रामपुर का तूतीनामा

लखनऊ

 29-01-2018 10:06 AM
ध्वनि 2- भाषायें

रामपुर का रज़ा पुस्तकालय अपनी पाण्डुलिपियों के लिये सम्पूर्ण विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान पर काबिज़ है। यहाँ पर कई पाण्डुलिपियों का संग्रह किया गया है उन्ही संग्रहित पाण्डुलिपियों में एक है तूतीनामा। तूतीनामा का रचना गवासी द्वारा किया गया है। गवासी की रचना तूतीनामे का स्त्रोत इस प्रकार है कि प्राचीन काल में शुकसप्रति के नाम से संस्कृत भाषा में यह रचना लिखी गई थी। इसका अर्थ है तोते द्वारा वर्णित सत्तर कहानियाँ। मुसलमानों ने संस्कृत साहित्य की अनेक रचनाओं का फारसी और अरबी भाषा में अनुवाद किया इस प्रकार संस्कृत भाषा का वह साहित्य जो जनसामान्य से दूर था, उनके बीच पहुंचा और उक्त साहित्य का प्रचार-प्रसार हुआ। अनेक संस्कृत कथाएँ भारत से बाहर भी गई और दोबारा उन देशों से प्रभाव ग्रहण कर वापस हिन्दुस्तान आयी। जो रचनाएं संस्कृत से फारसी में अनुदित हुई उनमें तूतीनामा भी है। अनुवादकर्ता मौलाना ज्याउद्दीन नक्श़बी है। परन्तु उन्होंने केवल बावन कहानियों का अनुवाद किया था। वह अनुवाद साहित्यिक विशेषताओं से पूर्ण था और बहुप्रचलित हुआ। तत्पश्चात इन कहानियों के सारांश भी लिखे गये। शेख अबुल ने शहंशाह अकबर के कहने पर दसवीं शताब्दी के मध्य उसका सारांश सरल फारसी में लिखा। 1093 हिजरी (1681 ई0) में मुल्ला सैय्यद मोहम्मदी कादरी ने नक्शबी की बावन कहानियों में से पैतीस का चयन करके सरल फारसी भाषा में सारांश लिखा। यह समस्त सारांश और अनुवाद तूतीनामे के नाम से लिखे गये। गवासी का तूतीनामा सैय्यद मोहम्मदी कादरी के तूतीनामे का सारांश है। इस बात की पुष्टि गवासी ने स्वय की है :- हुए हज़रत नक्शवी मुझ मदद दिया मैं उसे तो रिवाज इस सनद उपलब्ध जानकारी के अनुसार गवासी का तूतीनामा पहला अनुवाद है जो फ़ारसी से दक्खिनी भाषा में किया गया। 1142 हिजरी (1729 ई0) की एक पाण्डुलिपि उस्मानिया में है परन्तु उस पर रचनाकार का नाम नहीं है। यदि गवासी के सफरनामे को देखा जाये तो पता चलता है कि गवासी की चर्चा कुतबशाही तज़करों और कुतबशाही इतिहास में नहीं मिलती। इतिहासकारों का मत है कि मुल्ला गवासी सुल्तान इब्राहीम कुतबशाह के समय में पैदा हुआ होगा और मोहम्मद कुली-कुतबशाह के समय मे कविता शुरू की होगी। उसने बहुत प्रयास किया लेकिन दरबारे शाही में पहुंचने का अवसर न मिला। सुल्तान कुली कुतबशाह का काल बीत गया। 1035 हिजरी (1625 ई0) तक जीवन दरिद्रता में बीता। उसी समय उन्होंने अपनी प्रथम मसनवी, जो बहुत लम्बी है सैफुल मलूक बदी उल जमाल लिखना शुरू की थी। सुल्तान अब्दुल्लाह के सिंहासन पर बैठने के पश्चात् परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ। गवासी ने अपनी मसनवी और इसके अंत मे अपनी तमन्ना का इज़हार सुल्तान अब्दुल्लाह से इस प्रकार किया। जो सुल्तान अब्दुल्लाह इंसाफ कर मेरे जवाहारान पौने दिल साफ कर के यूं शाह मेरा खरीददार होये तो ताज़ा मेरा तबा गुलज़ार होये इस काव्य को लिखने के बाद गवासी दरबारे शाही में पहुँचें। वर्तमान में यह तूतीनीमा रामपुर रज़ा पुस्तकालय में संरक्षित है। 1. राजभाषा पत्रिका, तूतीनामाः एक पाण्डुलिपी, किश्वर सुल्तान, रामपुर



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