| Post Viewership from Post Date to 06- Jan-2023 (31st Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1158 | 727 | 0 | 1885 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
आम नागरिकों के जीवन स्तर के सुधार में योगदान देने के लिए, सभी बैंकिंग प्रणालियों की महत्वपूर्ण भूमिका की मान्यता में प्रत्येक वर्ष 4 दिसंबर को बैंकों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में नामित किया गया है । निजी क्षेत्र के बैंकों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मुख्य रूप से उन निकायों के आधार पर विभेदित किया जाता है, की जिनके पास अधिकांश हिस्सेदारी (शेयर) होती हैं।निजी क्षेत्र के बैंकों के अधिकांश शेयर निजी व्यक्तियों और निगमों के पास होते हैं, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अधिकांश शेयर सरकार के पास होते हैं।
निजी क्षेत्र के बैंक:
मुख्यतःअपने अत्यधिक प्रतिस्पर्धी दृष्टिकोण और तकनीकी श्रेष्ठता के लिए जाने जाते हैं।परिणामस्वरूप, निजी क्षेत्र के बैंकों में रोजगार (career) भी अधिक प्रतिस्पर्धी होता है। यहां कर्मचारियों को कठिन लक्ष्यों को पूरा करने और अच्छी करियर वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए उत्तम प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है। इनमें जोखिम-इनाम घटक भी अधिक होता है, और पारिश्रमिक भी सार्वजनिक बैंकों की तुलना में ज्यादा हो सकता है, लेकिन नौकरी की सुरक्षा सार्वजनिक स्वामित्व वाले बैंकों के बराबर नहीं होती है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक:
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने उत्तम संगठनात्मक ढांचे के लिए जाने जाते हैं और अत्यधिक ग्राहको तक पहुंच के लिए जाने जाते हैं। हालांकि, इन बैंकों में निजी स्वामित्व वाले बैंकों की तुलना में कार्य का वातावरण भी अपेक्षाकृत कम प्रतिस्पर्धी है। नतीजतन, कर्मचारी ज्यादातर लक्ष्यों को पूरा करने और एक टीम में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने कर्मचारियों को उनके ज्ञान और कौशल को अद्यतन करने में मदद करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करने पर अधिक जोर देते हैं ताकि वे लंबे समय तक बेहतर प्रदर्शन कर सकें। इनमें नौकरी की सुरक्षा निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना में बहुत अधिक होती है, और कुछ के लिए तो यह दीर्घकालिक कैरियर बनाने के लिए मुख्य आकर्षण भी होता है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की बड़ी हिस्सेदारी होती है, और प्रबंधन नियंत्रण सरकार के हाथों में भी निहित होता है। निजी क्षेत्र के बैंकों में, अधिकांश हिस्सेदारी निजी व्यक्ति या संस्था के पास होती है; इसलिए प्रबंधन नियंत्रण निजी हाथों में होता है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारत की संसद द्वारा पारित अधिनियमों जैसे भारतीय स्टेट बैंक (सहायक बैंक) अधिनियम, 1959 और बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम (1970, 1980) द्वारा शासित होते हैं, जबकि निजी क्षेत्र के बैंक कंपनियों के द्वारा शासित कानून के द्वारा पंजीकृत होते हैं।
जैसा कि भारत सरकार के पास सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बहुसंख्यक हिस्सेदारी है, सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक केंद्रीय सतर्कता आयोग और आरटीआई(RTI) अधिनियम 2005 के अंतर्गत आते हैं। दूसरी तरफ, निजी क्षेत्र के बैंक उपरोक्त अधिनियमों के अंतर्गत नहीं आते हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में निदेशक और गैर-कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति बैंक बोर्ड ब्यूरो(Banks Board Bureau) की सिफारिश पर की जाती है। वहीं निजी क्षेत्र में बैंकों में नियुक्तियां आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुसार की जाती हैं।
निजी बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के फायदे -दस्तावेजों के अनुसार, सरकार द्वारा संचालित बैंक वित्तीय समावेशन में उत्तम होते हैं जबकि उनके निजी समकक्ष लाभ अधिकतमकरण में बेहतर होते हैं।
1.निजी बैंकों की तुलना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक लागत दक्षता में बेहतर है।
2.सार्वजनिक बैंक कर्षण प्राप्त करने के लिए प्रति-चक्रीय मौद्रिक नीति कार्रवाई में भी मदद करते हैं।
