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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: भारत में बढ़ रहे हैं आत्महत्या के मामले

लखनऊ

 10-10-2022 10:17 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

निःसंदेह मनुष्य के लिए, जीवन से अधिक शानदार एवं बहुमूल्य उपहार कुछ भी नहीं हैं। विश्व के सबसे धनी व्यक्ति के लिए भी कोई चीज वास्तव में खरीदना मुश्किल है तो “वह जीवन ही है।” लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है, जो छोटी-बड़ी समस्याओं और अपने मासिक वेतन या व्यापार के नफा-नुकसान को नियति अर्थात जीवन मान बैठे है, और अपनी इसी अज्ञानता का खमियाजा वह अपने जीवन को त्यागकर चुका रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल देश भर में कुल 1,64,033 आत्महत्याएं हुई, जो 2020 की तुलना में 7.2% की वृद्धि को दर्शाती है। पीड़ितों में से अधिकांश दैनिक वेतन भोगी, गृहिणियां और स्वरोजगार करने वाले लोग थे। आत्महत्याओं में से अधिकांश महाराष्ट्र में (22,207), तमिलनाडू में 18,925, मध्य प्रदेश में 14,965 आत्महत्याएं, पश्चिम बंगाल में 13,500 आत्महत्याएं और कर्नाटक में 13,056 आत्महत्याएं, क्रमशः13.5 फीसदी, 11.5%, 9.1%, 8.2% और 8.0% दर्ज की गईं। पिछले साल देश में हुई कुल आत्महत्याओं में केवल इन 5 राज्यों की हिस्सेदारी 50.4% थी। शेष 49.6% आत्महत्याएं शेष 23 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में दर्ज की गईं। देश के सबसे अधिक आबादी (देश की आबादी का 16.9% हिस्सा) वाले राज्य उत्तर प्रदेश में देश में आत्महत्या से होने वाली मौतों का कुल प्रतिशत 3.6% है।
दिल्ली, जो सबसे अधिक आबादी वाला केंद्र शासित प्रदेश है, ने केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे अधिक (2,840) आत्महत्याएं दर्ज की है, इसके बाद (504) आत्महत्याओं के साथ पुडुचेरी का स्थान है। 2021 के दौरान देश के 53 मेगा शहरों में कुल 25,891 आत्महत्याएं दर्ज की गईं। इस दौरान आत्महत्या की अखिल भारतीय दर (प्रति एक लाख जनसंख्या पर) 12 लोग थी। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ने आत्महत्या की उच्चतम दर (39.7) दर्ज की। इसके बाद प्रति एक लाख जनसंख्या पर आत्महत्या की दर सिक्किम में (39.2), पुडुचेरी में (31.8), तेलंगाना में (26.9) और केरल में (26.9) लोग दर्ज की गई। देश में 'पारिवारिक समस्याएं' और 'बीमारी' आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से थे, जो 2021 के दौरान क्रमशः 33.2% और 18.6% कुल आत्महत्याओं के लिए जिम्मेदार थे। गृहिणियों द्वारा की गई अधिकांश आत्महत्याओं की रिपोर्ट तमिलनाडु में (23,178 में से 3,221), उसके बाद मध्य प्रदेश में (3,055) और महाराष्ट्र में (2,861 आत्महत्या) दर्ज की गई।
2021 के दौरान 5,318 किसानों और 5,563 खेतिहर मजदूरों सहित कृषि क्षेत्र में शामिल कुल 10,881 व्यक्तियों ने आत्महत्या की, जो देश में कुल आत्महत्या पीड़ितों का 6.6% है। जिनमें कुल 5,107 पुरुष और 211 महिलाएं शामिल थीं। सभी 5,318 किसान आत्महत्याओं में से, महाराष्ट्र (37.3%), कर्नाटक (19.9%), आंध्र प्रदेश (9.8%), मध्य प्रदेश ( 6.2) और तमिलनाडु में (5.5%) दर्ज की गई। 2021 के दौरान खेतिहर मजदूरों द्वारा की गई 5,563 आत्महत्याओं में से 5,121 पुरुष और 442 महिलाएं थीं। कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुडुचेरी में किसानों के साथ-साथ कृषि मजदूरों की आत्महत्या की कोई भी सूचना प्राप्त नहीं हुई। 2021 में कुल आत्महत्या पीड़ितों में नौकरीपेशा लोगों की संख्या 1.2% (1,898) थी। कुल आत्महत्याओं में छात्रों और बेरोजगारों की संख्या क्रमश: 8% (13,089 पीड़ित) और 8.4% (13,714 ) थी। कुल आत्महत्या पीड़ितों का 12.3% (20,231) स्व-रोजगार श्रेणी में शामिल था। एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि कोरोना महामारी के बाद से भारत में आत्महत्या की दर में स्पष्ट वृद्धि हुई है। हालांकि, 2021 का आंकड़ा और अधिक चिंताजनक इसलिए भी है क्योंकि अध्ययन में कहा गया है कि एनसीआरबी (NCRB) के आत्महत्या के आंकड़े वास्तविक आत्महत्या दर को कम करके आंक सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (United Nations Sustainable Development Goals (SDGs) के तहत, तीसरा लक्ष्य सभी के लिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना और हर उम्र के लिए कल्याण को बढ़ावा देना है। इस लक्ष्य के अनुसार, विभिन्न देशों को मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देकर समय से पहले मृत्यु दर को कम करने पर काम करना चाहिए। दुर्भाग्य से, हाल के वर्षों में भारत में प्रवृत्ति इस अपेक्षा के विपरीत रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2010 से 2017 तक आत्महत्या की दर में कमी देखी गई, लेकिन तब से यह निरंतर बढ़ रही है। एनसीआरबी द्वारा जारी आकस्मिक मौतों और आत्महत्याओं पर रिपोर्ट भी 2021 में भारत में आत्महत्या से संबंधित मौतों में एक रिकॉर्ड उच्च को रेखांकित करती है।
