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आदिकवि कालिदास, जिनकी रचनाओं ने पश्चिम को साहित्य और प्राकृति से प्रेम करना सिखाया

लखनऊ

 15-12-2022 11:28 AM
ध्वनि 2- भाषायें

कालिदास हमारी राष्ट्रीय विरासत के सबसे अनमोल भंडार के एक अमूल्य रत्न के रूप में जाने जाते हैं। उनकी रचनात्मक कल्पना, प्राकृतिक सौंदर्य और मानवीय भावनाओं के दो तत्वों का पूर्णतः संलयन करती है। उन्होंने मध्य युग के गुरुओं के साथ-साथ विवेकानंद और टैगोर जैसे भारतीय पुनर्जागरण के महान अग्रदूतों को भी प्रभावित किया है। कई प्राचीन और मध्यकालीन पुस्तकों में यह वर्णित है कि कालिदास राजा विक्रमादित्य के सबसे प्रिय दरबारी कवि थे। वह न केवल नाटकीय कलाओं में बल्कि दर्शन, कानून, अर्थशास्त्र, प्राणीशास्त्र, संगीत और ललित कलाओं में भी काफी अच्छे थे। कालिदास हमेशा से ही भारतीय संस्कृति के सबसे महान प्रतिपादकों में से एक के रूप में दुनिया भर में चमकते रहे। वहीं पश्चिमी प्राच्यविदों की कालिदास में गहरी दिलचस्पी ने, उनके अध्ययन को आधुनिक समय में भी अत्यंत लोकप्रिय बना दिया।
हालांकि इस महान लेखक के वास्तविक जीवन के बारे में कोई भी ठोस जानकारी संरक्षित नहीं हो पाई है। वास्तव में, कालिदास किस काल में हुए और वे मूलतः किस स्थान से संबंध रखते थे, इसमें अभी भी काफ़ी विवाद है।
कुछ ऐतिहासिक विवरण कालिदास को बनारस से संबंधित बताते हैं। इनके अनुसार, कालिदास एक ब्राह्मण पुत्र थे। लेकिन छह महीने की उम्र में ही उन्हें उनके माता पिता द्वारा त्याग दिया गया था । जिसके बाद एक बैल-चालक ने उन्हें गोद ले लिया था। आश्चर्य की बात यह है कि वह औपचारिक शिक्षा के अभाव में ही बड़े हुए। कालिदास की प्रमुख साहित्यिक गतिविधियों का स्थान भी अनिर्धारित है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि, जैसाकि उनकी रचनाओं में बार-बार उल्लेखित सूक्ष्म भौगोलिक संकेतों से पता चलता है, उन्होंने बड़े पैमाने पर कई यात्राएँ की थी।
भारत में उनकी प्रशंसा उनके सभी अनुयायियों और उत्तर दिनांकित कवियों और आलोचकों जैसे ममता, आनंदवर्धनाचार्य, अभिनव गुप्ता आदि द्वारा की जाती है । उनकी काव्य शैली ने इस 20वीं शताब्दी के सभी उत्तरकालीन कवियों से लेकर आधुनिक कवियों तक को प्रभावित किया। न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में कालिदास की सभी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं। उनका सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ एक ऐसी रचना है, जिसके कारण कालिदास को पूरी दुनिया में प्रसिद्धि प्राप्त हुई। यह कालिदास की ऐसी पहली रचना थी, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। 1791 में इसका जर्मन अनुवाद किया गया था, और जिसे एक जर्मन कवि, नाटककार, उपन्यासकार, वैज्ञानिक, राजनेता, थिएटर निर्देशक और आलोचक जोहान वोल्फगैंग वॉन गेथे (Johann Wolfgang von Goethe ) द्वारा काफी प्रशंसा मिली थी। आज हमारे पास कालिदास की सात रचनाएँ उपलब्ध हैं: जिसमें उनके तीन नाटक, दो महाकाव्य, एक शिष्ट कविता और एक वर्णनात्मक कविता शामिल है।
उनकी एक अन्य रचना ‘मेघदूतम’ भी, अनेक ऐतिहासिक विद्वानों द्वारा कई मायनों में कालिदास की सभी रचनाओं में सबसे बेहतरीन और सबसे उत्तम मानी गई है। दिलचस्प रूप से, इस रचना को 1960 के दशक तक, भारत के बाहर जाना भी नहीं जाता था, लेकिन आज यह विश्व साहित्य की सबसे उत्कृष्ट कृतियों में से एक मानी जाती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा की आदिकवि कालिदास को, संस्कृत में लिखने वाले किसी भी अन्य लेखक (कवि) की तुलना में भारत में अधिक व्यापक रूप से पढ़ा गया है। कालिदास का नाम और काम, भारतीय और कुछ मायनों में पश्चिमी कविता जगत में लंबे समय से हावी रहा है। जर्मन प्रकृतिवादी, यात्री और राजनेता अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander Von Humboldt) ने कालिदास की रचना शकुंतला के बारे में लिखा था कि “शकुंतला के लेखक कालिदास उस प्रभाव के एक उत्कृष्ट वर्णनकर्ता हैं, जो प्रकृति प्रेमियों के दिमाग पर प्रभाव डालती है।”
