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आपने अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार मरीज को खून चढ़ाने की चिकित्सा प्रक्रिया के बारे में अवश्य सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत सहित दुनियाभर में कई रोगों का इलाज करने के लिए इसके ठीक विपरीत, एक ऐसी उपचार विधि का प्रयोग किया जाता है, जिसके तहत मरीज को खून देने के बजाय उसके शरीर से खून को बाहर निकाला जाता है।
दरसल, रक्तमोक्षण (Bloodletting) चिकित्सा प्रक्रिया के अंतर्गत बीमारियों के उपचार के रूप में एक रोगी के शरीर से रक्त को बाहर निकाला जाता है। प्राचीन काल से लेकर 19वीं शताब्दी के अंत तक, 2,000 से अधिक वर्षों तक शल्य चिकित्सकों द्वारा व्यापक रूप से रक्तमोक्षण की चिकित्सा पद्धति का नियमित रूप से उपयोग किया जाता था ।
हालांकि, यह रोगियों के लिए हमेशा फायदेमंद नहीं हुआ, लेकिन इसके बावजूद यूरोप में, रक्तमोक्षण का चलन उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक अपेक्षाकृत सामान्य बना रहा। अधिकांश ऐतिहासिक मामलों में, रक्तमोक्षण का उपयोग हानिकारक ही साबित हुआ था और रोगी की स्थिति पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। हालांकि, आधुनिक चिकित्सा के उद्भव के साथ ही रक्तमोक्षण की प्रथा को अंततः छोड़ दिया गया था।
विभिन्न बीमारियों और रोगों के सामान्य उपचार के रूप में रक्तमोक्षण की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को अब छद्म विज्ञान (Pseudoscience) माना जाता है, और केवल कुछ विशिष्ट चिकित्सा स्थितियों में इसका उपयोग किया जाता है। आज, रक्तमोक्षण के स्थान पर प्रयोगशाला विश्लेषण या रक्त आधान के लिए रक्त के आरेखण को संदर्भित करने के लिए शब्द “शिराछदन ” (Phlebotomy) का उपयोग किया जाता है।
उपचारात्मक शिराछदन लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या को कम करने के लिए रक्त की एक इकाई के आरेखण को संदर्भित करता है। , एक रोगी के शरीर से रक्त की निकासी के द्वारा उपचार के रूप में, रक्तमोक्षण प्राचीन मिस्र में भी एक स्वीकृत प्रथा थी। मिस्र के एक चिकित्सा पाठ, ‘एबर्स पेपाइरस’ (Ebers Papyrus) के अंशों से पता चलता है कि मिस्र के लोग रक्तमोक्षण के लिए, त्वचा में छेद कर रक्त निकालने की प्रक्रिया परिशोधन (Scarification) का उपयोग करते थे। मिस्र की कब्रों में भी रक्तमोक्षण करने वाले कई उपकरण पाए गए हैं।
यूनान (Greece) में, 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व, हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) के जीवनकाल के दौरान, रक्तमोक्षण की चिकित्सा का अभ्यास किया गया था। उन्होंने अपने लेखों में रक्तमोक्षण का उल्लेख किया है लेकिन वह भी आम तौर पर बीमारियों के इलाज के लिए आहार संबंधी तकनीकों पर ही भरोसा करते थे । उनके छात्र एरासिस्ट्रेटस (Erasistratus) ने सिद्धांत दिया कि कई बीमारियां रक्त की अधिकता के कारण होती हैं एवं सलाह दी कि इनका इलाज शुरू में व्यायाम, पसीना, कम भोजन का सेवन और उल्टी द्वारा ही किया जाना चाहिए। उनके छात्र हेरोफिलस (Herophilus) ने भी रक्तमोक्षण का विरोध किया। लेकिन एक समकालीन यूनानी चिकित्सक, ऎर्केगेथस (Archagathus), जो रोम में चिकित्सा प्रणाली का अभ्यास करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे, रक्तमोक्षण पद्धति में विश्वास करते थे। रोमन साम्राज्य के दौरान, ग्रीक