Post Viewership from Post Date to 09-Sep-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1779 6 1785

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

गांधीजी के पसंदीदा लेखक, संत व् कवि, नरसिंह मेहता की गुजराती साहित्य में महत्वपूर्ण भूमिका

लखनऊ

 10-08-2022 10:04 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

माना जाता है कि गुजराती साहित्य की उत्पत्ति लगभग 11वीं शताब्दी में हुई और यह साहित्य तब से लेकर अब तक फल-फूल रहा है. गुजराती साहित्य की एक विशेषता यह है, कि इसे अपने रचनाकारों के अलावा, किसी भी शासक वंश से लगभग कोई संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ है।गुजरात विद्या सभा, गुजरात साहित्य सभा, गुजरात साहित्य अकादमी और गुजराती साहित्य परिषद गुजरात स्थित ऐसे साहित्यिक संस्थान हैं, जो गुजराती साहित्य को बढ़ावा दे रहे हैं। गुजराती साहित्य को बढ़ावा देने वाले लोगों में जिनका नाम सबसे पहले लिया जाता है, वे हैं नरसिंह मेहता। उन्हें उनके साहित्यिक रूपों के लिए जाना जाता है जिन्हें "पद (कविता)", "आख्यान", और "प्रभातिया" कहा जाता है।
गुजराती साहित्य में मध्यकालीन युग के लेखक, संत और कवि, नरसिंह मेहता की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण है कि "गुजराती साहित्य" को "नरसिंह मेहता से पहले" और "नरसिंह मेहता के बाद" के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उनकी मूल गुजराती भाषा "पदास" (Padas) आज तक अपने मूल रूप में जीवित है। नरसिंह मेहता की गुजराती कृतियों का हिंदी में सबसे अच्छा अनुवाद महात्मा गांधी और के.एम मुंशी द्वारा किया गया है। गुजराती साहित्य मुख्यतः तीन युगों में विभाजित है: पहला, प्रारंभिक; दूसरा, मध्ययुगीन और तीसरा आधुनिक। इन युगों को और उप-विभाजित किया गया है। प्रारंभिक युग जो कि 1450 ईस्वी तक का माना जाता है और मध्ययुगीन युग जो कि 1450 ईस्वी से लेकर 1850 ईस्वी तक माना जाता है,को कभी-कभी 'नरसिंह से पहले' और 'नरसिंह के बाद' काल में विभाजित किया जाता है।
कुछ विद्वान इस काल को 'रस युग', 'सगुण भक्ति युग' और 'निर्गुण भक्ति युग' के रूप में भी विभाजित करते हैं। आधुनिक युग (1850 ईस्वी से आज तक) को'सुधारक युग' या 'नर्मद युग', 'पंडित युग' या 'गोवर्धन युग', 'गांधी युग', 'अनु-गांधी युग', 'आधुनिक युग' और 'अनु आधुनिक युग' के रूप में विभाजित किया गया है। नरसिंह मेहता की रचनाओं की एक सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वे उस भाषा में उपलब्ध नहीं हैं जिसमें नरसिंह ने उनकी रचना की थी। उन्हें बड़े पैमाने पर मौखिक रूप से संरक्षित किया गया है। उनके काम की सबसे पुरानी उपलब्ध पांडुलिपि 1612 के आसपास की है, जो गुजरात विद्या सभा के प्रसिद्ध विद्वान के. के.शास्त्री को प्राप्त हुई थी। उनकी कृतियों की अपार लोकप्रियता के कारण उनकी भाषा में बदलते समय के साथ परिवर्तन आया है।
नरसिंह मेहता का जन्म वैष्णव ब्राह्मण समुदाय में प्राचीन शहर तलजा में हुआ था जो बाद में जिरंदुर्ग में स्थानांतरित हुआ,जिसे अब सौराष्ट्र जिले में जूनागढ़ के रूप में जाना जाता है। 5 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां और पिता को खो दिया था और उनकी देखभाल उनकी दादी जयगौरी ने की थी।नरसिंह मेहता और उनकी पत्नी मानेकबाई जूनागढ़ में अपने भाई बंसीधर के घर पर रहते थे, हालांकि उनकी भाभी को यह पसंद नहीं था।वह हमेशा नरसिंह मेहता को उनकी पूजा या भक्ति के लिए ताना मारती और उनका अपमान करती थी, जिससे नरसिंह मेहता ने वह घर छोड़ दिया और शांति की तलाश में पास के एक जंगल में जा बसे जहां उन्होंने सात दिनों तक एकांत शिव लिंगम के सामने उपवास और ध्यान किया। माना जाता है, कि भगवान शिव ने वहां उन्हें दर्शन दिए तथा कवि के अनुरोध पर उन्हें वृंदावन ले गए तथा श्रीकृष्ण और गोपियों की शाश्वत रास लीला दिखाई। नरसिंह मेहता ने भगवान कृष्ण के लिए कई भजन और आरती लिखी और वे कई पुस्तकों में प्रकाशित हैं। नरसिंह मेहता की जीवनी गीता प्रेस में भी उपलब्ध है।
नरसिंह की रचनाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है, आत्मकथात्मक रचनाएँ, विविध आख्यान और श्रृंगार के गीत।आत्मकथात्मक रचनाएं कवि के जीवन की घटनाओं से संबंधित हैं। यह बताती हैं, कि उन्होंने कैसे विभिन्न रूपों में परमात्मा के दर्शन हुए। विविध कथाएँ चतुरियाँ, सुदामा चरित, दाना लीला, और श्रीमद भागवतम पर आधारित प्रसंगों को उजागर करती हैं।ये गुजराती में पाए जाने वाले आख्यान या कथात्मक प्रकार की रचनाओं के शुरुआती उदाहरण हैं।श्रृंगार के गीत में उन सैकड़ों पदों को शामिल किया गया है, जो राधा और कृष्ण की रास लीला की तरह श्रृंगारिक रोमांच से सम्बंधित थे।
कुछ समय पूर्व ही भक्त कवि नरसिंह मेहता विश्वविद्यालय, जुनागढ़ के शोधकर्ताओं ने मकड़ी की एक नई प्रजाति की खोज की औरनरसिंह मेहता के सम्मान में इसे नरसिंह महताई नाम दिया, ताकि उन्हें वैश्विक मंच पर पहचान मिल सके। हालांकि, ब्राह्मण समुदाय के नागर उप-जाति समूह के सदस्यों और कवि के प्रशंसकों ने यह कहते हुए इस नामकरण पर आपत्ति जताई, कि कवि पहले से ही वैश्विक मंच पर विख्यात हैं, तथा उनके नाम को एक मकड़ी के साथ जोड़ने की आवश्यकता नहीं है।नरसिंह मेहता के कई ऐसे गुजराती भजन है, जिनका हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। हिंदू भजन "वैष्णव जन तो" भी इन्हीं में से एक है, यह भजन एक वैष्णव जन (वैष्णववाद के अनुयायी) के जीवन, आदर्शों और मानसिकता के बारे में बतलाता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3oNfGIN
https://bit.ly/3vzbMHk
https://bit.ly/3SkmQC0
https://bit.ly/3zty523

