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भारत के संग्रहालयों में रखी पुरानी और दुर्लभ साइकलों का रोचक विवरण

लखनऊ

 25-08-2022 10:48 AM
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

आदि काल में लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए मीलों दूर तक पैदल यात्रा करते थे। समय के साथ मानव ने पत्थरों व लकड़ियों से औजार और पहिया बनाना सीखा। पहिए के आविष्कार के बाद दो पहिया वाहन भी बनकर तैयार हो गए। जैसे- जैसे समय बीतता गया मनुष्य आधुनिक विकास की ओर बढ़ता चला गया। साइकिल मनुष्य के इसी आधुनिक विकास का फल है। साइकिल को आज भी विश्व भर में खूब इस्तेमाल किया जाता है। बच्चों से लेकर बड़ों तक साइकिल को काफी पसंद किया जाता है। यह प्रकृति को नुकसान पहुँचाए बिना शरीर को स्वस्थ बनाए रखने का एक अच्छा साधन है। यही कारण है कि लोग साइकिलका इस्तेमाल व्यायाम के लिए भी करते हैं।
यह सत्य है कि आज विश्व के लगभग हर देश के पास युद्ध के लिए आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों के अलावा आधुनिक परिवहन के साधन उपलब्ध हैं। परंतु द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 60,000 से अधिक एयरबोर्न पैराट्रूपर (Airborne Paratrooper) साइकिलें विशेष रूप से युद्ध में उपयोग करने के लिए तैयार की गई थी। यह साइकिलें एक प्रसिद्ध ब्रांड बर्मिंघम स्मॉल आर्म्स (Birmingham Small Arms) (बीएसए) द्वारा बनाई जाती थी। इन साइकिलों की खास बात यह थी कि इन्हें बैकपैक (Backpack) में फोल्ड (Fold) करके रखा जा सकता था। इन साइकिलों का इस्तेमाल ब्रिटिश और भारतीय पैराट्रूपर्स (Paratroopers) द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता था। वर्ष 1944 तक इन्हीं साइकलों का इस्तेमाल किया गया।
लेकिन उसके बाद सैनिक जीप (Jeep) का इस्तेमाल करने लगे। युद्ध के दौरान सैनिकों को हवाई रास्ते से चुपके से युद्ध भूमि पर उतारा जाता था और सैनिक इन साइकिलों के माध्यम से अपनी आगे की यात्रा पूरी करते थे।  साइकिल का आविष्कार वर्ष 1817 में कार्ल ड्रैस (Karl Drais) द्वारा किया गया था। सर्वप्रथम साइकिल का इस्तेमाल यूरोपीय अधिकारियों द्वारा किया जाता था। धीरे-धीरे इसका चलन मध्यमवर्ग तक पहुंच गया। भारत में साइकिल का उपयोग 1890 के दशक से आरंभ हुआ। 1960 के दशक तक भारत के गाँवों और कस्बों में साइकिल का इस्तेमाल आम हो गया। साइकिल न केवल परिवहन का एक साधन है बल्कि इसको दुनिया भर में विकास के एक उपकरण के रूप में मान्यता दी गई है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2018 में, 3 जून को विश्व साइकिल दिवस के रूप में चिह्नित किया। छोटे व्यापारियों जैसे दूध, फल-सब्जी विक्रेता और कुम्हारों आदि के लिए साइकिल परिवहन के लिए एक अच्छा और सस्ता साधन है।
भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में रहने वाले विक्रम पेंडसे जिन्हें साइकिल और मोटरसाइकिलों में खास रूचि है, इन्होंने साइकिल, मोटरसाइकिल और उनके भागों या एक्सेसरीज (Accessories) का अपना विशाल संग्रह लोगों के सामने प्रस्तुत किया। वर्ष 2012 में, विक्रम पेंडसे ने पुणे के कर्वे नगर के हर्षल हॉल में साइकिल की अपनी पहली प्रदर्शनी आयोजित की। अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बाद 18 मई, 2017 को विक्रम पेंडसे साइकिल संग्रहालय को जनता के लिए खोल दिया गया। इस तीन मंजिला संग्रहालय में पुरानी साइकिलों के इतिहास से संबंधित कई रोचक और अद्भुत