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यूं तो पूरे भारतवर्ष की अपनी अलग विशेषता है परंतु देश के प्रत्येक क्षेत्र का अपना एक इतिहास है। उत्तर प्रदेश राज्य का रामपुर
शहर अपने सांस्कृतिक भवनों, किलों और महलों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। यह शहर क्षितिज मीनारों और गुंबदों से
भरा है। हालाँकि इसके शुरुआती दिनों की बहुत सी इमारतें लुप्त हो चुकी हैं। रामपुर की स्थापना 7 अक्टूबर, 1774 में एक
पश्तून नवाब फैजुल्ला खान ने, नादिर शाह के आक्रमण के लगभग 35 साल बाद की थी। रामपुर के अंतिम नवाब रज़ा अली खान
थे जो 11 नवाबों के बाद सत्ता में आए थे। वर्ष 1966 में नवाब रज़ा अली खान की मृत्यु के बाद रामपुर ने अपनी उस समय की
उत्कृष्ट जीवन शैली को खो दिया।
रामपुर के पुराने किलों और खंडहरों के बीच कोसी बाँध की ओर जाने वाली एक सड़क के किनारे धूल से सना हुआ एक महल
स्थित है। यह महल बेनज़ीर कोठी के नाम से जाना जाता है। यह रणनीतिक रूप से, कोसी नदी के तट पर स्थित है जो रामपुर
शहर के उत्तर दिशा की ओर पड़ता है। कोसी नदी रामगंगा नदी की एक सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम उत्तराखंड राज्य की
कुमाऊं पहाड़ियों के निचले हिमालय से हुआ। इस नदी के कारण ही उत्तराखंड के रामनगर से लेकर उत्तर प्रदेश के रामपुर तक की
पूरी पट्टी सदियों से चावल के उत्पादन के लिए सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक रही है। इस नदी पर बना कोसी बाँध नदी के पार
पानी के स्तर को बढ़ाने, पानी के प्रवाह को मापने या सिंचाई उद्देश्यों के लिए प्रवाह को मोड़ने के उद्देश्य से बनाया गया है। यह
विरासती बाँध रामपुर शहर से लगभग पंद्रह किलोमीटर उत्तर में भोजपुर-काशीपुर मार्ग पर स्थित है।
बेनज़ीर कोठी चारों ओर से सुंदर आम के वृक्षों से घिरा हुआ यह ग्रीष्मकालीन महल शीतल हवा का केंद्र हुआ करता था। यह
महल ख़ास तौर पर, अतिथियों के विश्राम और खातिरदारी के लिए बनाया गया था। यह तीन मंजिला महल भारी गारों और
मजबूत लोहे की छड़ों से बनाया गया है। इस महल की नीचली मंजिल में तहखाना बनाया गया है जो इस महल को गर्मी रहित
बनाता है। जिसके प्रमाण अब भी यहाँ मौजूद हैं। ऐसा माना जाता है जब दिल्ली और लखनऊ ध्वस्त हो रहे थे तब रामपुर में
जीवन और शक्ति का उदय हो रहा था। वर्ष 1865-86 के दौर में, रामपुर एक युवा सांस्कृतिक महानगर के रूप में उभर कर
सामने आया।
वर्ष 1865 में, सर सैयद के अलीगढ़ में एम.ए.ओ. कॉलेज (M.A.O. College) की शुरुआत करने से 10 साल पहले नवाब कल्बे
अली खान द्वारा जश्न-ए-बेनज़ीर नाम से एक साहित्यिक और सांस्कृतिक मेले का शुभारंभ किया गया। यह मेला वर्ष 1887 तक
एलन ऑक्टेवियो ह्यूम (Allan Octavio Hume) द्वारा कांग्रेस के गठन के 2 साल बाद तक जारी रहा। इस मेले के फलस्वरूप,
रामपुर में कविता शिक्षा की सांस्कृतिक उन्नति हुई। यह साहित्यिक मेला दास्तानगोई, रेख़ती पाठ और चाहर रंग, संगीत
आधारित काव्यात्मक रूप से परिपूर्ण था।
नवाब हामिद अली खान के समय को रामपुर में सांस्कृतिक गतिविधियों के पुनर्जागरण के रूप में जाना जाता था। हालाँकि यह
कार्य बहुत मुश्किल से संभव हो सका। नवाब हामिद अली खान के शासन के दौरान, व्यापक भवन निर्माण कार्यक्रम और
वास्तुशिल्प प्रतिभा का उदय हुआ। यह कार्य नवाब द्वारा नियुक्त किए गए उस समय के रामपुर के मुख्य अभियंता या इंजीनियर
(Engineer) डब्ल्यूसी राइट (W.C. Wright) की अध्यक्षता में किया गया। राइट को वर्तमान समय में भवनों के निर्माण के लिए
उपयोग की जाने वाली ईंटों के संस्थापक के रूप में जाना जाएगा। नवाब हामिद अली ने राइट को सभी इमारतें फिर से बनाने
का आदेश दिया। राइट द्वारा बनाई गई सभी संरचनाओं में इस्लामी, गोथिक, प्रसिद्ध इंडो-अरबी या इंडो-सरसेनिक (Indo-
Saracenic) शैली को स्पष्ट देखा जा सकता है। रेलवे स्टेशन से लेकर भव्य प्रवेश द्वार तक, इस भवन योजना के अंतर्गत निर्मित
सभी भवनों को एक विशिष्ट इंडो-सरसेनिक शैली से ही डिजाइन किया गया था।
08 जून 1905 को, नवाब ने भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन (Lord Curzon) को इस रियासत की यात्रा के उपलक्ष्य
में एक एल्बम (Album) प्रस्तुत की। इस एल्बम में, राइट की देख-रेख में बनाई गई इमारतों और कोसी नदी पर बने बाँध की
तस्वीरें भी शामिल थी। इसके अलावा बेनज़ीर भवन की तस्वीरें भी इस एल्बम में लगाई गई। वर्तमान समय में, उचित रख-
रखाव के अभाव में यह भव्य इमारत खंडहर में परिवर्तित हो गई है और इस का अधिकतर हिस्सा मलबे में विलुप्त हो गया है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3Ki7sCs
https://bit.ly/3Aq6cZc
https://bit.ly/3AexFx6
चित्र संदर्भ
1. सांस्कृतिक भवनों और महलों का शहर रामपुर को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. हाफिज रहमत खान, पीलीभीत द्वारा निर्मित मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. रामपुर की मस्जिद को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. रामपुर जंक्शन को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
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