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भारत में हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गाँधी
जी ने स्वदेशी आँदोलन की शुरुआत की। इस दिन, सरकार और अन्य संगठन देश के सामाजिक-आर्थिक विकास
में हथकरघा बुनाई समुदाय को अपने अपार योगदान के लिए सम्मानित करते हैं। यह दिन भारत की अपनी
गौरवशाली हथकरघा विरासत की रक्षा करने और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए अधिक से अधिक अवसरों
के साथ बुनकरों और श्रमिकों को सशक्त बनाने की पुष्टि का भी प्रतीक है।
पारंपरिक वस्त्र-आभूषणों को धारण करना भारतीय संस्कृति और परंपरा की विशेषता है। इसी तथ्य को ध्यान में
रखते हुए यूपी सरकार ने बैंकिंग संवाददाता सखियों को निफ्ट रायबरेली (NIFT, National Institute of Fashion
Technology) द्वारा तैयार की गई साड़ियाँ वर्दी के रूप में आवंटित करने का निर्णय लिया है। देश में निवेश को
आकर्षित करने, रोजगार को बढ़ाने और वैश्विक कपड़ा बाजार में भारत को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने कपड़ा
और प्रधानमंत्री मेगा एकीकृत वस्त्र क्षेत्र और परिधान (पीएम-मित्र) योजना के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन
योजना को मंजूरी दी है।
स्वतंत्रता से पूर्व अधिकतर लोग हाथ से बने हुए वस्त्रों का ही उपयोग करते थे। भारत में अंग्रेजी शासन के बाद
ही मशीनों से तैयार वस्त्रों का उपयोग आरंभ हुआ। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में हथकरघा कृषि के बाद दूसरा
सबसे बड़ा रोजगार का साधन माना जाता है। हथकरघा भारत के सबसे बड़े असंगठित आर्थिक गतिविधियों में
से एक है। परंपरागत कौशल से परिपूर्ण यह शैली एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती चली आई है।
हथकरघा उद्योग 23.77 लाख कारीगरों के साथ देश का सबसे बड़ा कुटीर उद्योग माना जाता है। प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 3,00,000 लोग इस गतिविधि में संलग्न है।
पारंपरिक साड़ी, कुर्ता, लहंगा चोली और
चादर इत्यादि का उत्पादन इस उद्योग के अंतर्गत किया जाता है। हथकरघा जनगणना 2019-20 के अनुसार
इस उद्योग में देश भर के लगभग 35,22,512 हथकरघा श्रमिक कार्यरत हैं। जिनमें से 25,46,285 श्रमिक
महिलाएँ हैं, जो कुल हथकरघा श्रमिकों का 72.29% हिस्सा हैं।
अखिल भारतीय हथकरघा जनगणना 2019-20 के अनुसार महिला हथकरघा कामगारों की राज्य-वार संख्या
निम्नानुसार है:
1 आंध्र प्रदेश 86,398
2 अरुणाचल प्रदेश 73,871
3 असम 11,79,507
4 बिहार 6,444
5 छत्तीसगढ 9,730
6 दिल्ली 2,219
7 गोवा 25
8 गुजरात 4,725
9 हरयाणा 14,078
10 हिमाचल प्रदेश 10,059
1 1 लद्दाख सहित जम्मू और कश्मीर 13,973
12 झारखंड 11,614
13 कर्नाटक 28,192
14 केरल 14,175
15 मध्य प्रदेश 9,269
16 महाराष्ट्र 1,266
17 मणिपुर 2,11,327
18 मेघालय 30,320
19 मिजोरम 22,083
20 नगालैंड 37,142
21 उड़ीसा 57,640
22 पुदुचेरी 1,083
23 पंजाब 332
24 राजस्थान मंदिर 6,244
25 सिक्किम 673
26 तमिलनाडु 1,26,549
27 तेलंगाना 23,245
28 त्रिपुरा 93,589
29 उतार प्रदेश। 93,054
30 उत्तराखंड 8,595
31 पश्चिम बंगाल 3,68,864
अखिल भारतीय 25,46,285
राज्य कपड़ा मंत्री श्रीमती दर्शन जरदोश द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार पिछले तीन वर्षों और
चालू वर्ष के लिए मानव निर्मित रेशम, रेशा धागा और काता धागे का अनुमानित उत्पादन निम्नानुसार है:
(आंकड़े मिलियन में)वर्ष 2019-20 में भारतीय हथकरघा उत्पादों के निर्यात को इस पाई – र्ट के माध्यम से समझा जा सकता है :भारत विश्व भर के लगभग 20 देशों में हथकरघा उत्पादों का निर्यात करता है। जिनमें मुख्यत: संयुक्त राज्य
अमेरिका, इंग्लैंड, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया, इटली, जर्मनी, फ्रांस, दक्षिण अफ्रीका, नीदरलैंड और यूएई शामिल हैं। पिछले 8
वर्षों से अमेरिका हथकरघा उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक देश रहा है। 2020-21 में इस देश ने लगभग
