विभाग के महिला समाख्या कार्यक्रम द्वारा ‘नारी अदालत’ और ‘सहारा संघ’ जैसे कार्यक्रमों की पहल उत्तर प्रदेश और गुजरात के दो जिलों में आयोजित की गई है। पश्चिम बंगाल में गैर-सरकारी संगठन श्रमजीवी महिला समिति द्वारा एक पारंपरिक पद्धति, ‘सालिशे’ का उपयोग किया जा रहा है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए कई अंतर्राष्ट्रीय उपकरण हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा (The United Nations General Assembly ) ने समानता, सुरक्षा, स्वतंत्रता अखंडता और गरिमा के महिलाओं के अधिकारों के सार्वभौमिक आवेदन की तत्काल आवश्यकता के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
अब तक महिलाओं से संबंधित विषयों पर तीन संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन हुए हैं। पहला, 1975 में मेक्सिको (Mexico) में, दूसरा, 1980 में कोपेनहेगन (Copenhagen) में और तीसरा नैरोबी (Nairobi) में, जिसमें महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और अवसरों को बढ़ावा देने के लिए रणनीति बनाई गई थी। 1993 की ‘वियना घोषणा’ (Vienna Declaration) महिलाओं के समान स्थिति वाले मानवाधिकारों को एकीकृत करने के लिए कार्रवाई का आह्वान करती है। 1995 में आयोजित बीजिंग सम्मेलन (Beijing conference) ने दुनिया में अधिकांश महिलाओं की उन्नति के लिए मूलभूत बाधाओं के रूप में पहचाने जाने वाले कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक मंच प्रदान किया। ‘महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर आयोजित सम्मेलन’, 1981(The Convention on Elimination of all forms of Discrimination against Women (CEDAW), एक ऐतिहासिक दस्तावेज है क्योंकि इसने मानवाधिकारों के ढांचे के भीतर महिलाओं के खिलाफ हिंसा को परिभाषित किया है।
वही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14, महिलाओं को समानता का अधिकार देता है और अनुच्छेद 21 मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है। महिलाओं के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत जनवरी 1992 में, ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ को एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। महिलाओं के खिलाफ हिंसा से संबंधित कानूनों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), नागरिक कानून और विशेष कानून शामिल हैं। दहेज निषेध अधिनियम (डीपीए), 1961 के तहत दहेज लेना या देना, अथवा लेने या देने के लिए उकसाना एक अपराध है, जो दंडनीय है। साथ ही दहेज से संबंधित किसी कारणवश किसी महिला की मृत्यु के लिए अगर कोई जिम्मेदार साबित होता है,तो वह भी सजा का पात्र होता है। पति और पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता की शिकार महिलाओं को भी हमारा संविधान आश्रय देता है।
साथ ही, ‘पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984’ की स्थापना विवाह और पारिवारिक मामलों से संबंधित विवादों में सुलह को बढ़ावा देने और उनके त्वरित समाधान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई थी। ‘महिलाओं का अशोभनीय प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986’ विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखों, चित्रों, आकृतियों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व पर रोक लगाता है। महिलाओं को गर्भपात या उससे संबंधित अपराधो में भी सुरक्षा के प्रावधान है। ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (पीडब्ल्यूडीवीए), 2005’ को संविधान के तहत निश्चित तौर पर महिलाओं को उनके अधिकारों की अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया था, जो किसी भी तरह की हिंसा की शिकार हैं।
अब तक हमने जाना कि लखनऊ शहर के लिए चिंता का विषय क्या है ? अतःअब इस स्तिथि में हमारी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है, जिनमें हमारे बच्चों (विशेषतः लड़कों को) महिलाओं का आदर करना सिखाना, लड़कियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा उनको सबल बनाना, महिलाओं के खिलाफ अपराध न करना या हो रहे अपराध को रोकना आदि शामिल है। और चूंकि हम इस बारे में कुछ उपाय जान चुके है, हमे संविधान का सहारा लेकर, हर एक महिला को सुरक्षित महसूस कराना है,और शायद यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए, तभी जाकर लखनऊ से ये कलंक मिट सकेगा।
संदर्भ
https://bit.ly/3H6TUsp
https://bit.ly/3H4ZGdL
चित्र संदर्भ
1. महिला अपराध को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
2. एक प्रताड़ित महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. भयभीत महिला को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
4 महिला विरोधियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
5. महिला अपराध रोकने की पहल करते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.