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कोरोना महामारी की प्रचंडता के पश्चात दुनियाभर में चमगादड़ों के प्रति काफी सतर्कता बरती जा रही है। लेकिन वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि, यदि हमने केवल चमकादड़ो को इसका जिम्मेदार मानकर उनके निवास स्थानों या उनकी प्रजाति को मिटाने की कोशिश की, तो परिणाम और भी अधिक विनाशकारी साबित हो सकते हैं।
रेबीज और निपाह (Rabies and Nipah) से लेकर हेंड्रा वायरस (Hendra virus) के संक्रमण तक, चमगादड़ की कुछ प्रजातियां, मनुष्यों के लिए घातक विषाणु मेजबान साबित हो रही हैं। मारबर्ग, इबोला, गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (Marburg, Ebola, Severe Acute Respiratory Syndrome) आदि जैसी बीमारियां भी चमगादड़ों से ही जुड़ी हुई हैं। कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है कि इन रहस्यमय स्तनधारियों में कुछ ऐसा है जो इनके भीतर विशेष रूप से, मनुष्यों के लिए, घातक वायरस को आश्रय देता है। चमगादड़, वास्तव में, अज्ञात रोगजनकों को ले जाने की अधिक संभावना रखते हैं, जो मनुष्यों पर कहर बरपा सकते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि यह अध्ययन उन शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जो अब तक चमगादड़ों में वायरस की उपस्थिति पर संदेह करते थे।
आज अधिकांश उभरती हुई संक्रामक बीमारियां ‘ज़ूनोस’ (Zoonos) अर्थात ऐसी बीमारियां हैं, जो जानवरों में उत्पन्न होती हैं, और कुछ में बड़े पैमाने पर महामारी को सक्रिय करने की क्षमता हो सकती है। विशेषज्ञों ने स्तनधारियों को संक्रमित करने के लिए जाने वाले सभी विषाणुओं के बारे में जानकारी एकत्र की, जो कुल मिलाकर 586,754 प्रकार की प्रजातियों में पाए गए। उन्हें आंकड़ों में कई डरावने नमूनेभी मिले। उदाहरण के लिए, बड़े जानवरों में छोटे जानवरों की तुलना में अधिक वायरस होते हैं। और विस्तृत क्षेत्रों में रहने वाले जानवरों में सीमित आवास वाली प्रजातियों की तुलना में अधिक वायरस होते हैं।
अपने अगले चरण में, वैज्ञानिकों ने केवल 188 प्रकार के ज्ञात जूनोटिक वायरसों (Zoonotic Viruses) को देखा, जो मनुष्यों के अलावा कम से कम एक अन्य स्तनपायी में पाए गए हैं। चमगादड़ यहां भी अन्य स्तनधारियों की तुलना में ज़ूनोज़ के उच्च अनुपात की मेजबानी करते हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि चमगादड़ की प्रजाति में लगभग 17 प्रकार के ज़ूनोज़ की खोज की जानी अभी बाकी है। हालांकि इसके बावजूद, जानकार मान रहे हैं कि चमगादड़ों से डरने या लड़ने का कोई ठोस कारण नहीं है। वास्तव में, चमगादड़ों की फूलों के परागण से लेकर कीड़ों को नियंत्रित करने तक हमारे पर्यावरण में कई उपयोगी भूमिकाएं भी होती हैं।
और वायरस का प्रकोप तब तक अपरिहार्य नहीं है, जब तक मनुष्य अपनी दूरी बनाए रखता है। ये वायरस इंसानों में तभी उभरेंगे या संक्रमित होंगे, जब हम चमगादड़ों के आवास में अतिक्रमण करना, उनका शिकार करना और उन्हें खाना या उनसे संपर्क बनाना जारी रखेंगे। हालांकि मनुष्य यह गलती करने लगा है, औरहम कई ऐसे मूर्खता पूर्ण काम करने लगे हैं जिनकेकारण चमगादड़ जूनोटिक रोग प्रसारित कर सकते हैं।