चिकित्सक ‘गैलेन’ (Galen), जिन्होंने हिप्पोक्रेट्स की शिक्षाओं से सीख ली थी, ने भी रक्तमोक्षण की वकालत की। उनका मानना था कि मासिक धर्म की प्रक्रिया “महिलाओं को बुरे विकारों से मुक्त करती है" और इसी तरह रक्तमोक्षण की प्रक्रिया का उपयोग बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है। उन्होंने यह निर्धारित करने के लिए एक जटिल प्रणाली भी बनाई कि रोगी की आयु, शारीरिक ढांचे, मौसम, और स्थान के आधार पर कितना रक्त निकाला जाना चाहिए। इस्लामी चिकित्सा लेखकों ने भी रक्तमोक्षण की सलाह दी। यह प्रथा संभवतः यूनानियों द्वारा अरबी में प्राचीन ग्रंथों के अनुवाद के साथ पारित की गई थी और समय के साथ यूरोप के लैटिन भाषी देशों में फैल गई थी।
रक्तपात का उपयोग केवल कुछ विशिष्ट बीमारियों के लिए किया जाता है, जिनमें हेमोक्रोमैटोसिस और पॉलीसिथेमिया (Hemochromatosis and Polycythemia) शामिल हैं, जो वैज्ञानिक चिकित्सा के आगमन से पहले ज्ञात या निदान योग्य नहीं थे।
चिकित्सा की आयुर्वेदिक, यूनानी और पारंपरिक चीनी चिकित्सा में भी विभिन्न प्रकार की स्थितियों के लिए वैकल्पिक रूप में रक्तमोक्षण का अभी भी आमतौर पर उपयोग किया जाता है। यद्यपि रक्तपात का उपयोग हजारों वर्षों से किया जाता रहा है, किंतु आधुनिक चिकित्सकों द्वारा इसे वैध चिकित्सा उपचार नहीं माना जाता है, लेकिन यह अभ्यास अभी भी आधुनिक भारत में एक बड़ी मस्जिद की छाया में किया जा रहा है। भारत की सबसे बड़ी मस्जिद (जामा मस्जिद) के पास के गटर आज भी खून से लाल नज़र आते हैं, क्योंकि यहां पर मरीजों के हाथों और पैरों पर छोटे-छोटे कट लगाने के लिए टूर्निकेट और रेजर ब्लेड (Tourniquet & Razor Blade) का इस्तेमाल किया जाता हैं। कई आधुनिक चिकित्सकों द्वारा हतोत्साहित किये जाने के बावजूद, रक्तमोक्षण का कारोबार फल-फूल रहा है।
हालांकि, 19वीं शताब्दी तक पश्चिम में यह प्रचलन से बाहर हो गया था, फिर भी 1942 की चिकित्सापाठ्यपुस्तक में निमोनिया के उपचार के रूप में रक्तमोक्षण की सिफारिश की गई थी। इसके ऐतिहासिक महत्व के बावजूद, रोगियों के लिए इसकी प्रभावशीलता और संभावित जोखिमों का समर्थन करने वाले सबूतों की कमी के कारण इस चिकित्सा को काफी हद तक बदनाम किया गया है। जबकि कुछ विशिष्ट मामलों में रक्तमोक्षण के कुछ लाभ भी हो सकते हैं, जैसे कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol) और उच्च रक्तचाप। किंतु इस चिकित्सा का अभ्यास खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इससे रक्त का बहुत अधिक बहाव हो सकता है और संक्रमण या एनीमिया का खतरा बढ़ सकता है। अतः रक्तमोक्षण की परंपरा को पुनर्जीवित करने के बजाय, वैज्ञानिक प्रमाणों और आधुनिक चिकित्सा उपचारों पर भरोसा करना बेहतर है।
संदर्भ
https://bit.ly/3H184v2
https://on.natgeo.com/3R1xNIq
चित्र संदर्भ
1. रक्तमोक्षण चिकित्सा को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. प्राचीन समय में रक्तमोक्षण प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (Look and Learn)
3. एन. कीलैंड द्वारा रक्तमोक्षण दृश्य, 1922 को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शरीर में रक्तमोक्षण बिंदुओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Look and Learn)
5. आधुनिक रक्तमोक्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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