पुस्तकालय किसी भी समाज के लिये औषधि का कार्य करता है तथा यह शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। दुनिया का कोई भी शोध बिना पुस्तकालय के नही हो सकता यह वह स्थान होता है जहाँ पर विभिन्न विषयों का संचयन होता है। लखनऊ अपने बसाव के समय से ही संस्कृति व शिक्षा का केन्द्र था यही कारण है कि यहाँ पर विभिन्न पुस्तकालयों का निर्माण करवाया गया। लखनऊ के प्रमुख पुस्तकालयों में अमीर उद दौला पुस्तकालय अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अमीर उद दौला पुस्तकालय की स्थापना अवध के तालुकदारों द्वारा राजा अमीर उद दौला के याद में बनवाया गया था। इस पुस्तकालय के नींव का पत्थर सर हॉरकोर्ट बटलर द्वारा रखा गया था, जो की आगरा और अवध के गवर्नर थे। यह पुस्तकालय 22 जनवरी सन् 1921 ई. शनिवार के दिन बनना शुरू हुआ था। वर्तमान का यह पुस्तकालय वर्तमान मे स्थित परिसर से पहले ही बनाया जा चुका था सन् 1868 में। यह पुस्तकालय 1882 में प्रोविंसियल संग्रहालय का भाग था, तथा यह मात्र कुछ एक लोगों के लिये हि खुला करता था परन्तु सन् 1887 में इसे सिर्फ विद्यार्थियों के लिये खोला गया। 1907 में बारादरी की ऊपरी मंजिल इस पुस्तकालय के लिये दे दिया गया पर यह पुस्तकालय सन् 1910 में छोटा छतर मंजिल में भेज दिया गया तथा इसको सभी के लिये खोल दिया गया और तभी से इसका नाम पब्लिक लाइब्रेरी पड़ गया। 6 मार्च सन् 1926 इस पुस्तकालय को वर्तमान स्थान पर विस्थापित कर दिया गया तथा यह तब से यहीं पर कार्यन्वित है। 1926 ई. में ही इसे युनाइटेड प्रॉविंस सरकार को उपहार स्वरूप तालुकदारों द्वारा दे दिया गया और यह अमीर उद दौला नाम से जाना जाने लगा। अमीर उद दौला का पूरा नाम अमीर उद दौला राजा मोहम्मद अमीर हसन खान था जो कि मोहम्मदाबाद से सम्बन्धित थें। 1947 ई. में इस पुस्तकालय की कुछ जमीन पार्क बनाने के लिये तालुकदारों द्वारा दिया गया था। वर्तमान काल में भी यह पुस्तकालय अपनी सेवा कितने ही युवाओं के बेहतर भविष्य के लिये दे रहा है।
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