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स्वामी विवेकानंद एक महान देशभक्त, संत और हिंदू धर्म के मशाल वाहक रहे हैं। हालांकि, आज वह हमारे बीच प्रत्यक्ष तौर पर मौजूद नहीं है, लेकिन मानवता के लिए छोड़ी गई उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षाएं आज भी युवाओं के आचार व्यवहार में प्रदर्शित होती हैं। यदि हम उनके पूरे व्यक्तित्व को चुनिंदा शब्दों में समेटने की चेष्टा करें, तो हम यह कह सकते हैं कि स्वामी विवेकानंद एक महान कर्म योगी थे।
स्वामी विवेकानंद ने 1895 में न्यूयॉर्क (New York) का दौरा किया, जहां उन्होंने कर्म की अवधारणा और मानसिक अनुशासन के विभिन्न पहलुओं पर कई व्याख्यान दिए। इन व्याख्यानों में प्रसिद्ध आविष्कारक निकोला टेस्ला (Nikola Tesla) और अग्रणी मनोवैज्ञानिक एवं दार्शनिक विलियम जेम्स (William James) जैसी उल्लेखनीय हस्तियों ने भी भाग लिया और बाद में यह व्याख्यान “कर्म योग: द योगा ऑफ एक्शन” (Karma Yoga: The Yoga of Action) नामक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुए। उनके सबसे यादगार व्याख्यानों में से एक का शीर्षक “काम का रहस्य" (The Secret of Work) था, जिसमें स्वामी विवेकानंद चर्चा करते हैं कि कैसे हम अक्सर अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं और विकास की खोज में ‘काम करने और उत्पादक होने’ के कार्य को महत्व देते हैं।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार, काम के विषय में हमारा अधिकांश भ्रम इसे “अच्छा" या “बुरा" मानने की हमारी प्रवृत्ति से उपजा है। विवेकानंद सुझाव देते हैं कि काम में सफलता की कुंजी बिना आसक्त हुए लगातार काम करने में छिपी है । वह कहते हैं कि आसक्ति के बिना अथक परिश्रम करना गीता में भी केंद्रीय विचार है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि “हमारी पसंद और हमारे द्वारा किए गए कार्य हमारी पहचान को आकार देते हैं” । उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके इस विचार को विलियम जेम्स ने अपनी आदत बना लिया। विवेकानन्द के अनुसार, हमारा प्रत्येक कर्म और विचार हमारे मन पर एक गहरी छाप छोड़ जाता है, भले ही वह तुरंत दिखाई न दे।
स्वामी विवेकानंद ने इस बात पर भी चर्चा की कि हमारे दिमाग पर पड़ने वाले प्रभाव हमारे चरित्र को कैसे आकार दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्ति लगातार नकारात्मक चीजों के बारे में सुनता, सोचता है और बुरे कार्यों में संलग्न होता है, तो उसका मन भी नकारात्मक छापों से भर जाएगा जो अवचेतन रूप से उसके व्यवहार को प्रभावित करेगा और उसे एक बुरा व्यक्ति बना देगा। दूसरी ओर, यदि कोई व्यक्ति अच्छे विचारों और कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, तो उसके लिए कुछ भी नकारात्मक करना बहुत मुश्किल हो जाता है, भले ही वह कितनी भी कोशिश करें। इस तरह जब किसी व्यक्ति का चरित्र पूरी तरह से स्थापित हो जाता है, तो वह एक कछुए की तरह हो जाता है, जिसने अपने सिर और पैरों को अपने खोल में दबा लिया होता है, और कोई भी चीज़ उसे अपनी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।
केवल लगातार अच्छा सोचने और अच्छा करने से ही किसी व्यक्ति के चरित्र को पूरी तरह से स्थापित किया जा सकता है और उसे सत्य तक पहुँचने और अपनी इंद्रियों तथा तंत्रिका-केंद्रों को नियंत्रित करने की अनुमति मिल सकती है।
स्वामी विवेकानंद के अनुसार, चरित्र विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू “सिर्फ अच्छी प्रवृत्तियों" को अंगीकृत करने के साथ-साथ आसक्ति से मुक्ति की इच्छा रखना भी है। इसके अलावा अच्छे या बुरे के विचार भी चरित्र विकास के लिए जरूरी हैं।
हमें अपने कार्यों या विचारों को अपने मन पर गहरी छाप नहीं छोड़ने देना चाहिए। इसके बजाय, हमें कर्म करना चाहिए लेकिन उन कर्मों से अपनी आत्मा को प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। एक पश्चिमी, व्यक्तिवादी मानसिकता के लिए इस अवधारणा को समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन विवेकानंद सुझाव देते हैं कि वास्तव में हमारा सबसे अच्छा काम तब होता है जब हम एक विशिष्ट परिणाम की इच्छा का त्याग कर देते हैं।
1900 में लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया (Los Angeles, California) में दिए गए अपने एक व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने घोषणा की- "मैंने अपने जीवन में जो सबसे बड़ा सबक सीखा है, वह काम के साधनों पर उतना ही ध्यान देना है जितना कि इसके अंत तक" ।
स्वामी विवेकानंद कार्य में आंतरिक स्वतंत्रता की अवधारणा पर जोर देते हुए कहते हैं कि अधिकांश लोग गुलामों की तरह काम करते हैं, जो प्यार या उद्देश्य के बजाय स्वार्थ से प्रेरित होते हैं, जिसका परिमाण केवल और केवल दुख होता है। हालांकि, अनासक्ति को प्राप्त करना एक कठिन प्रक्रिया है जिसके लिए जीवन भर प्रयास करने की आवश्यकता होती है।
स्वामी विवेकानंद एक सम्मानित आध्यात्मिक नेता थे जिन्होंने कर्म योग की अवधारणा को बढ़ावा दिया और पूरी दुनियां में यह विचार फैलाया कि हमें परिणामों की परवाह किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
कर्मयोग दो प्रकार के होते हैं:
1- निष्काम कर्म- वे कार्य जो आसक्ति रहित होते है और जिससे कोई बंधन नहीं होता।
2- सकाम कर्म- वे कार्य जो एक विशिष्ट अंतिम परिणाम के लिए किए जाते हैं और जो कर्ता के लिए बंधन का कारण बनते है।
इसलिए कार्य का अंतिम लक्ष्य सांसारिक सुख या अस्थायी सुख नहीं होता, बल्कि ज्ञान प्राप्ति और ब्रह्मांड की सीमाओं से मुक्ति होता है।
ऐसे महान कर्म योगी, दार्शनिक और आध्यात्मिक संत, स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्र के प्रति युवाओं के योगदान को सम्मानित करने और पहचानने के लिए और उन्हें देश के भविष्य को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार द्वारा 1984 में इस दिन अवकाश की स्थापना की गई थी।
संदर्भ
https://bit.ly/3k1Un7i
https://bit.ly/3irQ18P
चित्र संदर्भ
1. ध्यानमग्न स्वामी विवेकानंद और कर्मयोग पुस्तक को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. स्वामी विवेकानंद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्वामी विवेकानंद की कर्मयोग पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. ग्रेटर शिकागो के स्वामी विवेकानंद-हिंदू मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्वामी विवेकानंद और निकोला टेस्ला की बैठक को दर्शाता एक चित्रण (yotube)
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