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आज भारतीय समाज में नई इलेक्ट्रिक कारों के भविष्य एवं उपयोग को लेकर अच्छा खासा उत्साह
देखा जा रहा है। किंतु क्या आप जानते हैं की जब 1897 में कलकत्ता में रहने वाले एक भारतीय
व्यक्ति भारत में पहली कार लेकर आए तो, इस चौपहिया वाहन को देखकर पूरे कलकत्ता के
निवासियों के जहन में खौफ पसर गया था। भारत में शुरुआती कारों से जुड़े ऐसे ही कई किस्से बेहद
दिलचस्प हैं, जिनके बारे में हम इस लेख में संक्षेप में जानेंगे।
कलकत्ता में भारत की पहली कार लॉन्च की गई थी। पहली कार संभवतः एक फ्रांसीसी मॉडल, डी
डियोन (De Dion) थी। 1897 में कलकत्ता का एक निवासी भारत में पहली कार लेकर आये थे। इसके
एक वर्ष बाद मुंबई में टाटा साम्राज्य के संस्थापक जमशेदजी टाटा सहित पारसी सज्जनों के
स्वामित्व वाली चार कारें भारत में आईं। लेकिन उस समय (1898) तक कलकत्ता में आधा दर्जन से
अधिक कारें चल रही थीं। आज भारत का सबसे बड़ा कार बाजार, दिल्ली, उस दौरान एक पिछड़ा
हुआ बाजार था, जबकि मद्रास ने अपनी पहली कार 1901 में आकर देखी थी।
इसका स्वामित्व
पैरीज़ एंड कंपनी (Parrys and company) के एक सज्जन मिस्टर ए यॉर्क (Mr A Yorke) के पास
था, लेकिन, उसका रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ था। मद्रास में पहली पंजीकृत कार एक सिविल सेवक
फ्रांसिस स्प्रिंग (Francis Spring) नाम के एक अन्य ब्रिटिश सज्जन के पास आई, जो बाद में
मद्रास पोर्ट ट्रस्ट (Madras Port Trust) के अध्यक्ष बने।
कोलकाता की पहली कार डेनिस नामक एक कंपनी द्वारा बनाई गई थी, जिसने उन दिनों कठिन
और लंबे समय तक चलने वाले वाहनों के निर्माता के रूप में प्रतिष्ठा का स्वाद चखा। जैसे-जैसे
मोटर कारें शहर में अधिक दिखाई देने लगी, कुछ कंपनियों और धनी जमींदारों ने कारों के प्रभाव
को कोलकाता से आगे ले जाने की पहल की।
पेट्रोल या तेल से चलने वाले इंजन कई जिलों में पूरी तरह से अज्ञात नहीं थे, क्योंकि उनका उपयोग
बिजली उत्पादन, खदानों को साफ करने आदि जैसे कार्यों के लिए किया जाता था। लेकिन फिर भी
शुरुआती वर्षों में इनका रखरखाव एक बड़ी समस्या थी।
1904 में, बंगाल कोल कंपनी ने आधिकारिक तौर पर रानीगंज में अपनी खदानों में एक मोटर विंग
(motor wing) की स्थापना की। 1907 में, बर्न एंड कंपनी (Byrne & Company) ने अपने शीर्ष
प्रबंधन के उपयोग के लिए चार सीटों वाली एल्बियन कार (Albion car) खरीदी। इसके तुरंत बाद,
बंगाल के जमींदारों ने भी कार खरीदना शुरू कर दिया और लैंचेस्टर तथा फोर्ड मॉडल टी
(Lanchester and Ford Model T) जैसे मॉडलों की मांग बाजार में बढ़ने लगी थी। रिकॉर्ड बताते
हैं कि 1915-16 तक देश में एक हजार से अधिक कारें थीं।
1908 तक, एल्बियन जैसी कारों ने विलासता एवं आंतरिक सज्जा का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
इसी तरह, कुछ कारों को रेल और नाव से उत्तर बंगाल ले जाया गया, और कुछ को हिल कार्ट रोड से
दार्जिलिंग हिल्स (Hill Cart Road to Darjeeling Hills) पर भी चढ़ाया गया। एल्बियन और
डेनिस वाहन ने जिलों की कठोर परिस्थितियों में 15 वर्षों से अधिक समय तक चलकर
विश्वसनीयता और उपयोगिता के मामले में एक महान प्रतिष्ठा स्थापित की।
इस दौरान कार के विज्ञापन, खासकर बंगाली वाले, बहुत दिलचस्प थे। कारों को बेचने का तरीका
रोड शो, अमीरों तथा कंपनी के बीच हैंडबिल और पर्चे (handbills and pamphlets) के वितरण के
माध्यम से होता था। लोकप्रिय वाहनों में ट्रोजन, इंग्लैंड (Trojan, England) में बनी दो-स्ट्रोक
मिनी कार (two-stroke mini car), या सामान्य फोर्ड, ऑस्टिन या मॉरिस (Ford or Austin or
