मानव जब से विकास करना शुरू किया है तभी से यह हथियारों का प्रयोग बड़े पैमाने पर करते आ रहा है पर शुरुआती प्रयोग मूल रूप से भूख से जुड़ा हुआ था। जैसा की पाषाणकालीन हथियारों से देखा जा सकता है परन्तु धातु के खोज के बाद हथियारों में क्रान्तिकारी बदलाव आया तथा तलवारों, दराती, कुल्हाड़ी आदि की खोज हुयी ये हथियार शुरुआती हथियारों से एकदम अलग और मजबूत थे। आबादी बढनें के साथ-साथ मानवों में साम्राज्य स्थापना की भावना घर कर गयी (हड़प्पा सम्बन्धित पुरास्थलों से इसके प्रमाण प्राप्त हुये हैं) और राजशाही की शुरुआत हुई। विश्वभर के विभिन्न सभ्यताओं व संस्कृतियों से इसके प्रमाण प्राप्त होते हैं जैसे- असीरिया, सुमेरिया इत्यादि। 6ठीं शताब्दी के भारत में 16 महाजनपदों व 10 गणराज्यों कि स्थापना नें इस धारणा को और भी सत्यता प्रदान की। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण से सम्बन्धित दस्तावेजों से हथियारों का पता हमें चलता है। आधुनिक हथियारों की नींव द्वितीय शताब्दी से प्रथम शताब्दी ईस्वी में चीन में पड़ी जब पहली बार हान वंश के शासन में वहाँ पर बारूद की खोज की गयी। बारूद की यह खोज रसायनशास्त्रियों द्वारा अमर रहने का बुरादा बनाते वक्त हुआ था। प्रथम शताब्दी ईस्वी से 10-11 शताब्दी तक इसका प्रयोग मात्र पटाखों और तीरों के लिये किया जाता है। कुछ तथ्यों के अनुसार बारूद की खोज 9वीं शताब्दी में हुई परन्तु इस मतभेदों को यदि नज़रअंदाज किया जाये और हथियारों पर ध्यान दिया जाये तो मंगोलों और युरोपियनों के हाँथ में (11-13 शताब्दी) आने के बाद बारूद का प्रयोग गोला दागने हेतु किया जाने लगा और यहीं से प्रथम बार तोप का निर्माण हुआ। भारत में तोप बनाने का श्रेय बहामनी शासकों को जाता है उन्होने ही प्रथम बार 13वीं शताब्दी में तोपों का प्रयोग किया था। 13वीं शताब्दी के बाद भारत में कई तोपों का निर्माण किया गया और यही कारण रहा कि यहाँ पर कई बड़ी तोपों का निर्माण हुआ। महाराष्ट्र के परांदा किले ने कई तोपों को जन्म दिया। वहीं से बनी एक तोप मलिक-ए-मैदान का भी निर्माण यहीं पर हुआ। बाबर ने भारत पर तोपों के दम पर ही आक्रमण कर यहाँ पर अपने साम्राज्य कि स्थापना करवाया था। जमजमा तोप एक ऐसी तोप थी जिसके कारण कई युद्ध हुये तथा यह तोप कितने ही साम्राज्यों का हिस्सा बनी। जयपुर के जयगढ किले पर स्थित जयबाँण तोप एशिया कि सबसे बड़ी तोप है इसका निर्माण 18वीं शताब्दी में करवाया गया था तथा वर्तमान काल में यह तोप जयगढ किले पर ही स्थित है। भारत में कई प्रकार की तोपें बनती थी जिसमें से दो प्रमुख हैं पहली ढाली गयी तोपें जैसे की मलिक-ए-मैदान तोप और दूसरी कई परतों में छल्लों द्वारा जोड़ कर बनायी गयी तोप जिन्हे बाँगड़ी तोप के नाम से जाना जाता है। ये तोपें अंदर की तरफ या तो कई पट्टियों द्वारा बनायी जाती थी या तो एक गोल ढाला पाइप से बनायी जाती थीं तथा इनहे बाद में बाहर की ओर से इनपर छल्लों का प्रयोग किया जाता था ताकि ये तोप को फटने या फैलने से रोक सकें। बड़ी तोपों के बगल में एक पानी की टंकी बनायी जाती थी जिसमें तोप दागने वाला आदमी तोप दगते वक्त कूद जाता था क्युँकी तोप के आवाज से आदमी बहरा हो जाता था। लखनऊ शहर की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुयी थी यह अवध की राजधानी थी। ऐतिहासिक रूप से अवध कई लड़ाइयों को देख चुका है जिसमें बक्सर की लड़ाई, नेपाल की लड़ाई, 1857 की लड़ाई आदि। उपरोक्त लिखित सभी लड़ाइयों में अवध के नवाबों द्वारा तोपों का प्रयोग किया गया था। यहाँ पर प्रयुक्त तोपें मुगल तोपों की तरह थी। अंग्रेजों द्वारा भी यहाँ पर तोपें लायी गयी थी जो कि वर्तमान काल में रेजीडेन्सी में देखी जा सकती हैं। 1- पहला चित्र रेजीडेंसी का है जहाँ पर एक अंग्रेजी तोप रखी गयी है। 2,3- तोप परांदा किले का है। 1. द हिरोइक गैरिसन, वी.ए. स्टुअर्ट 2. इस्केप फ्राम हेल, वी.ए. स्टुअर्ट 3. फ्राम लिथिक टूल्स टू द गन पाउडर बेस्ड वैपन (एन अल्टरनेटिव स्टडी ऑफ ह्युमन इवोल्युशन) शिवम् दूबे, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
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