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ओजोन एक ऐसी गैस है जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनी है जबकि साधारण
ऑक्सीजन दो परमाणुओं से बनी होती है। ओजोन वायुमंडल की एक सूक्ष्म परत है जो
वास्तव में समस्त वायुमंडल में बहुत कम है। तथापि ओजोन की यह पतली-सी परत धरती
पर जीवन की सुरक्षा के लिए अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यह सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी
प्रकाश को पृथ्वी पर पहुँचने से रोकती है। यह ओजोन कवच न हो तो परिणाम मनुष्य के
लिए हानिकारक होंगे। पराबैंगनी विकिरण जीवित पदार्थों के क्षय में सक्षम है और मानव
चमड़ी पर इसके आधिक्य से कैंसर हो सकता है। अतः यदि मानव धूप का आनंद लेते रहना
चाहता है तो ओजोन परत को बचाए रखना अत्यन्त आवश्यक है।
लेकिन अंटार्कटिका क्षेत्र में ओजोन छिद्र की उपस्थिति इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि यह
एक समय के बाद पूर्णतः निष्क्रिय हो जाएगी क्यूंकि कुछ रसायन-समूह इसके लिए
विनाशकारी साबित हो रहे हैं। ये रसायन समूह जिन्हें क्लोरोफ्लूरोकार्बन (सीएफसी) के नाम
से जाना जाता है, वायुमंडल की ऊपरी सतह में विद्यामान ओजोन की क्षति और ‘ओजोन
छिद्र’ की उत्पत्ति के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी माने गए हैं। क्लोरोफ्लूरोकार्बन अथवा
सीएफसी प्रकृति में स्वयं विद्यमान नहीं होते ये क्लोरीन, फ्लोरीन एवं कार्बन के मनुष्य
निर्मित रसायन समूह हैं जिनकी खोज 1920 के दशक के उत्तरार्द्ध में हुई थी। एक दशक के
भीतर ही रेफ्रिजेरेटरों में अमोनिया के स्थान पर कूलिंग के लिए इनका इस्तेमाल किया जाने
लगा। साथ ही एयरकंडीशनरों में भी इनका इस्तेमाल जारी रहा। इनके असीमित उपयोग के
घातक दुष्परिणामों की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। लेकिन बाद में देखा गया की
सीएफसी के इस व्यापक उपयोग के कारण ओजोन की निष्क्रियता एवं स्थिरता बढ़ गई।
1990 वाले दशक से हम सीएफसी (या क्लोरोफ्लोरोकार्बन) और ओजोन परत की
नि:शेषीकरण में उसकी भागीदारी के बारें में, बहुत कुछ सुनते आ रहे हैं, उस वक़्त ऐसी भी
काफी चर्चा होती थी कि सभी पर्यावरण को नुकसान पहुचाने वाले रेफ्रिजरेंट्स, को चरणबद्ध
तरीके से कैसे समाप्त किया जाए। परन्तु आज भारतीय फ्रिज निर्माताओं ने एक ऐसी
तकनीक की खोज की है जिससे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) का विकल्प खोज सकते हैं
जिसे कुछ यूरोपीय देशों में पुनर्जीवित किया जा रहा है। पर्यावरण के अनुकूल होने के
अलावा, इस तकनीक को अपनाने से भारतीय निर्माताओं को सीएफसी के विकल्प के लिए
पश्चिमी कंपनियों पर निर्भरता से छुटकारा भी मिलेगा। वर्तमान में सीएफसी को HFC-134a
(हाइड्रो फ्लुओरोकार्बोन) के साथ परिवर्तित कर दिया गया हैं। HFC-134a, आज भी बाजार
में उपलब्ध अधिकांश एयर कंडीशनरों में बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है। एचएफसी,
सीएफसी की तुलना में बेहतर होते हैं।
हालांकि कुछ निर्माता HFC-134a विकल्प को
अपनाने की योजना बना रहे हैं, तथा अन्य भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप ओजोन के
अनुकूल प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर विचार कर रहे हैं। एक संभावित विकल्प इको फ्रिज
(Eco Fridge) है, जो शीतलक के रूप में एक हाइड्रोकार्बन मिश्रण का उपयोग करता है जो
ओजोन परत के लिए हानिकारक नहीं है और ग्लोबल वार्मिंग में भी इसका कोई भी योगदान
नहीं है। आइसोब्यूटेन (Isobutane) और साइक्लोपेंटेन (cyclopentane) सहित हाइड्रोकार्बन
एरोसोल (Hydrocarbon aerosols) आज फोम-ब्लोइंग (foam-blowing) और रेफ्रिजरेशन
क्षेत्रों में उपयोग के लिए गैर ओजोन क्षयकारी पदार्थों (Non Ozone Depleting
Substances) विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं। प्रोपेन (propane) और आइसोब्यूटेन के
मिश्रण को भी रेफ्रिजरेशन क्षेत्रों में कई निर्माताओं द्वारा अपनाया जा रहा है, जो इसे एक
सस्ते, आसानी से उपलब्ध विकल्प के रूप में देखते हैं। हाइड्रोकार्बन मिश्रणों की कीमत
सीएफ़सी-12 की तुलना में लगभग आधी और एचएफसी-134ए के दसवें हिस्से के बराबर
होती है।
ओजोन का नाश अब एक तथ्य के रूप में जाना जा चुका है, ओजोन छिद्र से होने वाले
वास्तविक खतरों का पता चलना अभी शुरू ही हुआ है। ओजोन परत के विनाश के
विश्वव्यापी खतरे की समस्या का हल निकालने हेतु 16 सितम्बर, 1987 में कनाडा
(Canada) के मांट्रियल शहर में हुई 47 राष्ट्रों की एक बैठक में विचार किया गया और
मांट्रियल प्रोटोकाल नामक एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। तब से विश्व ओजोन दिवस हर
साल 16 सितंबर को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol) पर हस्ताक्षर करने के
उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के उत्पादन