Morris) शामिल थे।
चूंकि उस युग में कारों में एक अलग चेसिस और बॉडीवर्क (Chassis and Bodywork) होता था,
इसलिए 15-20 वर्षों से अधिक की अवधि के बाद उन्हें फ्लैट खुले रैक के साथ परिष्कृत कर दिया
जाता था और हल्के लॉरी के रूप में उपयोग किया जाता था। इसके बाद, इंजनों का उपयोग कृषि
मशीनरी या पंपों को बिजली देने के लिए किया जाता था। मोटर परिवहन की सुगमता और सुख के
अलावा, मोटरिंग कुछ अप्रत्याशित लाभ लेकर आई। जैसे घोड़े और अन्य जानवरों के खुरों से फैलने
वाले घातक टिटनेस रोग में तेजी से कमी आई।
1940 के दशक में भारत में एक भ्रूणीय ऑटोमोटिव उद्योग (Embryonic Automotive
Industry) का उदय हुआ। हिंदुस्तान मोटर्स (Hindustan Motors) को 1942 में लॉन्च किया गया
था, महिंद्रा एंड महिंद्रा (Mahindra & Mahindra) को 1945 में दो भाइयों द्वारा स्थापित किया
गया था। उसी वर्ष, टाटा समूह के अध्यक्ष जे आर डी टाटा ने जमशेदपुर में टाटा इंजीनियरिंग और
लोकोमोटिव कंपनी (अब टाटा मोटर्स) की स्थापना की।
1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार और निजी क्षेत्र ने ऑटोमोबाइल उद्योग को आपूर्ति करने
के लिए एक मोटर वाहन-घटक निर्माण उद्योग बनाने के प्रयास शुरू किए। भारत में वाहन उद्योग
की शुरुआत 1940 के दशक में हुई। 1947 में आजादी के बाद, भारत सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा
वाहन उद्योग की आपूर्ति करने के लिए, वाहन के कल-पुर्जों के निर्माण हेतु उद्योग लगाने के
प्रयास किए गए। हालांकि राष्ट्रीयकरण और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा डालने वाले लाइसेंस
राज के कारण तुलनात्मक रूप से 1950 और 1960 के दशक में इस उद्योग की वृद्धि दर धीमी
रही।
1953 में, एक आयात प्रतिस्थापन कार्यक्रम शुरू किया गया था, और सरकार ने पूरी तरह से बाहर
निर्मित कारों के आयात को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया गया था। 1952 में, सरकार ने पहला
टैरिफ आयोग नियुक्त किया, जिसका एक उद्देश्य भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग के
स्वदेशीकरण के लिए एक व्यवहार्यता योजना तैयार करना था। 1953 में, आयोग ने अपनी रिपोर्ट
प्रस्तुत की, जिसमें मौजूदा भारतीय कार कंपनियों को उनके विनिर्माण बुनियादी ढांचे के अनुसार
वर्गीकृत करने की सिफारिश की गई थी, जिसमें एक निश्चित संख्या में वाहनों के निर्माण के लिए
लाइसेंस प्राप्त क्षमता के साथ, भविष्य में मांगों के अनुसार क्षमता में वृद्धि की अनुमति दी गई
थी। 1954 में, टैरिफ आयोग के कार्यान्वयन के बाद, जनरल मोटर्स, फोर्ड और रूट्स ग्रुप (General
Motors, Ford and Roots Group), जिनके असेंबली प्लांट (assembly plant) केवल मुंबई में
थे, ने भारत से बाहर जाने का फैसला किया।
आज भारत विश्व में छोटी कारों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बनकर उभरा है। न्यूयॉर्क टाइम्स
(New York Times) के अनुसार, भारत के मजबूत इंजीनियरिंग आधार तथा कम-लागत, इंधन-
दक्ष कारों के निर्माण में विशेषज्ञता के कारण अनेक वाहन निर्माता कम्पनियों की उत्पादन
सुविधाओं का विस्तार हुआ है।
2008 में, अकेले हुंडई मोटर्स (Hyundai Motors) ने ही भारत में निर्मित 2,40,000 कारों का
निर्यात किया। इसी प्रकार जनरल मोटर की योजना भारत में बनी 50,000 कारों के निर्यात की है।
फोर्ड मोटर्स द्वारा सितम्बर 2009 में, 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत से, 2,50,000 कारों की
वार्षिक उत्पादन क्षमता वाले संयंत्र की स्थापना की घोषणा की गई। ब्लूमबर्ग एल. पी.
