लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहर में शामिल है मूसा बाग, जहां से 1857 का विद्रोह शुरू और समाप्त हुआ

वास्तुकला I - बाहरी इमारतें
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लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहर में शामिल है मूसा बाग, जहां से 1857 का विद्रोह शुरू और समाप्त हुआ

लखनऊ एक शानदार ऐतिहासिक शहर है, जहां अद्भुत स्मारक, उद्यान,पार्क आदि मौजूद हैं। इन ऐतिहासिक स्मारकों को ज्यादातर अवध और ब्रिटिश राज के नवाबों के शासनकाल के दौरान बनाया गया था। इन ऐतिहासिक स्मारकों में बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा रूमी दरवाजा आदि शामिल है,जो लखनऊ को एक अनूठी पहचान देते हैं।लखनऊ की शामें हमेशा कई खूबसूरत पार्कों और उद्यानों की उपस्थिति के कारण लोकप्रिय रही हैं। अपने शाम के समय को सुंदर ढंग से व्यतीत करने के लिए यहां नवाबों द्वारा सुंदर-सुंदर बाग बनाए गए। शायद यही कारण है, कि शहर के कुछ इलाकों के नाम के साथ "बाग" शब्द जुड़ा हुआ है, जैसे दलीबाग, चारबाग, आलमबाग, सिकंदरबाग, खुर्शीदाबाग और मूसा बाग। लखनऊ के पश्चिमी छोर पर स्थित है ऐतिहासिक मूसा बाग। यह हरे-भरे उपजाऊ खेतों और जंगल के साथ एक बहुत ही सुरम्य स्थान है, जहां प्रभावशाली इंडो-यूरोपीय (Indo- European) शैली के स्मारक को देखा जा सकता है। यह स्मारक 1857 के विद्रोह का साक्षी भी है। अवध प्रांत के 5 वें नवाब, नवाब सादत अली खान ने गोमती नदी के किनारे सुरम्य मूसा बाग में एक सुंदर कोठी या महल का निर्माण किया। कोठी में सूक्ष्म फ्रांसीसी वास्तुशिल्प को शामिल किया गया था और बड़े आकर्षक उद्यानों के साथ यह बनाया गया था। मूसा बाग कोठी को अवकाश और मनोरंजक गतिविधियों के लिए नवाब सादत अली खान के शासनकाल के दौरान विकसित किया गया था।
कोठी को नवाब के करीबी विश्वासपात्र आज़म-उद-दुल्लाह की देखरेख में बनाया गया था तथा नवाब और यहां आए विदेशी गणमान्य व्यक्ति, ज्यादातर यूरोपीय, अपने खाली समय को व्यतीत करने तथा बाग में गैंडों, हाथियों, बाघों और जंगली भैंस जैसे जानवरों के बीच के युद्ध का आनंद लेने के लिए इस जगह का उपयोग करते थे। नवाब गाजी-उद-दीन हैदर और उनके बेटे नसीर-उद-दीन हैदर ने रेजीडेंसी (Residency) के वैकल्पिक स्थल के रूप में अंग्रेजों को मूसा बाग की पेशकश की, लेकिन ब्रिटिश प्रशासन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। मूसाबाग के नामकरण के पीछे कई किंवदंतियां मौजूद हैं, लेकिन वे वास्तविक नहीं हैं। कोई कहता है कि इसका नाम हजरत मूसा के नाम पर पड़ा तो किसी का मानना है कि किसी के घोड़े की टाप के नीचे एक चूहा(मूषक) आकर मर गया था, इसलिए इसका नाम मूसाबाग पड़ गया। दरअसल, इसका निर्माण फ्रांसीसी आर्किटेक्ट क्लाउड मार्टिन (Claude Martin) द्वारा बनाए गए “लड़कों के लिए ला मार्टिनियर कॉलेज” (La Martiniere College for Boys) की बिल्डिंग कोंस्टांटिया (Constantia) और छतर मंजिल जिसे तब फरहट बख्श (Farhat Bakhsh) कहा जाता था, की वास्तुकला से प्रभावित होकर कराया गया।
मूसा बाग कोठी में मिट्टी से बनी पाइपलाइनें थी,जो फ्लैट की छत पर लगे वेंट्स (Vents) से जोड़ी गई थीं।यह अनूठी वास्तुशिल्प व्यवस्था कोठी के अंदर उचित वेंटिलेशन और शीतलन की सुविधा के लिए बनाई गई थी, खासकर गर्मियों के दिनों के दौरान। कोठी के आसपास की नम धरती गोमती नदी के करीब थी, जो गर्मी के मौसम के दौरान अतिरिक्त शीतलन प्रदान करती थी।कोठी में एक सुंदर अर्ध-गोलाकार पोर्च (Porch) भी था, जहां से गोमती नदी का दृश्य दिखाई देता था।
1857 के विद्रोह के दौरान यह स्थान राजकुमार बिरजिस कद्र (Birjis Qadr) और बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal) का गढ़ भी रहा। जनरल आउट्राम (General Outram) के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा कोठी पर हमला किया गया था, जिसमें लगभग, पांच सौ विद्रोही मारे गए और उनके सभी हथियार और गोला-बारूद को मूसा बाग में पकड़ लिया गया। यह विचित्र है, लेकिन 1857 का विद्रोह मूसा बाग में ही शुरू हुआ और मूसा बाग में ही समाप्त हुआ। विद्रोह के दौरान, 7वीं अवध अनियमित घुड़सवार सेना मूसा बाग में स्थित थी। कुछ ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार, 7 वें अवध अनियमित घुड़सवारों के कुछ सैनिकों ने कारतूस को दांत से काटने से इनकार कर दिया था, क्यों कि उनका मानना था कि यह गायों की चर्बी से बना है।
इस प्रकार सर हेनरी लॉरेंस (Henry Lawrence) ने ऐसे सैनिकों के सभी हथियारों को जब्त करने का आदेश दिया। इस घटना के बाद मूसा बाग में अनेकों घटनाएँ सामने आने लगीं। 1857 के विद्रोह के संघर्ष के दौरान मूसा बाग में ब्रिटिश रेजिमेंट के कैप्टन वेल्स (Captain Wales) बुरी तरह से घायल हो गए और 21 मार्च 1858 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें मूसा बाग कोठी के परिसर में दफनाया गया और उनके मज़ार (कब्र) के लिए एक संलग्नक भी बनाया गया। ऐसी मान्यता है, कि स्थानीय लोग अपनी व्यक्तिगत इच्छा पूरी होने पर कैप्टन वेल्स की मजार पर शराब, मांस और सिगरेट चढ़ाते हैं। मूसा बाग लखनऊ-हरदोई राजमार्ग पर चौक कोनेश्वर के केंद्र से 5 किलोमीटर दूर स्थित है। मूसा बाग कोठी इस समय खंडहर बनी हुई है।वर्तमान समय में यहां गुंबददार छत के साथ दो बड़े खंड और एक छत रहित संरचना जो जमीन के नीचे धँसी हुई है, मौजूद है।इस इमारत में फ्रांसीसी इमारतों के साथ-साथ कई विशेषताएं मौजूद थीं, जिन्हें 19 वीं शताब्दी के शुरुआती यूरोपीय आगंतुकों द्वारा बहुत सराहा गया।

संदर्भ:

https://bit.ly/3SD1tv5
https://bit.ly/3SokTmX
https://bit.ly/3BYyH2v

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहर में शामिल है मूसा बाग, जिसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मूसा बाग में मकबरे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. अमीर के युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मूसा बाग स्मारक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)