और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि
है। यह दिवस हर वर्ष ओजोन परत को हो रहे नुकसान के बारे में और इसे संरक्षित करने के
लिए किए गए और किये जा रहे उपायों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए
मनाया जाता है।
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि भारत ने ओजोन को नुकसान पहुंचाने
वाले कई प्रमुख पदार्थों के उत्पादन और खपत को सफलतापूर्वक चरणबद्ध तरीके से समाप्त
कर दिया है। 27वें वैश्विक ओजोन दिवस पर एक कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए, उन्होंने
यह भी कहा कि देश ने प्रोटोकॉल के तंत्र से तकनीकी और वित्तीय सहायता प्राप्त करके
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के सभी दायित्वों को पूरा किया है। विश्व ओजोन दिवस 2021 की थीम
'मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल - हमारे भोजन और वैक्सीन को ठंडा रखना (Keeping us, our food
and vaccines cool) थी। चौबे ने कहा, "ओजोन क्षयकारी पदार्थों (ओडीएस) को चरणबद्ध
तरीके से समाप्त करने में भारत की सफलता के कारणों में से एक योजना और कार्यान्वयन
दोनों स्तरों पर प्रमुख हितधारकों की भागीदारी है।’’ मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन
को हाल ही में भारत द्वारा अनुमोदित किया गया था। किगाली संशोधन का उल्लेख करते
हुए मंत्री ने कहा कि इसे लागू करने के लिए हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम
करने की रणनीति विकसित करते समय औद्योगिक नवीनीकरण पर ध्यान देना चाहिए और
प्रतिकूल आर्थिक प्रभावों से संबंधित मुद्दों को उचित रूप से संबोधित किया जाना चाहिए।
चौबे ने इमारतों में विषयगत एरिया स्पेस कूलिंग (area space cooling) के लिए इंडिया
कूलिंग एक्शन प्लान (India Cooling Action Plan-ICAP) की सिफारिशों को लागू करने
के लिए 'कार्य योजना' जारी की। आईसीएपी में दी गई सिफारिशों की मैपिंग के बाद और
संबंधित विभागों और मंत्रालयों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ विस्तृत चर्चा के बाद कार्य
योजना विकसित की गई है। भारत जून 1992 को ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों
पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक पक्षकार बन गया था और तभी से भारत ओजोन क्षयकारी
पदार्थों को प्रोटोकॉल के चरणबद्ध कार्यक्रम के अनुरूप परियोजनाओं और गतिविधियों को
चरणबद्ध तरीके से कार्यान्वित कर रहा है। भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुरूप
क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म
को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर रहा है।
वर्तमान में, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के त्वरित कार्यक्रम के अनुसार हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन को
चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है। मंत्रालय ने बताया है की
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन फेज आउट मैनेजमेंट प्लान (Hydrochlorofluorocarbons Phase
out Management Plan-HPMP) स्टेज- I को 2012 से 2016 तक सफलतापूर्वक लागू
किया गया था और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन फेज आउट मैनेजमेंट प्लान (HPMP) स्टेज- II
को 2017 में लागू किया गया था जो 2023 तक पूरा हो जाएगा। भारत सरकार के पर्यावरण
एवम् वन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का
प्रयोग करते हुए ओजोन अवक्षयकारी प्रदार्थो के विनियमन के लिए ओजोन अवक्षयकारी
पदार्थ (विनियमन ओर नियंत्रण) नियम, 2000 अधिसूचित किया गया है, जो दिनांक 19
जुलाई, 2000 से लागू हो गये है।
इन नियमों में विभिन्न प्रतिबन्धों एवं दायित्यवों के साथ-
साथ ओजोन अवक्षयकारी पदार्थो के फेज आऊट करने की समय-सीमा निर्धारित की गयी है
जिसका अनुपालन किया जाना प्रत्येक संबंधित के लिए आवश्यक है। नियमों की अवहेलना
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है। 1995 में जिनेवा में
पार्टियों की बैठक की सिफारिश के आधार पर भारत ने 1996 में लाइसेंस प्रणाली की
शुरुआत भी की थी। भारत ने ओडीएस (Ozone Depleting Substances) के आयात और
निर्यात के लाइसेंस से संबंधित नियमों को लागू किया है। लाइसेंस प्रणाली का कार्यान्वयन
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के प्रावधानों तथा व्यापार और खपत के विनियमन से संबंधित है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3BvFkZG
https://bit.ly/3Bu7K6s
https://bit.ly/3Bu7qVi
चित्र संदर्भ
1. समय के साथ ओज़ोन परत के भरण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. अंतरिक्ष से ओज़ोन परत को दर्शाता एक चित्रण (UKRI)
3. ओज़ोन चक्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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