चित्र संदर्भ
1. लेखक, संत व् कवि, नरसिंह मेहता की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मां की मृत्यु पर नरसिंह मेहता के पत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नरसिंह मेहता की आवक्ष प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नरसिंह मेहता नो चोरो, जूनागढ़, गुजरात को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था कोसल राज्य
    ठहरावः 2000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक

     22-10-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, निर्मल शहर के लकड़ी के खिलौनों में छिपी कला और कारीगरी की अनोखी पहचान
    हथियार व खिलौने

     21-10-2024 09:29 AM


  • आइए, विश्व सांख्यिकी दिवस के अवसर पर जानें, सुपर कम्प्यूटरों के बारे में
    संचार एवं संचार यन्त्र

     20-10-2024 09:27 AM


  • कैलिफ़ोर्निया टाइगर सैलामैंडर की मुस्कान क्यों खो रही है?
    मछलियाँ व उभयचर

     19-10-2024 09:19 AM


  • मध्य प्रदेश के बाग शहर की खास वस्त्र प्रिंट तकनीक, प्रकृति पर है काफ़ी निर्भर
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     18-10-2024 09:24 AM


  • आइए जाने, क्यों विलुप्त हो गए, जापान में पाए जाने वाले, जापानी नदी ऊदबिलाव
    स्तनधारी

     17-10-2024 09:28 AM


  • एककोशिकीय जीवों का वर्गीकरण: प्रोकैरियोट्स और यूकैरियोट्स
    कोशिका के आधार पर

     16-10-2024 09:30 AM


  • भारत में कोकिंग कोल की बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जाएगा?
    खदान

     15-10-2024 09:24 AM


  • पौधों का अनूठा व्यवहार – एलीलोपैथी, अन्य जीवों की करता है मदद
    व्यवहारिक

     14-10-2024 09:30 AM


  • आइए जानें, कैसे बनती हैं कोल्ड ड्रिंक्स
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     13-10-2024 09:20 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id