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हर साल अक्टूबर और नवंबर के महीने में हमारे लखनऊ शहर की वायु गुणवत्ता में विभिन्न कारणों से गिरावट दर्ज की जाती है। दिल्ली जैसे शहरों में तो हाल और भी बुरा है। हालांकि इस समस्या से उभरने के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा कई प्रयास भी किये जा रहे है, किंतु उनमें से अधिकांश अस्थाई होते हैं या वह उपाय अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं करते। चूंकि जैविक ईंधन भी वायु प्रदूषण के सबसे प्रमुख कारकों में से एक है, इसलिए अब कई निजी वाहन निर्माता कंपनियां, बाजार की मांग और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए इलेक्ट्रिक बसों (Electric buses (e-buses) की पेशकश कर रही हैं और हवा की गुणवत्ता में सुधार की कोशिश में लगी हुई हैं।
आज भारत के पास सार्वजनिक परिवहन जैसे प्रमुख क्षेत्रों को लक्षित करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने का एक बड़ा अवसर है। इस संदर्भ में यात्रियों, सरकारों और उद्योगों के बीच इलेक्ट्रिक बसों (ई-बसों) की बढ़ती लोकप्रियता, उन्हें देश के स्थायी भविष्य के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बना रही है। जानकारों के अनुसार डीजल से चलने वाली बसों की तुलना में, इलेक्ट्रिक वेरिएंट बसें (Electric Variant Buses) बड़े पैमाने पर पर्यावरण को लाभान्वित करने तथा इंट्रा-सिटी सेगमेंट (Intra-city Segment) के लिए एक अधिक प्रभावी और व्यवहार्य समाधान मानी जा रही हैं। ई-बसों को पूरे भारत में नीति और निर्णय निर्माताओं से प्रोत्साहन मिल रहा है और यह भारत में सार्वजनिक बस सेवा को आधुनिक बनाने का एक बड़ा मौका भी प्रदान करती है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारतीय सड़कों पर चलने वाली अधिकांश बसें जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) पर निर्भर हैं और देश में डीजल की खपत का 10% से अधिक हिस्सा ले लेती है। वहीँ भारत में बसें, यात्रा का सबसे पसंदीदा और किफायती साधन मानी जाती हैं। अधिकांश कार्यबल, छात्र और अन्य दैनिक आवागमन के लिए इस विशालकाय वाहन पर ही निर्भर हैं।
चूंकि ये बसें प्रदूषकों का एक बड़ा हिस्सा भी हैं, इसलिए इन्हें इलेक्ट्रिक वेरिएंट से बदलने से भारी लाभ हो सकता है। वे चलाने और अच्छी स्थिति में रखने में आसान होती हैं और कम लागत के साथ आती हैं। इलेक्ट्रिक बसें शहरी प्रदूषण को कम कर सकती हैं तथा शोर मुक्त सड़कों की पेशकश कर सकती हैं।
इसके अलावा, ई-बसों में कार्बन फुटप्रिंट (Carbon Footprint) भी काफी कम होते हैं और उन्हें संचालित करने के लिए बहुत कम ऊर्जा/किमी की आवश्यकता होती है। डीजल वेरिएंट की तुलना में, इन बसों में शून्य टेल्पाइप उत्सर्जन (Zero Tailpipe Emissions) होता है तथा यात्रियों को आरामदायक, धुआँ मुक्त और सुगम सवारी प्रदान करती है। यात्रियों के बीच हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में, 78% उत्तरदाता कम शोर और कंपन के कारण ई-बस से यात्रा करना पसंद करते हैं। भारत ने 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का 50% प्राप्त करने और 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, आज देश अपनी ईवी और बैटरी निर्माण क्षमताओं (EV and battery manufacturing capabilities) को भी बढ़ा रहा है जो, स्थानीयकरण और भारतीय जरूरतों के लिए किफायती उत्पादों को उपयुक्त बनाने में मददगार साबित होगी।
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा निर्धारित बेंचमार्क के अनुसार, भारतीय महानगरों को प्रति लाख जनसंख्या पर 60 बसों की आवश्यकता होती है। इन नंबरों के आधार पर, देश, अपनी जरूरत के पांचवें हिस्से से भी कम बसों का संचालन कर रहा है, साथ ही उपयोगकर्ताओं को पर्याप्त रूप से सेवा देने के लिए, इसे अतिरिक्त 1, 45,000 बसों को जोड़ने की जरूरत है।
