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गहरे समुद्री अन्वेषण के क्षेत्र में भारत को कौन सा खजाना मिल गया?

लखनऊ

 08-12-2022 11:22 AM
समुद्री संसाधन

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की आप जिस भी मोबाइल या कंप्यूटर में इस लेख को अभी पढ़ रहे है, उसके विद्युतीय(Electronic) पुर्ज़ों के निर्माण के प्रयोग होने वाली धातु संभवतः कहीं दूर गहरे समुद्रों से निकाली गई हो! और धातुओं के ऐसे ही लाभकारी अनुप्रयोगों ने, समुद्र के भीतर खनन को अत्यंत लाभकारी सौदा बना दिया है। इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (International Seabed Authority (ISA) की असेंबली के 27वें सत्र में कई देशों ने गहरे समुद्र में खनन के भविष्य पर विचार-विमर्श किया। इस असेंबली में कुछ देशों ने खनन योजनाओं पर विराम लगाने का आह्वान किया, जबकि कई अन्य देशों ने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रक्रिया में जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए।
वास्तव में ,गहरे समुद्र में खनन करने के बाद, समुद्र तल से कोबाल्ट (Cobalt), मैंगनीज (Manganese), जस्ता (Zinc) और अन्य दुर्लभ धातुओं से भरपूर, अयस्कों को निकाला जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इन अयस्कों में इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता, स्मार्टफोन (Smartphone) और लैपटॉप की बैटरी बनाने में प्रयोग होने वाले आवश्यक खनिज शामिल होते हैं। समुद्र की गहराइयों में पाए जाने वाले ऐसे ही दुर्लभ खनिजों में बहुधात्विक पिंड या पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स (Polymetallic Nodules) भी शामिल हैं, जिन्हें मैंगनीज नोड्यूल्स (Manganese Nodules) के नाम से भी जाना जाता है। यह आलू के आकार के पिंड होते हैं, जो गहरे सागरों अथवामहासागरों के तल पर बहुतायत में पाए जाते हैं। मैंगनीज और लोहे के अलावा, इनमें निकल (Nickel) , तांबा, कोबाल्ट, सीसा आदि अयस्क भी होते हैं, जो आर्थिक और सामरिक तौर पर सभी देशों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
हालाँकि ये अयस्क किसी भी गहराई पर हो सकते हैं, लेकिन इनकी उच्चतम सांद्रता 4,000 और 6,000 मीटर की गहराई में पाई गई है। इन पिंडों में निकेल और कोबाल्ट भी होते हैं, जो बिजली के वाहनों को चलाने के लिए आवश्यक बैटरी के उत्पादन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। कार्बन उत्सर्जन शून्य करने और जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के मार्ग में, इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicle (EV) लक्ष्यों को प्राप्त करना, आज सभी देशों के लिए प्राथमिकता बन गया है। इसके कारण निकल और कोबाल्ट जैसी धातुओं की मांग में भारी वृद्धि हुई है। इसलिए इन नोड्यूल्स या पिंडों की मांग भी अत्यधिक बढ़ गई है।
बहुधात्विक पिंडों में दुर्लभ पृथ्वी तत्व और धातुएं भी होती हैं जो उच्च तकनीकी उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण होती हैं। इन दुर्लभ पृथ्वी खनिजों को सोना, चांदी और जस्ता जैसे मूल्यवान खनिजों का भी बड़ा स्रोत माना जाता है। भारत ऐसा पहला देश है जिसने 1987 में नोड्यूल्स के एक अग्रणी निवेशक का दर्जा प्राप्त किया था ।संयुक्त राष्ट्र द्वारा नोड्यूल्स की खोज तथा उपयोग के लिए मध्य हिंद महासागर बेसिन में एक विशेष क्षेत्र आवंटित किया गया था। भारत ने 2002 में इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (International Seabed Authority) के साथ मध्य हिंद महासागर बेसिन में पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स की खोज के लिए 15 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। 2016 में, भारत को 2022 तक इस अनुबंध का विस्तार मिला। माना जा रहा है कि इस खोज से वाणिज्यिक और रणनीतिक मूल्य के संसाधनों के लिए नए अवसर खुलेंगे। यह परिकल्पना की गई है कि उस बड़े भंडार की 10% वसूली भी अगले 100 वर्षों के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा कर सकती है।