(Bloomberg L. P.) के अनुसार 2009 में भारत ने एशिया के चौथे सबसे बड़े कार निर्यातक के रूप
में उभर कर चीन को पीछे छोड़ दिया।
2021 के आंकड़ों के अनुसार आज भारत में मोटर वाहन उद्योग दुनिया में चौथा सबसे बड़ा उद्योगबन गया है। 2020 तक, भारत बिक्री के मामले में जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का 5वां सबसे
बड़ा ऑटोमोबाइल बाजार रहा। वर्तमान में भारत का ऑटो उद्योग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर
से अधिक का हो चुका है और देश के कुल निर्यात में 8% का योगदान देता है तथा भारत के सकल
घरेलू उत्पाद का 2.3% है। भारत की प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माण कंपनियों में टाटा मोटर्स, अशोक
लीलैंड, महिंद्रा एंड महिंद्रा, फोर्स मोटर्स, ट्रैक्टर्स एंड फार्म इक्विपमेंट लिमिटेड, आयशर मोटर्स,
रॉयल एनफील्ड, सोनालिका ट्रैक्टर्स, हिंदुस्तान मोटर्स, हृदयेश, आईसीएमएल, केरल
ऑटोमोबाइल्स लिमिटेड, रेवा, प्रविग डायनेमिक्स (Tractors and Farm Equipment Ltd.,
Eicher Motors, Royal Enfield, Sonalika Tractors, Hindustan Motors, Hridayesh,
ICML, Kerala Automobiles Ltd., Reva, Prawig Dynamics) शामिल हैं।
1991 भारत में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण के बाद, बढ़ती प्रतियोगिता और सरकार द्वारा नियमों
को सरल बनाने के कारण भारतीय वाहन उद्योग ने लगातार वृद्धि की है। भारत की मजबूत
आर्थिक वृद्धि के कारण भारत के घरेलू वाहन बाजार का विस्तार हुआ है। अनुमान है कि 2050
तक भारत की सड़कों पर 61.1 करोड़ वाहन होंगे जो विश्व में मौजूद वाहनों की सर्वाधिक संख्या
होगी।
संदर्भ
https://bit.ly/3pY3NjD
https://bit.ly/3pTawvg
चित्र संदर्भ
1. एक पुरानी एवं एक आधुनिक कार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1913 डी डायोन मॉडल डीजेड को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. (1899) "इंडिया रबर वर्ल्ड" के पेज 635 से छवि प्कोराप्त दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और लॉर्ड एंड लेडी माउंटबेटन को शिमला का चक्कर लगाते हुए दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
5. टाटा मोटर्स (जो पहले टेल्को थी) ने भारत में ट्रकों के निर्माण के लिए डेमलर-बेंज के साथ सहयोग किया, और पहला ट्रक 6 महीने के भीतर तैयार किया गया। यह सौदा 15 साल के लिए था जिसके दौरान टाटा बेंज इंजन का उपयोग कर सकता था और उसे बेंज लोगो को फ्रंट ग्रिल में लगाना पड़ा। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. फोर्ड इंडिया न्यू ओवरहेड कन्वेयर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
7. टाटा मोटर्स के इलेक्ट्रिक वाहन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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