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प्राचीन समय से ही कृषि प्रधान देश होने के कारण हमारे भारत में फसलों को समर्पित कई त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाये जाते हैं। इन्हीं त्यौहारों में से एक ‘पोंगल’ भी देश के सबसे लोकप्रिय फसल उत्सवों में से एक है, जिसे प्रतिवर्ष जनवरी के मध्य में दुनिया भर में तमिल समुदाय द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पवित्र त्यौहार की उत्पत्ति से जुड़ी पौराणिक गाथा इसे सम्पूर्ण सनातन धर्म में विशेष स्थान दिलाती है।
पोंगल दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिल लोगों के बीच लोकप्रिय एवं प्राचीन त्यौहार है। इस त्यौहार का इतिहास संगम युग (200 ईसा पूर्व से 300 ईसवी . तक) से जुड़ा हुआ है। पोंगल की उत्पत्ति एक द्रविड़ फसल उत्सव के रूप में हुई थी और संस्कृत पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है, जहां इतिहासकार इस त्यौहार की पहचान ‘थाई उन’ और ‘थाई निरादल’ से करते हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि यह संगम युग के दौरान मनाया जाता था।
माना जाता है कि संगम युग के उत्सव ने ही आज के पोंगल समारोह का नेतृत्व किया। संगम युग की युवतियों ने थाई निरादल के समय, उत्सव के रूप में, ‘पवई नोनबू' मनाया, जो पल्लवों (चौथी से आठवीं शताब्दी ईस्वी) के शासनकाल के दौरान एक प्रमुख त्यौहार था। यह तमिल महीने मरगज़ी (दिसंबर-जनवरी) के दौरान मनाया जाता था।
इस त्यौहार के दौरान युवा लड़कियां बारिश और देश की समृद्धि के लिए प्रार्थना करती थी । पूरे महीने उनके द्वारा दूध और तेलीय उत्पादों से परहेज किया जाता था । यहां तक कि वे अपने बालों में तेल भी नहीं लगाती थी, इसके साथ-साथ वह बोलते समय कठोर शब्दों का प्रयोग करने से भी परहेज करती थी । महिलाएं सुबह जल्दी नहाती थीं, जिसके बाद वह देवी कात्यायनी की मूर्ति की पूजा करती थी, जिसे गीली रेत से उकेरा जाता था। माना जाता है कि प्राचीन काल की इन परंपराओं और रीति-रिवाजों ने पोंगल उत्सव को जन्म दिया।
अंडाल के ‘तिरुप्पावई’ और मणिकवाचकर के ‘तिरुवेम्बवई’ में थाई निरादल के त्यौहार और पावई नोनबू के अनुष्ठान का विशद वर्णन है। तिरुवल्लुवर के वीर राघव मंदिर में मिले एक शिलालेख के अनुसार, चोल राजा किलुट्टुंगा विशेष रूप से पोंगल उत्सव के लिए मंदिर को भूमि उपहार में देते थे।
पोंगल के उत्सव के साथ कुछ पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। पोंगल की दो सबसे लोकप्रिय किंवदंतियाँ भगवान शिव और भगवान इंद्र से जुड़ी हुई हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शिव ने अपने बैल, बसव को पृथ्वी पर जाकर नश्वर लोगों को यह संदेश देने के लिए कहा कि उन्हें प्रतिदिन तेल मालिश एवं स्नान करना चाहिए तथा महीने में एक बार भोजन करना चाहिए। किंतु इसके विपरीत अनजाने में, बसव ने यह घोषणा कर दी कि उन्हें प्रतिदिन भोजन करना चाहिए और महीने में एक बार तेल मालिश एवं स्नान करना चाहिए । इस गलती से शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने बसव को हमेशा के लिए पृथ्वी पर रहकर खेतों की जुताई करने और लोगों को अधिक भोजन पैदा करने में मदद करने के लिए निर्वासित कर दिया । इस प्रकार इस दिन का जुड़ाव मवेशियों से भी माना जाता है।
