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भिन्न भिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन एवं भोज दीपावली के भव्य उत्सव का बेहद अहम् हिस्सा होते हैं। केवल दीपावली ही नहीं वरन, हिंदू धर्म में प्रत्येक उत्सव के अवसर पर पवित्र भोग या प्रसाद धार्मिक क्रियाकल्पों का एक अहम् हिस्सा होते हैं। वहीँ प्रसाद की “महत्वता एवं सात्विकता” इसके स्वाद में और भी अधिक मिठास भर देती है।
एक ओर जहां दिवाली का मुख्य आकर्षण रोशनी होती है, वहीं मिठाईयों, स्वादिष्ट व्यंजनों एवं भोजों की सुगंध हमेशा घर में लोगों का ध्यान आकर्षित करती रहती है। लड्डू और बर्फी जैसी सर्वोत्कृष्ट उत्सव की मिठाइयाँ अधिकांश घरों की थाली में प्रमुखता से सजी होती हैं, लेकिन इन सभी में दिवाली पर सबसे प्रमुख एवं अनिवार्य भोग होते है "खील बताशा"।
कई 'धार्मिक' खाद्य पदार्थों में से एक, खील बताशा एक प्रकार की पारंपरिक मिठाई है, जिसे आमतौर पर हिंदू मंदिरों में प्रसाद के रूप में दिया जाता है और उत्सव के अवसरों पर तैयार किया जाता है। खील बताशा चीनी के साथ मिश्रित चावल को मिलाकर बनाया जाता है। दिवाली की अवधि के दौरान इसका विशेष महत्व होता है। खील धान (चावल) से तैयार की जाती है, जो भारत में एक प्रमुख अनाज है। चावल देश के अधिकांश हिस्सों में मध्य वर्ष के आसपास बोया जाता है, और दिवाली के समय के आसपास काटा जाता है।
ताजा चावल से तैयार खील बताशा देवी लक्ष्मी को सम्मान के प्रतीक के रूप में, तथा स्वास्थ्य, धन और समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए पेश किया जाता है। साथ ही इसका संबंध हमारे स्वास्थ से भी जुड़ा हुआ है। हमारे पाचन को सामान्य करने के लिए, हमें अपने पेट को सरल भोजन खिलाना चाहिए जो पचाने में आसान हो। खील बताशा, जो मुख्य रूप से चावल और चीनी से बना होता है, पचने में आसान होता है और पेट की अच्छी सेहत के लिए हल्का आहार होता है, इसलिए दिवाली के दौरान यह एक महत्वपूर्ण मिठाई बन जाता है।
बंगाल में भी दिवाली, दीपकों की जगमगाती रौशनी के साथ-साथ अंत में माँ काली के पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ मनाई जाती है। किसी भी अन्य बंगाली त्यौहार की भांति, भोग या प्रसाद माँ काली की पूजा का एक अविभाज्य हिस्सा है। पारंपरिक भोग और नैवेद्य (भगवान को अर्पित किए गए भोजन को नैवेद्य कहा जाता है।) के अलावा, पूजा की मेनू (Menu) में एक मांसाहारी व्यंजन भी शामिल होता है। बंगाल में काली पूजा मनाना एक सदियों पुरानी पारिवारिक परंपरा है। पूजा की शुरुआत आधी रात को खिचड़ी के विस्तृत भोग, पांच मौसमी सब्जियों, चटनी, पायेश, सूजी हलवा और लुची के साथ होती है। इसके साथ ही, 108 फल और अन्य वस्तुओं को नैवेद्य के रूप में पेश किया जाता है। “शाकाहारी मटन” (Mutton) पकवान काली पूजा का एक विशिष्ट पहलू होता है ,जिसमें प्याज और लहसुन का उपयोग किए बिना निर्मिश या “शाकाहारी मटन” तैयार करने की परंपरा है।
भारत में किसी भी त्यौहार का भोजन के साथ सदियों पुराना संबंध रहा है। हालांकि इससे जुड़ी पाक और परंपराएं एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती रहती हैं। लक्ष्मी पूजा को बंगाल में "अपार बांग्ला” के नाम से जाना जाता है,और अब यह पूजा देश की सीमाओं के पार भी मनाई जा रही है। पूर्वी बंगाल के लोग इस दिन देवी को “जोरा इलिश” (हिलसा मछली) चढ़ाते हैं। इसके अलावा, देवी को निर्मिश भोग (लहसुन और प्याज के बिना), नरु, मोया, मुर्की, खोई, निमकी के अलावा लुची, पांच प्रकार की मौसमी सब्जियां, चटनी और पायेश भी पेश किए जाते हैं। इस दिन घोटी घरों में खीर मिष्टी भी जरूरी भोज होता है।
माँ काली एवं लक्ष्मी पूजा के इस पावन अवसर पर हमारा रामपुर शहर भी स्वादिष्ट व्यंजनों की खुश्बू एवं दिवाली की चमचमाती रोशनी से जगमगा उठता है। शहर में चारों तरफ बिजली की रंग बिरंगी झालरों की सजावट अनायास ही मन मोह लेती है। लोग अपने घरों, सरकारी कार्यालय और प्रतिष्ठानों को भव्य रूप से सजाते हैं। इस विशेष अवसर पर सिविल लाइंस, गंगापुर आवास विकास कॉलोनी, ओल्ड आवास विकास कॉलोनी, आदर्श कॉलोनी, रेलवे स्टेशन रोड, गुरुद्वारा रोड,ज्वाला नगर, कृष्णा बिहार, साईं बिहार, लक्ष्मी नगर, सीआरपीएफ कालोनी के अलावा शहर का मिस्टन गंज, पुराना गंज, राजद्वारा, शौकत अली रोड, जौहर अली रोड, जेल रोड, बाबा दीप सिंह नगर, सराय गेट, पुरानी अनाज मंडी, चाह इंछाराम समेत पूरे शहर की सजावट किसी का भी मन मोह लेती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3CXhXId
https://bit.ly/3z0O4W6
.https://bit.ly/3gp8OjU
https://bit.ly/3So45MK
चित्र संदर्भ
1. दिवाली पर मंदिर में चढ़ाये गए प्रसाद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. दिवाली की पूजा में खील, बताशे और खिलौने को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. “शाकाहारी मटन” को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. दिवाली उत्सव के विविध व्यंजनों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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