2019 में करीब 1.39 लाख लोगों की आत्महत्या से मौत हुई। लेकिन वर्ष 2021 में नौकरी के बाजार में अनिश्चितता, लंबे समय तक अलगाव, आसमान छूती मुद्रास्फीति और वित्तीय संकट के परिणामस्वरूप मानसिक बीमारी का भार बहुत अधिक बढ़ गया। एनसीआरबी के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, भारत में हर हफ्ते करियर या कार्यस्थल (Office) की समस्याओं के कारण 50 लोग आत्महत्या करते हैं। 2020 में इस तरह के कारणों से रिकॉर्ड 2,593 लोगों की मौत हुई, जो पिछले वर्ष की तुलना में 41% अधिक है। एनसीआरबी आत्महत्या के आंकड़ों को नौ व्यावसायिक श्रेणियों में विभाजित करती है, और उनमें से, 2021 में आत्महत्या की अधिकतम संख्या दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों, स्वरोजगार, बेरोजगार और गृहिणियों के बीच दर्ज की गई थी। चार आत्महत्याओं में से एक में दैनिक वेतन भोगी शामिल थे, जिसमें 2021 में 42,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। डेटा महत्वपूर्ण है क्योंकि महामारी के दो वर्षों के दौरान ही दैनिक जीवन यापन करने वाले हजारों लोगों ने अपनी आजीविका खो दी थी। भारत के शीर्ष शहर, जहां बहुत से लोग बेहतर नौकरी की संभावनाओं और निर्वाह के साधनों की तलाश में आते हैं, वह आत्महत्या के सबसे अधिक संख्या के साथ आत्महत्या के हॉटस्पॉट (suicide hotspots) बन गए हैं।
विशेष रूप से, चार प्रमुख शहर दिल्ली (2,760), चेन्नई (2,699), बेंगलुरु (2,292), और मुंबई (1,436), में सभी 53 मेगासिटी से रिपोर्ट की गई सभी आत्महत्याओं का लगभग 35.5% हिस्सा हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई में आत्महत्या की संख्या में 12% (1,282 से 1,436 तक) , इसके बाद चेन्नई में 11.1% (2,430 से 2,699 तक), और बेंगलुरु में 4.4% (2,196 से 2,292 तक) की वृद्धि हुई है। लेकिन आज देश जिस स्पष्ट संकट का सामना कर रहा है, उसके बावजूद आत्महत्या की रोकथाम पर शायद ही उस स्तर का प्रणालीगत ध्यान दिया जा रहा है जिसकी उसे आवश्यकता है। दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2022 के माध्यम से हमें मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा और सुधार के प्रयासों से अवगत कराया जायेगा।
हमारे देश में आत्महत्या के मामलों को लगभग हमेशा व्यक्तिगत मामलों के रूप में देखा जाता है, जिसमें मामले की विशेष या विशिष्ट परिस्थितियों पर शायद ही कभी एक समग्र सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में ध्यान दिया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार देश में पूरी स्वास्थ्य प्रणाली ने ज्यादातर व्यक्तिगत परिस्थितियों या चिकित्सा समस्याओं के उपचार पर ही जोर दिया है। स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, मानसिक या अन्यथा को शायद ही कभी एक संरचनात्मक समस्या के रूप में देखा जाता है, जो प्रणालीगत परिवर्तनों की मांग करती है। दुनिया भर से इस बात के ठोस सबूत हैं कि मीडिया को अधिक जिम्मेदारी से आत्महत्याओं की रिपोर्ट करने से आत्महत्याओं में कम से कम 1 से 2% की कमी आएगी।
सौमित्र एक सलाहकार मनोचिकित्सक और पुणे में मानसिक स्वास्थ्य कानून और नीति केंद्र के निदेशक हैं। उन्होंने भारत के नए मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 का मसौदा तैयार करने में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को तकनीकी सहायता प्रदान की है, जो इस मुद्दे पर अधिकार-आधारित दृष्टिकोण प्रदान करता है। डॉ सौमित्र ने तमिलनाडु के उदाहरण का भी उल्लेख किया जहां कार्यकर्ताओं ने कड़ा अभियान चलाया और राज्य सरकार को बोर्ड परीक्षा परिणाम के बाद पूरक परीक्षा शुरू करने के लिए कहा। यह देखा गया कि जहां 10 वर्षों की अवधि में परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या दोगुनी हो गई, वहीं असफलता के बाद आत्महत्या करने वालों की संख्या पहले की तुलना में आधी हो गई।

संदर्भ
https://bit.ly/3RqIt1M
https://bit.ly/3Sx1sJu
https://bit.ly/3SrV1XR

चित्र संदर्भ
1. तनाव से जूझती महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. राज्यों के अनुसार आत्महत्या के मामलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. खेत में टहलते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. कोरोना वैक्सीन लगवाते व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. तनावग्रस्त कर्मचारी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
6. मानसिक स्वास्थ्य दिवस को दर्शाता एक चित्रण (economictimes)
7. प्रसन्न भारतीय बालिकाओं को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)



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