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यदि हम गौर करें तो पाएंगे की वास्तविक आज़ादी के कई मायने होते हैं। उदाहरण के तौर पर एक
महिला के लिए सच्ची आज़ादी तभी है, जब वह समाज में बराबरी से शिक्षा ग्रहण करने, नौकरी में
समान वेतन पाने और मजबूती से अपनी बात रखने में सक्षम हो। साथ ही कई समुदायों के लिए
अस्पृश्यता, भेदभाव और घृणा से मुक्ति ही वास्तविक आज़ादी है। किंतु आज़ादी के संदर्भं में सबसे
रोचक एवं शिक्षाप्रद विचारधारा हमें गांधीजी की देखने को मिलती है।
यदि हम परिभाषा के तौर पर समझें तो स्वतंत्रता बिना किसी बाधा या संयम के कार्य करने, बोलने
या सोचने की शक्ति या अधिकार, और एक निरंकुश सरकार की अनुपस्थिति है। उदाहरण के तौर
पर प्रेस की स्वतंत्रता, सरकार को सूचना या राय के मुद्रण और वितरण में हस्तक्षेप करने से रोकती
है। स्वतंत्रता को बिना किसी बाधा के कार्य करने, बदलने या किसी के उद्देश्यों को पूरा करने की
शक्ति और संसाधनों को रखने की क्षमता के रूप में समझा जाता है। संघ की स्वतंत्रता के अधिकार
को मानवाधिकार, राजनीतिक स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता के रूप में मान्यता दी गई है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की, संघ की, सभा की और याचिका की स्वतंत्रता शामिल है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोगों को सरकारी हस्तक्षेप के बिना सार्वजनिक रूप से अपनी राय
व्यक्त करने का अधिकार है। इसके साथ ही धर्म की स्वतंत्रता एक व्यक्ति या समुदाय की
सार्वजनिक या निजी रूप से, शिक्षण, अभ्यास, पूजा और धर्म में विश्वास को प्रकट करने की
स्वतंत्रता है। स्वतंत्रता का पहला ज्ञात लिखित संदर्भ उर के तीसरे राजवंश (Third Dynasty of
Ur) (c. 2112 BC – c. 2004 BC) के दौरान अमा-गी (Ama-gi) के रूप में, बंधन या ऋण से मुक्ति के
अर्थ में प्रकट होता है, और इसका शाब्दिक अर्थ है "माँ की ओर लौटना।"
महात्मा गांधी स्वतंत्रता के बहुत बड़े पक्षधर थे। गांधी जी के पास कई दिलचस्प और दुर्जेय
व्यक्तिगत विशेषताएं जैसे शारीरिक और राजनीतिक दोनों में विलक्षण साहस, आत्म-अनुशासन,
तपस्या और हास्य आदि थी। जिन्होंने महात्मा के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभाई होगी।
लेकिन यदि उनके राजनीतिक दर्शन को एक मुहावरे में संक्षिप्त कर दिया जाए तो वह यह होगा:
व्यक्ति की स्वतंत्रता।
गांधी जी के लिए पूर्ण स्वतंत्रता, पहला और अंतिम लक्ष्य था। ब्रिटेन से भारत की आजादी, उनके
लिए केवल एक उद्देश्य मात्र था, लेकिन उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण प्रत्येक व्यक्ति की अपनी
स्वतंत्रता की खोज करने की क्षमता थी। उन्होंने लिखा, "असली स्वराज (स्वतंत्रता) कुछ लोगों
द्वारा अधिकार के अधिग्रहण से नहीं आएगी, बल्कि सभी के द्वारा सत्ता का दुरुपयोग होने पर
विरोध करने की क्षमता के अधिग्रहण से होगी।"
उन्होंने अहिंसा को आवश्यक माना क्योंकि यह संघर्ष का एकमात्र लोकतांत्रिक साधन थी। यह
सभी के लिए उपलब्ध थी। उनका मानना था की, एक हिंसक जीत, केवल यह साबित करेगी कि
हिंसा की जीत हुई थी। एक हिंसक समाधान का मतलब होगा कि निहत्थे कई लोगों का भाग्य कुछ
सशस्त्र लोगों की भलाई के लिए गिरवी रख दिया जाए। और गांधीजी के नजरिये से यह स्वतंत्रता
