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समृद्धि और धन के त्यौहार को धनत्रयोदशी कहा जाता है, जिसे धनतेरस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से पांच दिवसीय त्यौहार दिवाली की शुरूआत होती है। त्यौहार को लक्ष्मी पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, जिसमें संध्याकालीन मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं। देवी लक्ष्मी की स्तुति में भजन और भक्ति गीत गाए जाते हैं तथा पारंपरिक मिठाइयों का नैवेद्य देवी को चढ़ाया जाता है। महाराष्ट्र में एक दिलचस्प रिवाज मौजूद है, जिसमें लोग गुड़ (गन्ना चीनी) के साथ सूखे धनिया के बीजों (मराठी में ढाणे, धनत्रयोदशी के लिए) को हल्के से पीसते हैं और मिश्रण को नैवेद्य के रूप में पेश करते हैं। धनतेरस के सम्बंध में विभिन्न पौराणिक कथाएं मौजूद हैं।
एक कहानी हिमा नामक राजा से सम्बंधित है। हिमा एक ऐसा राजा था, जो अपने राज्य में न्याय को बनाए रखने और अपने लोगों के बीच प्रेम को बढ़ावा देने का समर्थन करता था। कुछ समय पश्चात, राजा के पुत्र का जन्म हुआ और राजा इस अवसर पर बहुत खुश था। किंतु तभी एक ज्योतिषी ने राजकुमार के निधन की भविष्यवाणी की, तथा कहा कि एक सांप द्वारा काटे जाने के कारण सोलहवें जन्मदिवस पर इसकी मृत्यु हो जाएगी। यह भविष्यवाणी सुनकर राजा बहुत दुखी हो गया तथा अपने पुत्र को बचाने के उपाय तलाशने लगा। राजा को एक बड़े ज्योतिषी ने सलाह दी, कि वह अपने पुत्र की शादी किसी ऐसी लड़की से कर दे, जो बहुत किस्मत वाली हो, क्योंकि उसका भाग्य उसकी जान बचा सकता है। राजा ने अपने बेटे की शादी एक ऐसी लड़की से कर दी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और उसका बेटा अपने सोलहवें वर्ष के करीब आता गया, पिता बहुत बैचेन रहने लगे। हालाँकि, राजकुमार की पत्नी बुद्धिमान और चालाक थी, और उसने अपने पति को बचाने के लिए एक योजना तैयार की। उसने अपना सारा खजाना इकट्ठा किया और सांप के प्रवेश द्वार को अवरुद्ध करने के लिए सामने के दरवाजे के आगे ढेर जमा कर दिया, तथा राजकुमार को पूरी रात अपने साथ जागने को कहा। राजकुमार के अंतिम समय में मृत्यु के देवता, भगवान यम उसे लेने पहुंच गए। राजकुमार के घर में प्रवेश करने में असमर्थ होने के कारण वहां आया सांप भी रुक गया। गहनों की चमक के कारण उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। इस प्रकार भगवान यम को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। राजकुमार अपनी पत्नी की सहायता से मृत्यु से बचने में सक्षम हुआ। धनतेरस की एक अन्य कथा देवी लक्ष्मी और किसान से जुड़ी हुई है।
एक बार, देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पृथ्वी पर उनके साथ जाने के लिए कहा। भगवान विष्णु मान गए लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि वह सांसारिक प्रलोभनों में नहीं आएंगी, और दक्षिण दिशा में नहीं देखेंगी। भगवान विष्णु की इस शर्त को देवी लक्ष्मी मान गईं। हालाँकि, चंचल प्रकृति के कारण देवी लक्ष्मी ने दक्षिण दिशा की ओर देख लिया। जैसे ही देवी लक्ष्मी ने दक्षिण दिशा में कदम बढ़ाना शुरू किया, वे पृथ्वी पर पीली सरसों के फूलों और गन्ने के खेतों की सुंदरता को देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं। अंत में, देवी लक्ष्मी सांसारिक प्रलोभनों में आ गईं। जब भगवान विष्णु ने देखा कि देवी लक्ष्मी ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी, तो वे नाराज हो गए