विल ड्यूरेंट (Will Durant) ने द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन-अवर ओरिएंटल हेरिटेज (The Story of Civilization: Our Oriental Heritage) में भारत की संस्कृति के गहन अध्ययन की आवश्यकता को संबोधित करते हुए शकुंतला के प्रभावशाली व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। 1789 में सर विलियम जोन्स (Sir William Jones) ने कालिदास की शकुंतला का अनुवाद करके एक महानतम भारतविद् के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। 1791 में जर्मन में इसके पुनः अनुवाद ने महान जर्मन कवियों जैसे हेरडर और गेथे (Herder and Goethe) तथा फ्रेडरिक श्लेगल (Friedrich Schlegel) को भी गहराई से प्रभावित किया। कालिदास का ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ पहला ऐसा संस्कृत नाटक था, जो पूरे यूरोप को हिंदू नाटकों को भारत के अनमोल खजाने के रूप में प्रदर्शित करता था। समय के साथ शकुंतला की भावपूर्ण प्रेम कथा सबसे अधिक प्रसारित भारतीय उत्कृष्ट कृतियों में से एक बन गई। इसे 1790 और 1807 के बीच इंग्लैंड में पांच बार पुनर्मुद्रित किया गया, वहीँ पूरे यूरोप में कई बार इसका अनुवाद और प्रकाशन किया गया।
सर विलियम जोन्स द्वारा इसका अनुवाद करने के बाद की सदी में, ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ यूरोप में बारह अलग-अलग भाषाओं में छत्तीस अनुवादों में दिखाई दी। जोन्स ने 1792 में कालिदास की एक और कविता, ‘ऋतुसंहारम’ का भी अनुवाद किया। उन्होंने इसे कलकत्ता में द सीजन्स, ए डिस्क्रिप्टिव पोएम (The Seasons, A Descriptive Poem) के रूप में प्रकाशित किया। ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ ने विशिष्ट रूप से 18वीं और 19वीं शताब्दी में भारत में स्थापित कई यूरोपीय ओपेरा (Opera) का भी नेतृत्व किया। कालिदास एकमात्र ऐसे संस्कृत कवि हैं, जिनके बारे में यह ठोस रूप से कहा जा सकता है कि “उन्हें यूरोप में उचित रूप से सराहा गया”। अब तक किसी भी दूसरे देश में किसी अन्य कवि ने स्त्री और पुरुष के बीच के सुखद प्रेम का ऐसा गीत नहीं गाया जैसा कि कालिदास ने गाया था। उनकी हर एक रचना एक प्रेम-कविता है। कालिदास की प्रेम-कविता आज भी उतनी ही सार्थक और सत्य है, जितनी कि वह पंद्रह सौ साल पहले थी।

संदर्भ
https://bit.ly/3BsniHc
https://bit.ly/3hlR5e3
https://bit.ly/3Yh1Bnh
https://bit.ly/3FJynq9

चित्र संदर्भ
1. आदिकवि कालिदास और उनकी प्रमुख रचनाओं के एक दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. आदिकवि कालिदास को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बच्चे के साथ युवती को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
4. ‘मेघदूतम’ को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
5. शकुन्तला दो स्त्रियों के साथ राजा दुष्यंत को चकित कर देती है। इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. मेघदूत की रचना करते कालिदास को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)



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