समय - सीमा 260
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1051
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 303
| Post Viewership from Post Date to 11- Aug-2022 (30th Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1988 | 11 | 0 | 1999 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
हमारे भारत देश में सदियों पहले से ही गुरुओं को एक महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता आ रहा है। माना
जाता है कि गुरु एक ऐसा मार्गदर्शक है, जिसके जरिए कोई भी व्यक्ति अज्ञानता से ज्ञान की ओर अग्रसर होता
है। गुरु पूर्णिमा सभी आध्यात्मिक और शैक्षणिक शिक्षकों (गुरुओं) को समर्पित एक परंपरा है, जो कर्म योग के
आधार पर विकसित या प्रबुद्ध मनुष्य हैं तथा अपने ज्ञान को साझा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यह
भारत, नेपाल और भूटान में हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों द्वारा एक त्योहार के रूप में आध्यात्मिक और
शैक्षणिक शिक्षकों को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। भारत के हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्योहार
आषाढ़(जुलाई-अगस्त) के हिंदू महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
हमारे हिंदू धर्म की मान्यता है कि
बिना गुरु के ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति असंभव है। यही कारण है कि सनातन धर्म में गुरु पूर्णिमा को बहुत
महत्व प्रदान किया जाता है। गुरु में ‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और ‘रु’ शब्द का अर्थ है प्रकाश
(ज्ञान)। अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म रूप प्रकाश है, वह गुरु है। इस दिन गुरु पूजा का महत्व है। गुरु
की कृपा से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञान व अन्धकार दूर होता है।
इस दिन को महान ऋषि वेद व्यास के सम्मान में व्यास पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने
महाभारत और वेदों का संकलन किया। यह महोत्सव पूरी तरह से महर्षि वेदव्यास को समर्पित है। माना जाता
है कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्रमा
व अन्य ग्रह एक खास तरह से सीध में आ जाते हैं, जिससे लोग उस आयाम के प्रति ग्रहणशील बनते हैं, जिसे
हम गुरु के नाम से जानते हैं। इन्हीं दिनों आदियोगी की नजर अपने पहले सात शिष्यों पर पड़ी, जिन्हें हम
आज सप्तर्षि के नाम से जानते हैं। यौगिक संस्कृति में शिव को ईश्वर की तरह नहीं पूजा जाता, बल्कि उन्हें
आदियोगी यानी पहला योगी माना जाता है और उन्हें आदि गुरु भी कहा गया है, वह पहले गुरु थे, जिनसे
यौगिक विज्ञान की शुरुआत हुई।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ही गुरु पूर्णिमा के दिन आदि गुरु बने थे, जिसका तात्पर्य यह है
कि ये जगत के प्रथम गुरु है। इस पवित्र दिन पर शिव ने – जिन्हें आदियोगी या पहला योगी कहते हैं – अपने
पहले सात शिष्यों, सप्तऋषियों को सबसे पहले योग का विज्ञान प्रदान किया था। इस प्रकार, आदियोगी इस दिन
आदिगुरु यानी पहले गुरु बने। सप्तऋषि इस ज्ञान को लेकर पूरी दुनिया में गए, और आज भी, धरती की हर
आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में आदियोगी द्वारा दिया गया ज्ञान है। गुरु पूर्णिमा, वो पूर्णिमा का दिन है, जिस
दिन पहले योगी ने खुद को आदि गुरु, अर्थात पहले गुरु के रूप में बदल लिया था।
यह वर्ष का वो समय है,
जब 15000 वर्षों से भी पहले, उनका ध्यान उन महान सप्तऋषियों की ओर गया जो उनके पहले शिष्य बने।
दिन-ब-दिन, सप्ताह-दर-सप्ताह, महीने-दर-महीना, साल-दर-साल उन्होंने कुछ सरल तैयारियाँ की थीं। फिर एक
पूर्णिमा को, जब संक्रांति ग्रीष्म संक्रांति से शीत संक्रांति में प्रवेश करी, यानि जब पृथ्वी के संबंध में सूर्य की गति
उत्तरी गति से दक्षिणी गति में बदली, जिसे इस परंपरा में उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं, उस दिन
आदियोगी ने सप्तऋषियों की ओर देखा और उन्होंने यह महसूस किया कि वे ज्ञान के दैदीप्यमान पात्र बन गये
