चारे की कमी और अवहनीय लागत के कारण भी बढ़ रहे हैं दूध के दाम

भूमि और मिट्टी के प्रकार : कृषि योग्य, बंजर, मैदान
25-11-2022 10:46 AM
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चारे की कमी और अवहनीय लागत के कारण भी बढ़ रहे हैं दूध के दाम

हम सभी पैकेट या घरों में आने वाले दूध में होने वाली मिलावट से परेशान रहते है। लेकिन यदि आप दूध में इस मिलावट के कारणों की तह में जायेगे तो आपको बेहद आश्चर्यजनक कारण मिलेंगे। उदाहरण के तौर पर आज अखिल भारतीय थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित चारा मुद्रास्फीति की वार्षिक दर अक्टूबर 2022 में बढ़कर 27.31 प्रतिशत हो गई है। और चारे की बढ़ती कीमत और कमी दोनों मिलकर दूध की कमी और मिलावट के प्रमुख कारण बन रहे हैं।
भारत में चारे की कमी एक बड़ी समस्या है। इस संकट के कारण देश के तीस करोड़ से अधिक मवेशियों का भविष्य भी संकट में नज़र आ रहा है, क्योंकि चारे की कीमतें तेजी से बढ़ रही और खेतों की संख्या भी निरंतर सिंकुडती जा रही हैं। भारत में आमतौर पर, सूखे चारे की लगभग 11-12%, हरे चारे की 25-30% और सांद्रित चारे की 36% की कमी होती है। इसके नतीजतन, मांस और दूध उत्पादन भी गंभीर रूप से प्रभावित होता है। राजस्थान से लेकर बंगाल तक चारे के दाम बढ़ गए हैं। सरकार के हालिया अनुमान के अनुसार, सूखे चारे की कीमतें पिछले साल के 5-6 रु से बढ़कर 8-14 रुपये प्रति किलो हो गई हैं। प्रमुख पशुपालक राज्यों में चारे की कीमतों में 200% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। विशेष रूप से छोटे और असंगठित क्षेत्र में डेयरी संचालन में चारे की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी के कारण काफी नुकसान हो रहा है। दूध की बदती कीमत में भी दाना और चारे का योगदान आधा या उससे अधिक होता है। इसके अलावा, भारत में, चारे की गुणवत्ता में सुधार से दूध उत्पादन और उसकी गुणवत्ता में वृद्धि हो सकती है। इसलिए, चारे की कीमतें जितनी अधिक होंगी, दूध और डेरिवेटिव (Derivatives) या दूध के अन्य उत्पाद भी उतने ही महंगे मिलेंगे ।
बुवाई के मौसम में राजस्थान के बीकानेर में खेती के तहत गेहूं पहले से ही कम था क्योंकि कई किसान अधिक कमाई वाली सरसों की बुआई करना पसंद करते हैं। इसलिए, गर्मियों में, बीकानेर (और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों) में आपूर्ति की कमी देखी गई, जिससे मुख्य फसल के साथ-साथ इसकी शाखा-चारे की कीमतों में भी वृद्धि हुई है। मार्च और अप्रैल में गर्मी की लहरों ने गेहूं की खड़ी फसल को तबाह कर दिया। बाजार में गेहूं का स्टॉक कम था, जिससे मूल्य और भी बढ़ गया। रबी सीजन के दौरान 2022 में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी गेहूं का उत्पादन प्रभावित हुआ था। वहीँ अनियमित बारिश के कारण बरसीम की फसल को भी नुकसान हुआ है। अन्य सूखी फसलें जैसे बाजरा और चारे की फसलें भी इससे प्रभावित हुई हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र में बेमौसम बारिश ने दलहनी फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। पूरे उत्तर भारत से मिल रही रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि, 2022 में चारे की समस्या का एक प्रमुख कारण जलवायु परिवर्तन भी है। बेमौसम बारिश और गर्मी की लहरों ने चारा अर्थव्यवस्था को बाधित कर दिया। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार के कार्यालय द्वारा जारी डेटा से पता चलता है कि, अक्टूबर 2022 में चारे का सूचकांक मूल्य बढ़कर 227 हो गया, जो पिछले साल के इसी महीने (178.3) की तुलना में 27.31 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज दर्शाता है।
चारे की बढ़ती कीमतों का सीधा असर उन परिवारों पर पड़ता है जिनकी आजीविका पशुपालन पर निर्भर है। लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से, यह आप और हम जैसे शहरी परिवारों को भी प्रभावित करता है, क्योंकि दुग्ध कंपनियां और सहकारी समितियां पशुपालकों को मुआवजा देने के लिए दूध की कीमतें बढ़ाती हैं। खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चारे की कीमतों को नियंत्रित करना आवश्यक है। चारे की कीमतों में हालिया वृद्धि ने दूध की बढ़ती कीमतों में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, जिससे डेयरी किसानों को भारी नुकसान हुआ है। हाल के महीनों में समग्र WPI मुद्रास्फीति में नरमी के बावजूद, पिछले चार महीनों में चारा मुद्रास्फीति में तेज वृद्धि देखी गई है। सितंबर में चारा महंगाई दर 25.23 फीसदी थी, जबकि पिछले साल इसी महीने में यह 20.57 फीसदी थी। देर से और भारी मानसून के कारण बड़े पैमाने पर फसल की क्षति ने पशु मालिकों के लिए चारे की कीमतों को अवहनीय स्तर तक बढ़ा दिया है, जिनमें से अधिकांश भूमिहीन या छोटे किसान हैं। जो किसान चारे के लिए पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हैं, उन्हें भारी नुकसान हुआ है। इससे बचने के लिए राज्यों के किसान क्रॉस ब्रीड मवेशियों (Cross Breed Cattle) से देशी नस्लों की ओर जा रहे हैं, जिनका चारा खर्च बहुत कम है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो आने वाले वर्षों में यह राष्ट्रीय दुग्ध उत्पादन को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगी।
इस संदर्भ में सभी को चारा खेती पर ध्यान देने की आवश्यकता है। चारे की फसल को विभिन्न कृषि-पारिस्थितिकी प्रणालियों के भीतर एक केंद्रीय स्थान मिलना चाहिए और फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य लाभों जैसी कृषि फसलों को प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के बराबर माना जाना चाहिए। चारे की कमी के समाधान के तौर पर विशेषज्ञों ने सलाह दी है की अगर राज्य बहु-फसल के साथ-साथ बारहमासी घास और तेजी से उगने वाले चारे को अपनाते हैं, तो भारत आसानी से चारे की इस कमी को पूरा कर सकता है। उपजाऊ भूमि सिकुड़ रही है, जबकि जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है। यह स्थिति भी चारे को अंतिम प्राथमिकता बनाती है। इसलिए हम केवल मूल्य नियंत्रण और किसानों के समर्थन के माध्यम से ही चारा उत्पादन बढ़ा सकते हैं। उत्पादन बढ़ने पर चारे की कीमत नियंत्रित होने के साथ ही हमारे घरों में आनेवाले दूध की कीमतें भी कम हो जाएगी।

संदर्भ
https://bit.ly/3XqfHTa
https://bit.ly/3EQSLFo
https://bit.ly/3tSryM2
https://bit.ly/3tPjeg7

चित्र संदर्भ
1. दूध दुहते किसान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. चारे के ढेर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. गेहू के कटान को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. दूध डेयरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मक्का के पोंधों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)