भगवान इंद्र और भगवान कृष्ण की एक अन्य कथा ने भी पोंगल उत्सव का नेतृत्व किया है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण छोटे बालक थे, तो उन्होंने भगवान इंद्र को सबक सिखाने का फैसला किया, जो सभी देवताओं के राजा बनने के बाद अहंकारी हो गए थे। भगवान कृष्ण ने सभी ग्वालों को भगवान इंद्र की पूजा बंद करने के लिए कहा। इसने भगवान इंद्र को नाराज कर दिया और उन्होंने गरज-तूफान और लगातार तीन दिनों तक बारिश का आदेश बादलों को दे दिया। भगवान कृष्ण ने सभी मनुष्यों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। बाद में, इंद्र को अपनी गलती और भगवान कृष्ण की दिव्य शक्ति का एहसास हुआ।
वर्तमान में यह त्यौहार तीन दिनों तक चलता है और यह दक्षिण भारत का सबसे महत्वपूर्ण और उत्साहपूर्वक मनाया जाने वाला फसल उत्सव है। पोंगल, जिसे थाई पोंगल के नाम से भी जाना जाता है, भारत, श्रीलंका और दुनिया भर में तमिलों द्वारा मनाया जाने वाला एक बहु-दिवसीय हिंदू फसल उत्सव है। यह तमिल सौर कैलेंडर के अनुसार थाई महीने के पहले दिन, प्रत्येक वर्ष आमतौर पर 14 या 15 जनवरी को पड़ता है, । यह त्यौहार सूर्य देव, को समर्पित है और मकर संक्रांति से जुड़ा है, जो विभिन्न क्षेत्रीय नामों के तहत पूरे भारत में मनाया जाने वाला फसल उत्सव है।
त्यौहार का नाम औपचारिक व्यंजन “पोंगल" के नाम पर रखा गया है, जो दूध और गुड़ के साथ नई फसल के चावल को उबालकर बनाया जाता है।
पोंगल भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पुडुचेरी में तमिल लोगों द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है, साथ ही मलेशिया (Malaysia), मॉरीशस (Mauritius), श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका (South Africa), सिंगापुर (Singapore), संयुक्त राज्य अमेरिका (United States), , यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom), कनाडा (Canada) और खाड़ी देश (Gulf countries) और दुनिया भर में तमिलों द्वारा मनाया जाता है। पोंगल नई शुरुआत का स्वागत करता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह त्यौहार छह महीने की लंबी रात के अंत का प्रतीक होने के कारण अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार पोंगल से देवताओं के दिन की शुरुआत होती है।
पोंगल के पहले दिन धान काटने से पहले विशेष पूजा की जाती है। किसान चंदन की लकड़ी के लेप से अपने हल और हँसिया का अभिषेक करके सूर्य और पृथ्वी की पूजा करते हैं। इस दौरान तीन दिनों में से प्रत्येक दिन को विभिन्न उत्सवों द्वारा चिह्नित किया जाता है। पहला दिन, जिसे भोगी पोंगल कहते हैं, परिवार को समर्पित दिन होता है। दूसरा दिन, जिसे सूर्य पोंगल कहते हैं, सूर्य भगवान की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस दौरान सूर्य देव को उबले हुए दूध और गुड़ का भोग लगाया जाता है। पोंगल का तीसरा दिन, जिसे मट्टू पोंगल कहते हैं, मट्टू नामक मवेशियों की पूजा के लिए होता है। इस दौरान मवेशियों को नहलाया जाता है, उनके सींगों को चमकाया किया जाता है और फिर चमकीले रंगों में रंगा जाता है, तथा उनके गले में फूलों की माला डाली जाती है। देवताओं को चढ़ाया गया पोंगल फिर मवेशियों और पक्षियों को खाने के लिए दिया जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3XkzK4v
https://bit.ly/3XfMQAc
https://bit.ly/3X4oKIC
चित्र संदर्भ
1. ‘पोंगल’ अनुष्ठान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. पोंगल पूजा की तैयारियों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. बसव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. श्री कृष्ण एवं देवराज इंद्र की कथा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पोंगल भोग बनाती एक महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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