613.78 करोड़ रुपए (US$83 मिलियन) के उत्पादों का आयात किया है।
लंबे समय से भारतीय हथकरघा उद्योग कई उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है। इस उद्योग के उत्थान के
लिए भारत सरकार द्वारा कई कदम उठाए जा रहे हैं जिनमें से एक है राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम।
इसके अंतर्गत विभिन्न चरणों में हथकरघा उद्योग को बढ़ावा दिया जाता है। इसके अलावा व्यवसाय को
प्रोत्साहन देने के लिए हथकरघा विपणन सहायता, शहरी हॉट योजना और हथकरघा पुरस्कार को सम्मिलित
किया गया है। वर्ष 1965 में भी हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद जो कि एक गैर-लाभकारी संगठन था, का गठन
किया गया। इस संगठन का उद्देश्य उत्पादों के लिए बाजार का निरीक्षण करना, सरकारी सलाह प्रदान करना,
निर्यातकों का मार्गदर्शन करना व परामर्श प्रदान करना और भारतीय हथकरघा वस्त्रों के निर्यात को बढ़ावा देना
था।
उत्तर प्रदेश में बैंकिंग संवाददाता (Banking Correspondent) सखी योजना 2020 के अंतर्गत राजधानी लखनऊ
में कार्यरत सखियों को वर्दी के रूप में निफ्ट रायबरेली में डिजाइन की गई हैंडलूम अथवा हथकरघा साड़ियाँ
आवंटित की जाएगी। सरकार के इस पहल का उद्देश्य पूरे राज्य में हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना और
महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण है। इस पहल के अंतर्गत हथकरघा उद्योग के बुनकर लगभग एक लाख
साड़ियों को डिज़ाइन करेंगे। अभी तक लगभग 34,000 साड़ियों का उत्पादन पूरा हो चुका है।
उत्तर प्रदेश के
हथकरघा उद्योग के प्रबंध संचालक केवी वर्मा के अनुसार अभी तक लगभग 16,000 साड़ियों की डिलीवरी
(Delivery) कर दी गई है और लगभग 18,000 साड़ियाँ डिलीवरी के लिए तैयार हैं। प्रत्येक साड़ी का मूल्य
1934 रुपए सुनिश्चित किया गया है। अतः विभाग को 1.16 लाख साड़ियों के लिए 22.4 करोड रुपए दिए गए
हैं। इस योजना के तहत कई बुनकर कई उत्पादक कंपनियों के साथ जुड़कर लाभ अर्जित कर पाए हैं। उत्तर
प्रदेश हथकरघा ने अभी तक लगभग 750 बुनकरों को 6.5 करोड़ रुपए का भुगतान किया है। बीसी सखी योजना
में लगभग 58,000 निजी सखियों को शामिल किया गया है जो कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में से एक का
प्रतिनिधित्व करती हैं। इनका मूल उद्देश्य घर-घर में बैंकिंग सुविधाओं को पहुंचाना है। इसके अलावा बीसी
सखियां समय पर पंजीकरण, वित्तीय समावेशन, स्वयं सहायता समूहों के लेन-देन का डिजिटलीकरण और समुदाय
के समग्र विकास को सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करती हैं।
कई वर्षों से हथकरघा उद्योग सामाजिक और आर्थिक तंगी का सामना कर रहा है। चौथी अखिल भारतीय
हथकरघा जनगणना 2019- 20 के अनुसार इस उद्योग में कार्यरत कई परिवार प्रतिमाह 5000 रुपये से भी कम
की आय अर्जित कर रहे हैं। जो वास्तव में एक चिंता का विषय है। केवल 1.2% परिवार ही ऐसे हैं जो 20,000
रुपये से अधिक की आय अर्जित करने में सक्षम हैं। इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई
कदम उठाए जा रहे हैं। जिनमें से राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम, हथकरघा बुनकर व्यापक कल्याण योजना,
व्यापक हथकरघा क्लस्टर विकास योजना, और यार्न आपूर्ति योजना प्रमुख हैं। इसके अलावा, सरकार ई-कॉमर्स
(e- commerce) की मदद से भी हथकरघा उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा दे रही है।
संदर्भ
https://bit.ly/3zHxFVV
https://bit.ly/3P0e7C0
https://bit.ly/3ddIEyO
https://bit.ly/3p27moA
चित्र संदर्भ
1. साड़ी पहने महिला एवं भारतीय बुनकर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. हथकरघा बुनते गांधीजी एवं जवाहरलाल नेहरू जी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. साड़ी बुनती महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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