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भगवान श्री कृष्ण के ‘विश्वरूप’ की अवधारणा वैदिक काल से ही भारतीय दार्शनिक परंपराओं में गहराई से निहित है, जिसे भगवान विष्णु का सर्वोच्च स्वरूप माना जाता है। विश्वरूप को, लोकप्रिय रूप से, भगवान श्री हरि विष्णु के लौकिक रूप में जाना जाता है जिसे उनके अवतार श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में अर्जुन के समक्ष प्रकट किया था। इस लौकिक रूप को भगवद गीता के दो अध्यायों (अध्याय 10 और 11) में वर्णित किया गया है।
महाभारत के युद्ध में, जब महान धनुर्धर अर्जुन तथा उनके पांडव भाई अपने ही चचेरे भाइयों, कौरवों के विरुद्ध युद्ध के लिए खड़े होते हैं, तो अपने ही परिवार के विरुद्ध लड़ने या न लड़ने की नैतिक दुविधा का सामना करते हुए, अर्जुन के सामने अंतरात्मा और पारिवारिक मोह का संकट खड़ा हो जाता है।
यहीं पर अर्जुन को समझाने के लिए, उन्हीं के सारथी बने भगवान श्री कृष्ण, अर्जुन को जीवन और मृत्यु के साथ-साथ धर्म (कर्तव्य) और योग के बारे में “भगवद गीता” के रूप में प्रवचन देते हैं। अध्याय 10 और 11 में, कृष्ण ने खुद को “सर्वोच्च” के रूप में प्रकट किया और अंत में अर्जुन के समक्ष अपना विश्वरूप प्रदर्शित किया। आशंकाओं से घिरे योद्धा अर्जुन, श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते है कि वे उसे अपने विश्व रूप या सभी ब्रह्माण्डों में व्याप्त अपने अनंत ब्रह्माण्डीय विराट रूप का दर्शन कराएँ। जिसके पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण उन पर कृपा करते हुए अर्जुन को अपनी दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं। दिव्य दृष्टि से अर्जुन भगवान के अद्भुत अनंत स्वरूप में अनगनित मुख, आँखें, भुजाएँ और उदर देखते है। वह देखते है कि उनके विश्वरूप / विराट रूप का कोई आदि या अन्त नहीं है और वह प्रत्येक दिशा में अपरिमित रूप से बढ़ भी रहा है। उस रूप का तेज आकाश में एक साथ चमकने वाले सौ सूर्यों के प्रकाश से भी अधिक है। अर्जुन देखते हैं कि भगवान के नियम के भय से तीनों लोक कांप रहें हैं। विश्वरूप के असंख्य रूप, नेत्र, मुख, और भुजाएँ हैं। जगत के सभी प्राणी उन्हीं के अंश हैं। वह अनंत ब्रह्मांड है, जिसका कोई आदि या अंत नहीं है। अंततः दृष्टि के पैमाने को सहन करने में असमर्थ और भय से ग्रसित, अर्जुन श्री कृष्ण से अपने चतुर्भुज विष्णु रूप में लौटने का अनुरोध करने लगते हैं। अपने इस पूर्ण रूप में कृष्ण की शिक्षाओं और दर्शन से पूर्णतः प्रोत्साहित होकर अर्जुन ने महाभारत युद्ध प्रारंभ कर दिया। महाभारत में दो अन्य विवरण भी हैं, जहां कृष्ण या विष्णु-नारायण भगवद गीता में “विश्वरूप” धारण करते हैं।
जब पांडवों और कौरवों के बीच, पांडवों के दूत के रूप में श्री कृष्ण संधि कराने में विफल हो जाते हैं और दुर्योधन उन्हें बंदी बनाने का प्रयास करता है तो उस क्षण, भी श्री कृष्ण घोषणा करते हैं कि, वह केवल एक मानव से कहीं अधिक हैं, और कौरव नेता दुर्योधन तथा उनकी सभा को अपना लौकिक रूप प्रदर्शित करते हैं। हालाँकि, उनके इस रूप को भयानक रूप में वर्णित किया गया है, जिसका केवल दिव्य दृष्टि वाले लोग ही सामना कर सकते थे।
विष्णु (नारायण) के विश्वरूप की अन्य झलक दिव्य ऋषि नारद को भी प्रकट हुई थी। उनके इस रूप को विश्वमूर्ति कहा जाता है, जहां भगवान की एक हजार आंखें, एक सौ सिर, एक हजार पैर, एक हजार पेट, एक हजार भुजाएं और कई मुंह हैं। उनके पास शस्त्रों के साथ-साथ तपस्वी के गुण भी हैं। विश्वरूप का प्रयोग ‘हरिवंश’ में विष्णु के "बौने" वामन अवतार के संदर्भ में भी किया गया है।