3.सरकार द्वारा संचालित बैंकों को बाजार का अधिक विश्वास प्राप्त हुआ है।
4.कमजोर बैलेंस शीट (weak balance sheet) की आलोचना के बावजूद, आंकड़ों से पता चलता है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा कोविड-19 महामारी के झटकों को उल्लेखनीय रूप से उत्तम रूप में संभाला गया है ।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के चार वर्गों के विलय (mega-merger) ने मजबूत तथा अधिक प्रतिस्पर्धी बैंकों का निर्माण किया है।और अंत में, नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (National Asset Reconstruction Company (NARCL)) की स्थापना से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को खराब ऋणों को सही करने में भी मदद मिलेगी।
निजी बैंकों के लिए कॉरपोरेट गवर्नेंस (corporate governance) मानदंड दो साल पहले अस्तित्व में आए, और इसने उनके बोर्डों के कामकाज पर रोशनी डाली। आज तक, सरकार द्वारा संचालित बैंकों को इस संदर्भ में असहजता के माध्यम से नहीं रखा गया है। अप्रैल 2018 में, तत्कालीन आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने सार्वजनिक रूप से कहा कि बैंकिंग नियामक अधिनियम (1949) के कुछ प्रावधानों के कारण सरकार द्वारा संचालित बैंकों पर बैंकिंग नियामक की शक्तियाँ बंधी हुई हैं।
आरबीआई के पर्यवेक्षी आंकड़ों से पता चलता है कि सार्वजनिक और निजी बैंकों के मामले में आरबीआई की नियामक भूमिका अलग-अलग नहीं है। यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक की स्थिति को लेकर ग्राहक जमाकर्ताओं की चिंताओं को ध्यान में रखकर 2020 की शुरुआत में जमा निकासी का उदाहरण लें। इस प्रकरण के समय जमा निकासी की समस्या केवल छोटे निजी बैंकों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि कमजोर वित्तीय स्थिति वाले कुछ सरकारी बैंकों के लिए भी थी। इन बैंकों द्वारा दूसरों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक ब्याज दरों की पेशकश के बावजूद बहिर्वाह हुआ।पिछले कुछ वर्षों में, निजी बैंकों ने ऋण देने और धन जमा करने में सार्वजनिक क्षेत्र की भारी बढ़त को कम कर दिया है। सार्वजनिक बैंकों का कुछ साल पहले तक बाजार पर 70 प्रतिशत से अधिक नियंत्रण था, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी 2020 के आंकड़ों के अनुसार, ऋण देने में सार्वजनिक बैंकों की बाजार हिस्सेदारी 2015 में 74.28 प्रतिशत से गिरकर 2020 में 59.8 प्रतिशत हो गई है। जबकि इसी अवधि में निजी बैंकों की हिस्सेदारी 21.26 प्रतिशत से बढ़कर 36.04 प्रतिशत हो गई है।
धन जमा पर भी निजी बैंकों की बाजार हिस्सेदारी 2015 में 19.44 फीसदी से बढ़कर 2020 में 30.35 फीसदी हो गई थी, जबकि सार्वजनिक बैंकों की हिस्सेदारी 76.26 फीसदी से घटकर 64.75 फीसदी हो गई थी।
सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के बीच का अंतर पिछले पांच वर्षों में ऋण देने और धन जमा करने दोनों मामले में तेजी से कम हुआ है। इस अवधि में, निजी बैंकों को कई नए लाइसेंस दिए गए - जैसे कि दो नए यूनिवर्सल बैंकों (बंधन बैंक और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक (IDFC First Bank)) ने परिचालन शुरू किया जबकि 10 छोटे वित्त बैंकों ने भी अपनी सेवाएं शुरू की। परिणामस्वरूप , सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक नए पूंजी प्रवाह के लिए सरकार पर अत्यधिक निर्भर रहे हैं। सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में राज्य द्वारा संचालित उधारदाताओं में 3,18,997 करोड़ रुपये की पूंजी डाली गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा 70,823 करोड़ रुपये की तुलना में निजी बैंक बाजारों से 1.15 लाख करोड़ रुपये की पूंजी जुटाने में सक्षम थे। खराब ऋणों में तेज वृद्धि के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अधिक पूंजी की आवश्यकता थी।
संदर्भ:
https://bit.ly/3gOICQi
https://bit.ly/3UyAnG1
https://bit.ly/3AX1seL
https://bit.ly/3AVAowE
चित्र संदर्भ
1. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निजी क्षेत्र के बैंकों की तुलना को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. निजी क्षेत्र के बैंकों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. स्टेट बैंक के बाहर लगी भीड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कॉर्पोरेशन बैंक चंद्रपुर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)