जानकारियाँ मिलती हैं। पेंडसे ने अपनी विश्वभर की यात्रा के दौरान एकत्रित किए अपने संग्रह को यहां प्रदर्शित किया है। प्राचीन साइकिलों के कई हिस्से जैसे गियर, सीट, डायनेमो, एयर पंप और लैंप आदि यहां देखे जा सकते हैं। इस संग्रहालय में 150 से अधिक पुरानी साइकिलें जैसे द्वितीय विश्व युद्ध में इस्तेमाल की गई एक फोल्डेबल एयरबोर्न पैराट्रूपर साइकिल से लेकर अद्वितीय सेल्फ-ऑयलिंग 1914 गोल्डन सनबीम तक मौजूद हैं। इसके अलावा यहां गियर वाली रेसिंग साइकिल, टैंडेम (दो सवारों के लिए सीटों और पैडल वाली साइकिल), समुद्र तट साइकिल, विभिन्न प्रकार के बच्चों की साइकिल और तिपहिया साइकिलें भी देखी जा सकती हैं। पेंडसे का कहना है कि पुराने समय में कई साइकिलों को स्टेटस सिंबल (Status Symbol) माना जाता था। पेंडसे के संग्रह की सबसे पुरानी साइकिल 1914 की “गोल्डन सनबीम” (Golden Sunbeam) है, जो एक 28 इंच की पुरुषों के लिए बनाई गयी साइकिल थी, इसके मूल पेंट और पुर्जे बरकरार हैं। चक्र को हैरिसन कार्टर (Harrison Carter) के 'लिटिल ऑयल-बाथ चेन केस' (Little Oil Bath Chain Case) के एक संस्करण के साथ शामिल किया गया था। यह चक्र वास्तव में खुद को तेल देता है। ड्राइविंग गियर और बेयरिंग को डस्ट प्रूफ केस के अंदर तेल में डुबोया गया है। पेंडसे का दावा है कि यह अपनी तरह का एकमात्र चक्र है, और इसका मालिक इसे अपने पूरे जीवन काल तक चला सकता था।
साइकिल के अलावा इस संग्रहालय में कई पुरानी और अनोखी वस्तुएँ मिलती हैं। उदाहरण के लिए, इंग्लैंड के 1950 के दशक के पुराने मोबो राइड-ऑन हॉर्स (Mobo Ride on Horse) ! इसके दोनों रकाबों को दबाने से घोड़ा आगे बढ़ जाता है और दोनों तरफ से रकाब दबाने से वह बग़ल में चला जाता है। पेंडसे ने बताया कि एक तस्वीर के अनुसार राजीव गांधी बचपन में इसी घोड़े में सवारी करते नजर आए। इस तस्वीर में वह अपने नाना जवाहरलाल नेहरू जी और माता इंदिरा गांधी जी के साथ थे। इसके अलावा यहां दुनिया भर की प्राचीन वस्तुएँ जैसे पुराने घरेलू सामान, मिट्टी के तेल से चलने वाले पंखे, लोहे के बक्से और पान के बक्से से लेकर लोगों के आनंद के लिए ग्रामोफोन आदि शामिल हैं। संग्रहालय ज्ञान हमें अपनी पाश्चात्य संस्कृति से जोड़ता है। जिन मूल्यवान चीजों को हम कई 100 वर्षों पूर्व पीछे छोड़ आए हैं, उनके बारे में हमें ज्ञान देता है। पुराने समय में लोग किस तरह जीवन-यापन करते थे, अपने दैनिक जीवन में किन-किन चीजों का इस्तेमाल करते थे और उस समय की मूल्यवान वस्तुएँ कौन सी थी, यह सभी जानकारी हमें संग्रहालयों से प्राप्त होती है।
किताबों में एक सीमित जानकारी मिलती है जबकि उस जानकारियों का स्पष्ट प्रमाण हमें संग्रहालयों में मिलता है। इसके अलावा इतिहास के समय- सीमा, व्यक्ति के जीवन, मूल्यों और विश्वासों से जुड़े तथ्य हमें संग्रहालय में देखने को मिलते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3dL576D
https://bit.ly/3PErg3M
https://bit.ly/3K8u9bY

चित्र संदर्भ
1. बॉम्बे साइकिल क्लब और पुणे के साइकल म्यूजियम में रखी साइकिल को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. 39 x 24 स्टार साइकिल को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. पुणे के साइकल म्यूजियम को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. पुणे के साइकल म्यूजियम में रखी साइकिल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)



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