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भारत को अपनी समृद्ध विरासत, संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। कश्मीर से लेकर
कन्याकुमारी तक, इस विशाल देश में हजारों संस्कृतियों और लोक कलाओं ने जन्म लिया है!
हालांकि संरक्षण और निगरानी के अभाव में हम अपनी कई प्राचीनतम समृद्ध कलाओं को खो चुके
हैं, लेकिन लोक कला के महत्व को समझते हुए आज कई संगठन और स्थानीय लोग इनके संरक्षण
की सराहनीय पहल कर रहे हैं!
कला और फैशन को अक्सर देश का प्रतिबिंब माना जाता है। भारत की लोक कलाएं अंतर्राष्ट्रीय
बाजार में अत्यधिक लोकप्रिय मानी जाती हैं। लेकिन दुर्भाग्य से, उनमें से कई शानदार कलाएँ,
काम की जटिलता, समय लेने वाली प्रक्रियाओं और कारीगरों को कम रिटर्न देने के कारण अपना
अस्तित्व खो रही हैं।
ग्रामीण कारीगर, जो इन हस्तनिर्मित लोक कलाओं के प्रामाणिक स्रोत माने जाते हैं, उनके पास
अक्सर इनके अलावा कोई अन्य कौशल नहीं होता है। साथ ही इनकी कम कीमत और उत्पादन
उन्हें कला जो जारी रखने और आनेवाले वशंजों में आगे बढ़ाने के प्रति हतोत्साहित करती है। यह
इन कला रूपों के खो जाने के प्रमुख कारणों में से एक है। यह भी एक कारण है कि ये कारीगर
आजीविका कमाने के लिए अपने गाँव छोड़कर शहर चले जाते हैं। जहाँ ये प्रतिभाशाली कलाकार
दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं। वर्तमान में कई संगठनों और गैर सरकारी संगठनों ने इन
कलाकारों और कला रूपों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।
गुजरात के कच्छ क्षेत्र में श्रुजन शिल्प, भी पुनरुद्धार और उद्यमिता पर काम कर रहा है। यह गैर-
लाभकारी संस्था कच्छ की शिल्पकारों के साथ हाथ की कढ़ाई के शिल्प को पुनर्जीवित करने के
लिए काम करती है। संगठन कई कलाकारों को एक मंच प्रदान करता है, जहां वे उस कला कानिर्माण करते हैं जिसे वे पीढ़ियों से अच्छी तरह से जानते हैं, तथा इसे पूरे देश और विदेशों में
प्रदर्शनियों और दुकानों में बेचते हैं। इसी तरह यस बैंक (Yes Bank) भी, कंसर्न इंडिया फाउंडेशन
(Concern India Foundation) और (Jaypore.com) के सहयोग से इस दिशा में काम कर रहा
है।
यस बैंक द्वारा एक वर्ष की अवधि में 1000 महिला कारीगरों को कौशल और डिजाइन विकास
प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए राजस्थान के बाड़मेर में एक क्लस्टर विकास कार्यक्रम 'ग्रामीण
क्लस्टर से शहरी बाजार तक' ('Rural Cluster to Urban Market) शुरू करने की घोषणा की गई
है। पहल के अंतर्गत, महिला कारीगरों को जयपुर जैसे खुदरा भागीदारों के साथ बाजार संबंधों के
निर्माण स्थापित करने में समर्थन प्राप्त होगा।
राजस्थान का बाड़मेर, भारत का पांचवां सबसे बड़ा जिला, समृद्ध शिल्प, लोक नृत्य और संगीत के
लिए जाना जाता है। यहाँ शुष्क मौसम के कारण कृषि एक मौसमी पेशा बन जाता है, जिस वजह से
कढ़ाई का काम, जो महिलाओं द्वारा किया जाता है, बाजार की चुनौतियों को देखते हुए तेजी से
कठिन साबित हो रहा है। 'ग्रामीण क्लस्टर से शहरी बाजार तक' परियोजना दो-आयामी दृष्टिकोण
के माध्यम से आजीविका के निर्वाह में सुधार पर काम करेगी:-
1. महिलाओं को सिलाई और डिजाइनिंग में नवीनतम कौशल से लैस करना: इस परियोजना में एक
गहन डिजाइन कार्यक्रम शामिल है, जिसमें एक पेशेवर डिजाइनर, कारीगरों को आगे बढ़ाएगा और
पारंपरिक तकनीक के साथ नए उत्पादों को विकसित करने में उनकी सहायता करेगा।
2. प्रोजेक्ट के लिए मार्केटिंग पार्टनर के माध्यम से प्रमुख मार्केट लिंकेज विकसित करना: इसके
तहत शहरी ग्राहकों के लिए प्रासंगिक नई उत्पाद लाइनें, नए बाजारों में पेश की जाएंगी और साथ ही
(Jaypore.com) पर बेची जाएंगी।
यस बैंक के एमडी, सीईओ और यस ग्लोबल इंस्टीट्यूट (Yes Global Institute) के अध्यक्ष, राणा
कपूर के अनुसार, “हम भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के पुनरुद्धार, संरक्षण और निर्वाह