बैटरी से चलने वाली बसों की कीमत 2017 में लगभग 2.5 करोड़ रुपये से घटकर 91 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये हो गई है, जिससे इसके टीसीओ (TCO,Total Cost of Ownership) में गिरावट आई है। जबकि लगभग 34 लाख रुपये के साथ डीजल और लगभग 38 लाख रुपये के साथ सीएनजी (CNG) बसें तुलनात्मक रूप से सस्ती हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में बैटरी से चलने वाली बसों का टीसीओ (39.21 रुपये प्रति किमी से 47.49 रुपये प्रति किमी के बीच) वैश्विक औसत से भी कम है।
सरकार अपनी दो योजनाओं, जिसमें हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाना और निर्माण करना यानि ( Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric vehicles (FAME) तथा ऑटो और एडवांस्ड केमिस्ट्री सेल बैटरी स्टोरेज के लिए प्रोडक्टिविटी-लिंक्ड इंसेंटिव्स (Productivity-linked incentives for auto and advanced chemistry cell battery storage), के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने का समर्थन कर रही है जिसका उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए बैटरी का स्थानीयकरण करना है।
FAME के तहत, सरकार थोक में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदकर मांग उत्पन्न करना चाहती है। इसके दूसरे चरण में 7,000 इलेक्ट्रिक बसें, 5 लाख इलेक्ट्रिक तीन पहिया वाहन, 55,000 इलेक्ट्रिक चार पहिया कार और 10 लाख इलेक्ट्रिक दो पहिया वाहनों का लक्ष्य है। इसके अलावा, यह योजना वाहनों को चार्ज करने के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना का भी समर्थन करती है।
दिल्ली वर्तमान में 4,000 बसों का बेड़ा संचालित करती है, जिनमें से लगभग 250 बैटरी से चलने वाली हैं। केंद्र अगले दो-तीन वर्षों में 30,000 डीजल से चलने वाली बसों को इलेक्ट्रिक बसों से बदलने पर विचार कर रहा है, जिससे निर्माताओं को 3.5 बिलियन डॉलर का व्यापार अवसर मिलेगा और इलेक्ट्रिक बसों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद मिलेगी जो उन्हें सस्ता बना देगी।
पर्यावरण को बचाने और यातायात को सुलभ बनाने की इस पहल में हमारा लखनऊ शहर भी कतई पीछे नहीं है। हाल ही में राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने लखनऊ, कानपुर के लिए 42 नई इलेक्ट्रिक बसें लॉन्च की जिनमें से चौंतीस बसें राज्य की राजधानी में विभिन्न मार्गों पर चलेंगी। साथ ही उन्होंने कहा की, चूंकि बसों के लिए इलेक्ट्रिक चार्जिंग प्वाइंट (Electric Charging Point) और अन्य सुविधाओं की जरूरत है, इसलिए अन्य विकल्पों पर भी काम किया जाएगा। प्रदूषण मुक्त सार्वजनिक परिवहन समय की मांग है। लखनऊ और कानपुर दोनों में मेट्रो है, लेकिन इलेक्ट्रिक बस सेवा पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त सार्वजनिक परिवहन के लिए मेट्रो का आधार बनेगी।
संदर्भ
https://bit.ly/3FJ9JX3
https://bit.ly/3FOcOF7
https://bit.ly/3FT55G9
https://bit.ly/3FPYcFy
चित्र संदर्भ
1. इलेक्ट्रिक बस को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. इलेक्ट्रिक बसों के लांच को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. बंगलौर में इलेक्ट्रिक बस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मेक इन इंडिया-एनएमएमटी-वोल्वो-हाइब्रिड बस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. टाटा की इलेक्ट्रिक बस को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
7. नई इलेक्ट्रिक बसों के लॉन्च को दर्शता एक चित्रण (youtube)
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