जैसे-जैसे मानव बस्तियां वन्यजीवों के आवास के करीब आती जा रही हैं, वैसे-वैसे वनों की जगह विकास और कृषि भूमि ले रही है। वैज्ञानिकों को डर है कि भू-उपयोग परिवर्तन, आनेवाले भविष्य में कोरोना महामारी जैसे जूनोटिक रोगों के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि जिन क्षेत्रों में नाटकीय परिवर्तन हुए हैं और जहां चमगादड़ों की बड़ी आबादी है, वे अगले कोरोना वायरस महामारी का शुरुआती बिंदु साबित हो सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने ऐसे स्थानों की खोज की है जहां एशियाई हॉर्सशू चमगादड़ों (Asian Horseshoe Bats) की उच्च सांद्रता है, जो कोरोना वायरस (Coronavirus) की सबसे बड़ी विविधता की मेजबानी करते हैं, और जहाँ मानव और पशुधन दोनों के निपटान और वन विखंडन के उच्च स्तर हैं। न्यूजीलैंड में मैसी विश्वविद्यालय (Massey University,New Zealand) में संक्रामक रोग पारिस्थितिकी के एक प्रोफेसर और सह-लेखक, डेविड हेमैन (David Hayman) के अनुसार संभावित हॉट-स्पॉट (Hot Spot) की पहचान करके, शोधकर्ता इस बारे में जान सकते हैं कि हम एक और कोविड-19 (COVID-19) जैसी महामारी की संभावना को कैसे कम कर सकते हैं।
अपने हॉट-स्पॉट मानदंड का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने 28.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि का विश्लेषण किया, जहाँ चमगादड़ों की घनी आबादी है। उन्होंने चीन के क्षेत्रों को सबसे अधिक जोखिम पूर्ण स्थान पाया, और कहा कि एशिया के अन्य हिस्सों में कुछ क्षेत्र - जिनमें जापान, थाईलैंड और फिलीपींस और यूरोप शामिल हैं, भविष्य में, महामारी के हॉट स्पॉट में बदल सकते हैं। पिछले अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने पाया कि इबोला (Ebola) का प्रकोप उन क्षेत्रों में होने की अधिक संभावना थी, जहां जंगल खंडित थे। शोधकर्ताओं ने ध्यान दिया कि जैसे-जैसे आप पशुधन घनत्व, वन विखंडन और मानव घनत्व बढ़ाते हैं, वैसे-वैसे आप जूनोटिक अधिप्लावन (Zoonotic Spillover) के खतरे को भी बढ़ाते हैं।
सन 1996 और 2020 के बीच, शोधकर्ताओं ने पाया कि दक्षिण-पूर्व क्वींसलैंड (Queensland) में खानाबदोश चमगादड़ों के बड़े शीतकालीन बसेरे लगातार दुर्लभ होते जा रहे हैं। इसके अलावा, ये जीव ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे बसेरे बना रहे हैं, तथा कीवेट, कपूर लॉरेल और सिट्रस (Civet, Camphor Laurel and Citrus) जैसे फल खा रहे हैं। संबंधित शोध में, पाया गया है कि इन ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले छोटे बसेरों (Roosts) में भी, हेंड्रा वायरस की पहचान दर काफी उच्च थी विशेष रूप से सर्दियों में, जलवायु-संचालित अमृत(Nector) की कमी के बाद।
इसका तात्पर्य यह है कि चमगादड़ों के निवास स्थान की रक्षा करना, उन्हें बहाल करना और प्रमुख पेड़ प्रजातियों को पालतू जानवरों के बाड़े से दूर रखना, चमगादड़ के स्वास्थ्य को बढ़ावा देगा और हमें भी सुरक्षित रखेगा। और इसका सबसे आसान तरीका है पेड़ लगाना। पेड़ लगाने से हम तक पहुँचने वाले खतरनाक नए वायरस को रोकने में मदद मिल सकती है। यह सच में इतना आसान है।
संदर्भ
https://bit.ly/3Vbq3Vu
https://on.natgeo.com/3VilQzd
https://bit.ly/3VeM6uh
चित्र संदर्भ
1. उड़ते हुए चमकादड़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. पिशाच चमगादड़ और रेबीज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क्रोधित चमकादड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कम छोटी नाक वाले फ्रूट बैट को आज़ाद करते हुए फील्ड साइंटिस्ट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. गुफा में उल्टे लटके हुए चमकादड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पेड़ में उल्टे लटके हुए चमकादड़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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