अवध में शिकार खेलने (मृगया) का बड़ा रिवाज रहा है। राजाओं के महलों में शेर, चीती, जंगली सुअर, चीतल आदि की ट्राफी लगू हुई है। यहाँ कई शिकार काव्य लिखे गये हैं, जिनमें हाका लगाने, जाल बिछाने, यानी आखेटन कला का संज्ञान भी कराया गया है। यहाँ के कई खेल पशु-पक्षियों से सम्बन्धित हैं, जैसे तीतर, मुर्गा, बटेर, तोता, बुलबुल, मोर लवा, लाल, कबूतर, भेड़, ऊँट, हाथी, बकरा, साँड, और भैसा की लड़ाई। अवध के पहलवान कुस्ती (मल्ल विद्या) के बड़े शौकीन हैं। इस क्षेत्र में कबूतरानट या करनट तरह-तरह के करतब दिखाते थें। इस कथा का विवरण गुजस्ता लखनऊ में बताया गया है। शरर के अनुसार नवाबों के पास लड़कू कबूतरों की कई प्रजातियाँ थीं, जैसे- गिरहबाज, गोला, लक्का, लोटन आदि। इतिहास में दर्ज है की आसफुद्दौला के पास तीन लाख लड़ाकू कबूतर थें। लखनऊ का क्षेत्र स्थापित होने के पहले यह क्षेत्र जंगल के रूप में था तो यहाँ पर कई प्रकार के शिकार किये जाते थें, प्रस्तुत चित्र में शेर के शिकार को दिखाया गया है। 1. अवध संस्कृती विश्वकोश, सूर्यप्रसाद दिक्षित
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