के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें इस सेगमेंट में किसी भी अन्य की तुलना में सार्वजनिक-निजी जुड़ाव की
आवश्यकता है, ताकि मूल और ऐतिहासिक 'मेक इन इंडिया' (Make in India) उत्पादों को
पुनर्जीवित किया जा सके।” इसके लिए गुणवत्ता नवाचार के माध्यम से फैशन, डिजाइन और शिल्प
जैसे विषयों को एकीकृत करना 'भारत में शिल्प' को बढ़ावा देने का एक आदर्श तरीका है। उनके
अनुसार कारीगर स्वदेशी शिल्प के संरक्षक हैं, और इनके लिए प्रशिक्षण के प्रयासों को प्रोत्साहित
किया जाना चाहिए! शिल्प न केवल हमारी विरासत हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर हमारे लिए
तुलनात्मक लाभ भी हैं।"
लोक कला को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से कर्नाटक चित्रकला परिषद द्वारा हाल ही में भारत की
लुप्तप्राय लोक कला शीर्षक से एक उत्कृष्ट प्रदर्शनी और कार्यशाला श्रृंखला की मेजबानी की गई।
इस कार्यक्रम का आयोजन इंटरनेशनल इंडियन फोक आर्ट गैलरी (IIFAG) द्वारा किया गया था,
जो एक ऑस्ट्रेलियाई कला संगठन है तथा जिसकी जड़ें भारत में काफी गहरी मानी जाती हैं।
इस कार्यक्रम में पिचवाई (दौलत राम द्वारा), मधुबनी (अवधेश कुमार कर्ण), गोंड (रमन सिंह
व्याम), फड़ (अभिषेक जोशी), वारली (अनीता दलवी), पट्टचित्र (सुशांत महाराणा), कांगड़ा (वंदना
राजा), और भील (शांत भूरिया) जैसे लोक कला रूपों पर आठ कार्यशालाएं भी आयोजित की गईं।
इस कार्यक्रम के प्रतिभागी और ट्राइबल आर्ट इंडिया (Tribal Art India) के संस्थापक दुष्यंत दांगी,
के अनुसार "अधिक शोध के साथ, हमने पाया कि लगभग सभी आदिवासी कलाकार खराब वित्तीय
स्थिति में थे और यहां तक कि झुग्गी-झोपड़ियों में भी रह रहे थे।” इस प्रकार, जनजातीय
कलाकारों का समर्थन करने के लिए ट्राइबल आर्ट इंडिया की स्थापना एक ऑनलाइन मंच के रूप में
की गई थी। “यह उन्हें बिना किसी बिचौलिए के अपने काम का उचित मूल्य प्राप्त करने में सक्षम
बनाता है। यह हमारे देश की समृद्ध संस्कृति को बनाए रखने में भी मदद करता है। "किसी भी
कला को संरक्षित करने का सबसे अच्छा तरीका उसे लोकप्रिय बनाना है।"
पूरे देश में लोक, पारंपरिक कला और संस्कृति के विभिन्न रूपों की रक्षा, संरक्षण और बढ़ावा देने के
लिए, भारत सरकार ने भी पटियाला, नागपुर, उदयपुर, प्रयागराज, कोलकाता, दीमापुर और तंजावुर
में मुख्यालय के साथ सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (Zonal Cultural Center (ZCC) स्थापित किए
हैं। ये जेडसीसी नियमित आधार पर पूरे देश में विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों
का आयोजन करते हैं, जिसके लिए उन्हें वार्षिक सहायता अनुदान प्रदान किया जाता है।
इन
जेडसीसी में पारंपरिक कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए सरकारी/गैर सरकारी संगठन भी
शामिल हैं। इसके अलावा, संस्कृति मंत्रालय विभिन्न वित्तीय अनुदान योजनाओं का भी संचालन
करता है, जिसमें कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता की योजना, कला और
संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए छात्रवृत्ति और फैलोशिप की योजना तथा सृजन के लिए वित्तीय
सहायता की योजना भी शामिल है।
संदर्भ
https://bit.ly/3yb2C49
https://bit.ly/3IiRAyE
https://bit.ly/3NFyqnq
चित्र संदर्भ
1. लोक कलाकारी करती महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. तंजावुर पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय लोक नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
4. यस बैंक के एमडी, सीईओ और यस ग्लोबल इंस्टीट्यूट (Yes Global Institute) के अध्यक्ष, राणा कपूर जी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. लोक और आदिवासी कला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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