हालांकि, श्रीकृष्ण तथा भगवान विष्णु के इस भव्य रूप, “विश्वरूप” को केवल अर्जुन ही अपनी दिव्य दृष्टि से देख सके हैं।उसके बाद भी , पीढ़ी दर पीढ़ी, उभरने वाले नए-पुराने कलाकार विभिन्न श्रोतों से शिक्षा लेकर भगवान विष्णु के उसी आलौकिक रूप को पकड़ने या उचित रूप से चित्रित करने का प्रयास करते आ रहे हैं । यह एक कठिन कार्य है, क्योंकि उनका (भगवान विष्णु ) दर्शन एक ही साथ भव्य, भयानक और चमत्कारिक भी है।
ग्यारहवें अध्याय के शब्दों की प्रतिभा से चित्र का मिलान करना आसान कार्य नहीं है, और प्रत्येक घटना, व्यक्ति और वस्तु को केवल एक छवि में समेटना लगभग असंभव है। मुकुट, गदा, चक्र की उग्र किरणें', 'नदी के पानी, 'बादलों, का गरजना, समुद्र, कई मुंह, सैड़कों आंखें, सूर्य देवता, ब्रह्मांड के देवता, भोर के जुड़वां देवता, वायु देवता, संगीतकारों की भीड़, राक्षस और संत जैसे अनगिनत दृश्यों को एक चित्र में सम्मिलित करना सचमुच चुनौतीपूर्ण कार्य है।
परंतु हाल ही में प्रकाशित एक पुस्तक “विश्वरूप: पेंटिंग्स ऑन द कॉस्मिक फॉर्म ऑफ़ कृष्णा-वासुदेव” (Vishvarupa: Painting on the Cosmic Form of Krishna-Vasudeva) में नीना रंजन (Neena Ranjan) द्वारा दर्शाए गए विश्वरूप के चित्र को काफी सराहना प्राप्त हुई। नीना रंजन एक सिविल सेवक हैं, जिन्होंने भारत सरकार और राज्य सरकार के कला और संस्कृति विभागों और उद्योग तथा वाणिज्य विभागों में भी लंबे समय तक कार्य किया है । उनकी शैक्षणिक रुचि कला, कला इतिहास और दर्शन में है। उन्होंने 1993 में पीएचडी कार्य (PhD Thesis) के लिए “विश्वरूप” को एक विषय के रूप में लिया।
यह पुस्तक वर्षों से विभिन्न स्रोतों से विश्वरूप चित्रों को एकत्र करने के व्यापक प्रयासों का परिणाम है। यह उनकी पहली पुस्तक है। श्रीमती नीना के अनुसार कुछ वर्ष पहले, जब उन्होंने विश्वरूप के चित्रों की जांच करने और उन पर लिखने का बीड़ा उठाया, तो उनका एक महत्वपूर्ण उद्देश्य इस ब्रह्मांडीय रूप के इतिहास को समझना भी था। उन्होंने इस विषय पर कई संबंधित लेखों और पुस्तकों का अध्ययन किया, साथ ही कला इतिहास की पुस्तकों का भी अध्ययन किया और इस ब्रह्मांडीय दृष्टि पर चित्रों की उत्सुकता से खोज की। उनके द्वारा चित्रित विश्वरूप की छवि रूपों और आकृतियों तथा प्रतीकों से भरी हुई है।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म से संबंधित ऐसी ही घटनाओं को दर्शाने वाली एक अंकीय झांकी (Digital Tableau) छह दिनों तक लखनऊ के न्यू गणेशगंज (New Ganesh Ganj) में भी प्रदर्शित की गयी थी। इस अवसर पर लखनऊ के माधव मंदिर में दूध, दही, शहद, फलों के रस और कई नदियों के जल से विशेष अभिषेक का आयोजन किया गया था। अभिषेक के लिए लोगों द्वारा विशेष टिकटें भी निश्चित किये गए। इस अवसर के लिए विशिष्ट रूप से राधा-कृष्ण की मूर्तियों को वृंदावन से लाया गया। यह आयोजन 20 अगस्त को 'मटकी फोड़' प्रतियोगिता के साथ समाप्त हो गया था।
संदर्भ
https://bit.ly/2FLwlUf
https://bit.ly/3Y1T9se
https://bit.ly/3OWi5gl
https://bit.ly/3gQnDwC
चित्र संदर्भ
1. अर्जुन को उपदेश देते श्री कृष्ण एवं विश्वरूप को दर्शाता एक चित्रण (facebook)
2. आशंकाओं से घिरे अर्जुन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विश्वरूप अवतार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. वैकुण्ठलोक में विश्राम करते भगवान विष्णु को दर्शाता एक चित्रण (lookandlearn)
5. विश्वरूप के दर्शन करते अर्जुन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. “विश्वरूप: पेंटिंग्स ऑन द कॉस्मिक फॉर्म ऑफ़
कृष्णा-वासुदेव” को दर्शाता एक चित्रण (snapdeal)
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