भारत कोबाल्ट की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। तांबे और निकल के मामले में भी भारत एक अनिश्चित स्थिति में है। साथ ही वर्तमान में, चीन 95% से अधिक दुर्लभ पृथ्वी धातुओं को नियंत्रित कर रहा है। लेकिन भारत द्वारा किया जाने वाला यह अन्वेषण दुनिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम कर देगा। यह जापान, जर्मनी और दक्षिण कोरिया के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को भी मजबूत करेगा। हाल ही में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा भारत के गहरे समुद्र अन्वेषण जहाज 'समुद्र रत्नाकर' (Samudra Ratnakar) का अधिग्रहण इस संबंध में एक महत्वपूर्ण विकास है। रत्नाकर के साथ ही भारत, वराह-1 (Varaha-1) नामक एक स्व-चालित सीबेड माइनिंग मशीन (Self Propelled Seabed Mining Machine) का निर्माण भी कर चुका है, जिसका नाम भगवान विष्णु के वराह अवतार के नाम पर रखा गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (National Institute of Ocean Technology (NIOT) में वैज्ञानिकों की एक छोटी टीम द्वारा डिजाइन और विकसित, वराह-1, पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स के संग्रह के लिए एक बहुपयोगी खनन मशीन है। लेकिन इसमें कोई यात्री नहीं होगा, और इसका काम 6,000 मीटर तक गहरे समुद्र की स्थिति में लगातार लंबे समय तक पिंडों के संग्रह और पम्पिंग (Pumping) तक सीमित है। वराह -1 ने मध्य हिंद महासागर में 5,270 मीटर की ऊंचाई पर एक क्षेत्र परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। हालांकि, यह एक अन्वेषण परीक्षण है और इससे वाणिज्यिक खनन तभी शुरू होगा जब संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध अंतर्राष्ट्रीय सीबेड अथॉरिटी (International Seabed Authority (ISA), भारत सहित सभी पक्षों द्वारा स्वीकृत एक खनन कोड लेकर आएगी। गहरे समुद्र में खनन करने के लिए इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी द्वारा भारत को 75,000 sq.km समुद्री क्षेत्र आवंटित किया गया है।
समुद्री जैव विविधता पर संभावित नकारात्मक प्रभावों का हवाला देते हुए कई देश, कंपनियां, गैर सरकारी संगठन, गठबंधन और पर्यावरणविद् गहरे समुद्र में खनन के विरुद्ध बने हुए हैं। लेकिन आईएसए(ISA) ने हाल ही में एक वाणिज्यिक कंपनी को प्रशांत महासागर में क्लेरियन-क्लिपर्टन जोन (Clarion-Clipperton Zone) में खनन परीक्षण शुरू करने की अनुमति दे दी है। आज भी कई पर्यावरणविद गहरे समुद्र में खनन पर रोक के पक्ष में हैं। उन्हें भय है कि, गहरे समुद्र के बारे में हम अभी भी बहुत कम जानते हैं, जिसके कारण हम समुद्री जैव विविधता और कार्बन चक्र पर खनन के संभावित दुष्प्रभावों की भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं। उन्हें डर है की खनन प्रक्रिया में धात्विक चट्टानों के अलग होने के बाद बचा हुआ पानी और तलछट वापस समुद्र में छोड़ दिया जाएगा। यदि तलछट के ढेर एक अलग गहराई पर छोड़े जाते हैं, तो सूरज की रोशनी कुछ गहराई तक ही सीमित हो जाती है। यह फाइटोप्लांकटन (Phytoplankton), ज़ोप्लांकटन (Zooplankton) और कुछ मध्य जलीय जीवों को प्रभावित करता है।
समुद्री जैव विविधता पर गहरे समुद्र में खनन के प्रभावों का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं का दावा है कि मानव जाति के इतिहास में सबसे बड़े खनन अभियान के साथ आगे बढ़ने से पहले महासागरों की भूमिका को समझने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। हमें यह तय करना है कि क्या हम अपनी भविष्य की आवश्यकताओं को उपलब्ध संसाधनों से पूरा कर सकते हैं, जो बहुत तेजी से समाप्त हो रहे हैं?

संदर्भ

https://bit.ly/3XNiCW2
https://bit.ly/3ukUqwK
https://bit.ly/3VyHuQ2
https://bit.ly/3P2X7MX

चित्र संदर्भ
1. समुद्र तल में पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. पॉलिमेटेलिक नोड्यूल्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3.बहुधात्विक पिंड के अन्वेषण को दर्शाता एक चित्रण (Spektrum der Wissenschaf)
4. अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण के क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. नोड्यूल बहुतायत में भिन्नता को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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