लखनऊ एक बेहद ही खुबसूरत शहर है। ऐतिहासिक काल से लेकर अब तक नवाबी अदब के साथ-साथ ये शहर संस्कृती और कला का भी केंद्र है। लखनऊ की प्रकृति, संस्कृति एवं इतिहास बहुत से कलाकारों ने अपने चित्रफलकों पर उतरा है। इन्ही में से दो हैं श्री.सीताराम ये भारतीय और श्री थॉमस जोन्स बार्कर यह अंग्रेज़। सीताराम इनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। कुछ सालों पहले तक इनके बारे में किसीको पता नहीं था मात्र उनके दो चित्रावलियां की (वॉल्यूम I और IX) 1974 सोथबी, लंदन में जब बिक्री हुई तब इस चित्रकार के बारे में ज्यादा जानने की कोशिश की गयी। मगर ज्यादा जानकारी प्राप्त ना होई सकी लेकिन जब बाकी की चित्रावालियां (वॉल्यूम II से लेकर वॉल्यूम VIII और वॉल्यूम X) सन 1995 में ब्रिटिश लाइब्रेरी को सौंप दी गयी तब थोड़े विस्तृत रूप से सीताराम जी के बारे में पता चला। जो थोड़ीसी जानकारी मिली उससे ये अनुमान निकाले गए की सीताराम जी ने यह सारे चित्र 1814-15 के बीच लार्ड वारेन हेस्टिंग्स (बंगाल के राज्यपाल, 1813 -1823) के लिए बनाए थे जब वे और उनकी पत्नी कलकत्ता से दिल्ली और वापस यात्रा कर रहे थे। सीताराम जी मुर्शिदाबाद घराने के चित्रकार थे तथा वे जल रंगों से चित्र बनाते थे। लखनऊ के उन्होंने बेहद उम्दा चित्र बनाए। उनका बनाया लार्ड हेस्टिंग्स और ग़ाज़ी-अल-दिन जब लखनऊ में प्रवेश कर रहे थे ये चित्र बड़ा लुभावना है। ये चित्र इस बात के स्मरणार्थ बनाया था जब हेस्टिंग्स कानपूर से लखनऊ के तब के नए नवाब वजीर ग़ाज़ी-अल-दिन हैदर से मिलने आये थे। हेस्टिंग्स ने लिखा है की कुल 10,000 लोग इस में शामिल थे। जो प्रमुख और महत्वपूर्ण लोग थे वे हाथी, घोडा या पालखी से सफ़र कर रहे थे और बाकी लोगों को पैदल ही चलना पड़ता था। वे सब दिन में 10 मील के हिसाब से सफ़र करते ताकि गर्मी बढ़ने से पहले दुसरे डेरे तक पहुँच सके जिसकी वजह से उन्हें कानपूर से लखनऊ के 50 मील तय करने हेतु 5 दिन का समय लगा। सीताराम जी ने बनाए चित्र में इस वाकये का चित्रण है जिसमे गोमती के किनारे से लखनऊ में प्रवेश करते वक़्त का पूरा टांडा, हाथी घोडा, लोग आदि सभी चित्रित किये गए हैं। उन्होंने लखनऊ के इमामबरा का अंदरूनी हिस्सा और उसके अन्दर स्थित असफ-उद-दौला के कब्र का भी चित्र बनाया था। आज ये सभी चित्रावलियां ब्रिटिश लाइब्रेरी में हैं। थॉमस जोन्स बार्कर ने 1857 में लखनऊ में हुए गदर से जुड़ा हुआ चित्र (लिथोग्राफ) बनाया जिसका विषय था रिलीफ ऑफ़ लखनऊ – लखनऊ की राहत। यह चित्र उन्होनो 1859 में बनाया था। 1857 की गदर की पार्श्वभूमी पर लखनऊ में काफी अफरातफरी मची थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के बाग़ी सैनिकों ने और लखनऊ के कई लोगों ने इस गदर में हिस्सा लिया था। दोनों तरफ इंसान एवं अन्य वस्तुओं की अपरिमित हानि हुई। सभी अंग्रेज़ नागरिक, अपनी जान बचाने हेतु लखनऊ के रेसीडेंसी नाम की जगह में इकट्ठा हो गए थे। लखनऊ में शांति प्रस्थापित करने के लिए दो से तीन बार कोशिश की गयी। बार्कर ने इसी का चित्रण किया। आज ये चित्र नेशनल पोर्ट्रेट गैलरी, लंदन में है। इनके अलावा और भी कई चित्रकारों ने लखनऊ की संस्कृति और प्रकृति को अपने चित्रफलक पर उतरा है: 1. हंटर जॉर्ज: सिटी ऑफ़ लखनऊ, कैपिटल प्रोविंस ऑफ़ औध, ऑन गूमती रिवर ( गोमती के किनारे बसा लखनऊ शहर, औध का प्रमुख प्रांत) 2. जॉन लुअर्ड : रूमी दरवाज़ा 3. हेनरी साल्ट: मोस्क़ एट लखनऊ (लखनऊ की मस्जिद) 4. विलियम सिम्पसन: लखनऊ फ्रॉम द टावर ऑफ़ रेसीड़ेंसी लूकिंग साउथ (दक्षिण के तरफ से लखनऊ, रेसीड़ेंसी के मीनार से) यह सभी चित्र आज मैक्स एलन कलेक्शन के नाम से जाने जाते हैं। प्रस्तुत चित्र डब्लू. एस. कैन इस के पिक्चरेसक्यू इंडिया इस किताब से हैं, पहला जामा मस्जिद का खुबसूरत रेखा चित्र है तथा दूसरा लखनऊ के एक दिन का वर्णन करता है। 1.https://www.npg.org.uk/collections/search/portrait/mw08481/The-Relief-of-Lucknow-1857 2.http://blogs.bl.uk/asian-and-african/2016/01/the-rediscovery-of-an-unknown-indian-artist-sita-rams-work-for-the-marquess-of-hastings.html 3.द रिलीफ ऑफ़ लखनऊ(1859): टीम सुलिवान, अगस्त 2009 4.द ग्राफ़िक आर्ट ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया, 1780-1860: द मैक्स एलन कलेक्शन http://www.arslibri.com/collections/AllenCollection.pdf
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