हैं। वे ज्ञान ग्रहण करने के लिए पूरी तरह से योग्य हो गए थे। अब शिव उनको अनदेखा नहीं कर सकते थे।
आदियोगी उन्हें ध्यान से देखते रहे, और जब अगली पूर्णिमा आई तो उन्होंने गुरु बनने का फैसला किया। उसी
पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। उन्होंने अपना मुख दक्षिण की ओर कर लिया और सात शिष्यों को यौगिक
विज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू हो गई।
आदियोगी जब बोल रहे थे तो वे धर्म, दर्शन शास्त्र या कट्टर सिद्धांतों के बारे में नही बता रहे थे। वे एक
विज्ञान समझा रहे थे - एक वैज्ञानिक पद्धति स्पष्ट कर रहे थे जिसके द्वारा आप उन सीमाओं को तोड़ सकते
हैं जिनमें प्रकृति ने मनुष्य जीवन को सीमित किया है। उन्होंने सप्तर्षियों को इस आयाम के प्रसार के लिए
सात अलग-अलग दिशाओं में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया, ताकि मनुष्य अपनी मौजूदा सीमाओं के
परे विकसित हो सके। आदियोगी इस संभावना को लेकर आए कि मनुष्य को अपनी प्रजाति की निर्धारित
सीमाओं में ही संतुष्ट हो जाने की जरूरत नहीं है। वे कहते है की मैं केवल उन मनोवैज्ञानिक सीमाओं की बात
नहीं कर रहा हूँ जो आप ने अपने चारों ओर बनायी हैं। मैं उन दीवारों की बात कर रहा हूँ जो प्रकृति ने आप
की सुरक्षा और खुशहाली के लिये बनायी हैं। लेकिन मनुष्य का स्वभाव कुछ ऐसा है कि आप उस समय तक
सच्ची खुशहाली का अनुभव नहीं कर सकते जब तक आप, खुद पर ही लगाई गई सीमाओं के परे नहीं जाते।
शिव का कार्य था जागरूकता के वे साधन देना जो आप को इन सीमाओं के परे ले जायें, ऐसे साधन जो आप
को अपनी सुरक्षा के किले की दीवारें तब तक रखने दें, जितनी आवश्यकता है और जब ज़रूरत न हो तो आप
उन्हें मिटा सकें।
गुरु पूर्णिमा का पर्व शिष्य और गुरु के बीच एक दूसरे की महत्वता को समझाने का कार्य करता है। इसलिए
इस महीने को गुरु की कृपा और आशीर्वाद पाने का सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है, ताकि आप आध्यात्मिक
प्रक्रिया के प्रति पूरी तरह से ग्रहणशील बन सकें। यह सबसे महत्वपूर्ण दिन इसलिये भी है, क्योंकि आदियोगी ने
यह विचार सामने रखा कि मनुष्य, अपने अस्तित्व के वर्तमान आयामों के परे भी विकसित हो सकता है और
उन्होंने इसे सच्चाई बनाने के लिये आवश्यक साधन भी दिये। ये वो सबसे कीमती विचार है, जो मनुष्य के मन
में आया - कि वो अपनी वर्तमान सीमाओं के परे जा सकता है और अनुभव, अस्तित्व तथा पहुंच के एक
बिल्कुल अलग आयाम में प्रवेश कर सकता है।
यह दिन पूरी मानव जाति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। परन्तु पहले देश में गुरु पूर्णिमा सबसे महत्वपूर्ण
उत्सवों, पर्वों में से एक था। लोग इसको जाति या पंथ के किसी भी भेदभाव के बिना मनाते थे, क्योंकि हमारे
देश में ज्ञान प्राप्त करना या जानना धन, संपत्ति से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। समाज में शिक्षक या गुरु को
सर्वोच्च स्थान दिया जाता था। लेकिन फिर कुछ कारणों से हमने, जानने की बजाय अज्ञानता को महत्व दिया
और पिछले 65 वर्षों में गुरु पूर्णिमा का महत्व इसलिये भी कम हो गया है क्यों कि भारत सरकार ने इस दिन
को छुट्टी घोषित नहीं की है। भारत में पहले अमावस्या के आसपास तीन दिन का और पूर्णिमा के आसपास दो
दिन का अवकाश रहता था। तो महीने में आप के पास 5 दिन होते थे जब आप मंदिर जाते थे और अपनी
आंतरिक खुशहाली के लिये काम करते थे, किन्तु अब ऐसा नहीं है। देश में ये उत्सव धीरे धीरे अपना महत्व खो
बैठा है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3IxxeBH
https://bit.ly/3P7eqfi
https://bit.ly/3P2iCwv
चित्र संदर्भ
1. गुरु के रूप में भगवान बुद्ध को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. ऋषि वेद व्यास, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. शिव के दक्षिणमूर्ति रूप को गुरुओं के गुरु के रूप में दर्शाया जाता है ,इसको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4.शिव के आदियोगी स्वरूप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)