दहेज और समाज

दृष्टि I - लेंस/फोटोग्राफी
16-01-2018 03:48 PM
दहेज और समाज

दहेज एक शब्द जिसे सुनकर हर बेटी का बाप सहम सा जाता है, एक शब्द जिसे सुनकर लड़कियाँ बोझ सी लगने लग जाती हैं। दहेज एक अभिशाप के रूप में निकल कर समाज में सुरसा जैसा मुँह फैलाये दिखाई दे रहा है। दहेज के कुरीतियों को रुपहले पर्दे पर दिखाने का कार्य पहली बार सन् 1950 में वी. सान्ताराम द्वारा किया गया था। यह फीचर फिल्म थी दहेज जिसमें पृथ्वीराज कपूर, जयश्री, करन दीवान, ललिता पवार, मुमताज बेगम व उल्लाहस जैसे अदाकारों ने अपनी-अपनी अदाकारी से दरशकों का मन मोह लिया था। यह फीचर फिल्म लखनऊ शहर में ही बनी थी तथा इसका पहला दृष्य गोमती के किनारे का और हुसैनाबाद का था। यह फीचर फिल्म अब तक के सम्पूर्ण हिंदी फीचर फिल्म इतिहास की पहली फिल्म थी जिसने दहेज जैसे सामाजिक मुद्दे को उठाया था। इस फिल्म के गाने शम्स लखनवी द्वारा लिखे गये थे तथा इनको संगीत दिया था वसन्त देसाई नें। यह फिल्म एक ठाकुर परिवार, व एक वकील के इर्द गिर्द घूमती है तथा यह लखनऊ के कई मशहूर स्थानों को भी दिखाती हुई चलती है। लखनवी तहजीब को भी इस फीचर फिल्म में दिखाया गया है। दहेज फिल्म का अंत एक अत्यन्त महत्वपूर्ण संदेश के साथ होता है कि किस प्रकार से दहेज जैसी कुरीति परिवार व समाज को तोड़ देती है। 1. फिल्मी दुनिया में अवध, सनतकड़ा, 2015 2. https://goo.gl/bs8aRj