और देवी लक्ष्मी को अगले बारह वर्ष तक उस गरीब किसान के क्षेत्र में सेवा करने को कहा, जिसके खेत के सरसों और गन्नों को देखकर वह मुग्ध हो गईं थीं। देवी लक्ष्मी के आगमन से गरीब किसान रातों-रात समृद्ध और धनवान हो गया। धीरे-धीरे बारह वर्ष बीत गए और देवी लक्ष्मी के वापस वैकुंठ लौटने का समय आ गया। जब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को वापस लेने के लिए एक साधारण व्यक्ति के वेश में धरती पर आए, तो किसान ने देवी लक्ष्मी को उनकी सेवाओं से मुक्त करने से इनकार कर दिया। जब भगवान विष्णु के सभी प्रयास विफल हो गए और किसान देवी लक्ष्मी को उनकी सेवाओं से मुक्त करने के लिए सहमत नहीं हुआ, तो देवी लक्ष्मी ने किसान को अपनी असली पहचान बताई और उससे कहा कि वह अब पृथ्वी पर नहीं रह सकती। हालाँकि, देवी लक्ष्मी ने किसान से वादा किया कि वह हर साल दीवाली से पहले कृष्ण त्रयोदशी की रात में उनसे मिलने आएंगी। किंवदंती के अनुसार, किसान हर साल दिवाली से पहले कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए अपने घर की सफाई करने लगा। उन्होंने देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए रात भर घी से भरा मिट्टी का दीपक भी जलाना शुरू कर दिया। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के इन अनुष्ठानों ने किसान को साल दर साल समृद्ध बनाया। समुद्र मंथन की कथा भी धनतेरस से जुड़ी मानी जाती है। भगवान इंद्र को एक बार ऋषि दुर्वासा ने श्राप दिया, कि "धन का अभिमान होने की वजह से लक्ष्मी उन्हें छोड़ कर चली जाए।" दुर्वासा के श्राप के कारण लक्ष्मी ने इंद्र को छोड़ दिया। चूंकि लक्ष्मी शक्ति, वीरता, उत्साह और तेज की देवी हैं, इसलिए उनके जाने के बाद देवता इंद्र का जीवन दयनीय हो गया। इससे राक्षसों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया और इंद्र को हराकर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। कई साल बीत जाने के बाद इंद्र की परेशानियों का हल निकालने के लिए ऋषि बृहस्पति उन्हें भगवान ब्रह्मा के पास ले गए। भगवान ब्रह्मा ने फिर भगवान विष्णु से मदद मांगी।
तब समुद्र मंथन का निर्णय लिया गया, जो कि एक कठिन काम था। इसके लिए देवताओं ने दैत्यों से मित्रता की और उनसे समुद्र मंथन में शामिल होने के लिए कहा। यह माना गया था कि समुद्र मंथन से "अमृत" उत्पन्न होगा, जिसे पीकर देवता अमर हो जाएंगे। साथ ही यह भी माना गया था कि समुद्र मंथन से लुप्त हो चुकी लक्ष्मी फिर प्रकट हों जाएंगी तथा देवताओं को उनकी कृपा प्राप्त होगी। अंततः देवताओं को अमृत तथा देवी लक्ष्मी का वैभव प्राप्त हुआ। यही कारण है, कि इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, धनवंतरि और कुबेर की पूजा की जाती है। ये सभी धन-धान्य, वैभव, समृद्धि आदि के प्रतीक माने जाते हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3MOGsM6
https://bit.ly/3VKq1nV
https://bit.ly/3DbQ800
चित्र संदर्भ
1. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी एक हाथी पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश से मिलते हैं, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक शाही दरबार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. माता लक्ष्मी की सार्वभौमिक छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. वैकुण्ठलोक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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