के विपरीत था।
गांधी भारत के पुनर्जीवित कुटीर उद्योग के मुख्य वास्तुकार थे। वह ब्रिटिश सरकार के पीछे भारत
को निर्यात कम करने की शिकायत करते हुए नहीं भागे। इसके बजाय, उन्होंने लोगों को भारतीय
निर्मित सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया। इसका संबंध भी स्वतंत्रता से है, क्यों की सरकार से
कुछ माँगने से ही उसकी शक्ति में वृद्धि होती। इसके बजाय गांधी ने विदेशी कपड़े छोड़कर और
खादी पहनकर प्रत्येक व्यक्ति को बयान देने के लिए सशक्त बनाने का विकल्प चुना।
महात्मा गांधी की स्वतंत्रता की अवधारणा उस कथन से स्पष्ट होती है जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से
कहा था कि “भारत वास्तव में तब स्वतंत्र होगा जब स्वतंत्रता देश के सबसे गरीब गांव में सबसे
जर्जर झोपड़ी के दरवाजे तक पहुंचेगी।” उन्होंने कहा कि जब अंग्रेज देश छोड़ेंगे तो स्वराज नई
दिल्ली में जरूर पहुंचेगा, लेकिन जब तक यह हर झोपड़ी में नहीं जाता, और हर गांव को अपने
जीवन में आजादी (स्वराज) महसूस नहीं होती, तब तक इसका कोई खास मतलब नहीं होगा।
उनका मतलब यह था कि जब तक भारत का आम आदमी गरिमा और निडरता का जीवन नहीं
जीता, तब तक भारत उसकी अवधारणा की स्वतंत्रता को प्राप्त नहीं करेगा।
उनके शब्द थे “मुझे भारत को केवल अंग्रेजों के जुए से मुक्त कराने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं
भारत को किसी भी तरह के जुए से मुक्त करने के लिए तैयार हूं।' एक अन्य अवसर पर उन्होंने
कहा था: 'स्वशासन का अर्थ है सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र होने का निरंतर प्रयास, चाहे वह विदेशी
हो या राष्ट्रीय हो।' असली स्वतंत्रता कुछ लोगों द्वारा अधिकार हासिल करने से नहीं आएगी, बल्कि
सत्ता का दुरुपयोग होने पर सभी की क्षमता का अधिग्रहण करने से होगी।' गांधी के विचारों की
सच्चाई इस तथ्य से स्पष्ट होती है कि तकनीकी प्रगति के बावजूद, मनुष्य अभी भी भय और
अविश्वास में जी रहा है।
बेशक गांधी के बारे में अनोखी बात यह है कि उन्होंने आज़ादी के प्रश्न को
एक नई दिशा दी। उन्हें उम्मीद थी कि छोटे राष्ट्र भी अहिंसा के हथियार से बड़ी शक्तियों से लड़ने
में सक्षम हो सकते हैं। अगर मनुष्य शांति और भाईचारे में रहना और जीना चाहता है तो वह गांधी
के विचारों की मदद से ऐसा कर सकता है।
गांधी ने उन क्रांतिकारियों को पूरी तरह से पहचाना और उनका सम्मान किया, जिनका तरीका
हिंसा का था। लेकिन समय-समय पर उन्होंने कहा कि “अहिंसा एक श्रेष्ठ शक्ति है और यह कायरों
का नहीं बहादुरों का हथियार है। ''एक अहिंसक संघर्ष में कोई विद्वेष नहीं रहता है और अंत में शत्रु
मित्र बन जाते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3UHzwnw
https://bit.ly/2WqHX7L
https://bit.ly/3Rj1jb1
https://bit.ly/2CYyYne
चित्र संदर्भ
1. स्कूल में बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. एक रैली में शामिल महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. वल्लभभाई पटेल के साथ शिमला में गांधीजी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. पढाई करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कौमी एकता को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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