लखनऊ के असिल मुर्गें

व्यवहार के अनुसार वर्गीकरण
15-01-2018 01:24 PM
लखनऊ के असिल मुर्गें

पशु और मानव के मध्य का रिस्ता हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, सुरक्षा से लेकर मनोरंजन तक। विभिन्न जानवरों का शिकार करना उनको लड़ाना आदि मानवों के प्रमुख खेल का हिस्सा बन गया। भारत में अंग्रेजों द्वारा जंगली सुअरों के शिकार, बाघों का शिकार, मुर्गों की लड़ाई आदि एक महत्वपूर्ण खेल बन गया था (चित्र में देखा जा सकता है कि किस प्रकार अंग्रेज मुर्गे की लड़ाई का लुफ्त उठा रहे हैं)। लखनऊ के उत्थान के साथ-साथ कई प्रकार के विभिन्न खेल, पकवान व वास्तुओं का आगमन यहाँ पर हुआ। मुर्गों की लड़ाई यहाँ पर मुख्यरूप से विकसित हुई। लखनऊ का यह खेल नवाबी दौर के बाद वर्तमान समय मे यदाकदा जगहों पर आज भी खेला जाता है। मुर्गों कि लड़ाई में सभी प्रकार के मुर्गे भाग नही लेते या फिर सभी मुर्गे लड़ाकू नही होते। लखनऊ मे लड़ाकू नस्ल के मुर्गे को असिल मुर्गा कहते हैं। इस प्रकार के मुर्गे भारत के डेक्कन व हैदराबाद में मुख्यरूप से देखने मिलते हैं। असिल मुर्गे को 1860 दशक मे युनाइटेड किंगडम मे प्रदर्शित किया जा चुका है। मुर्गों की लड़ाई सट्टे का भी एक जरिया है, मुर्गा लड़ाई के शौकीनों की प्रतिष्ठा मुर्गे से जुड़ी होती है, लिहाजा उसे बड़े जतन से पाला जाता है। मुर्गे के मालिक अपने परिवार से कहीं ज्यादा मुर्गे का ख्याल रखते हैं। वे मुर्गे को जंगलों में मिलने वाली जड़ी बूटियां खिलाते हैं जिससे उसकी स्फूर्ति और वार करने की क्षमता बढ़ जाती है। लड़ाई शुरू होने से पहले मुर्गे के पैर में धागे की मदद से छुरी बांध दिया जाता हैं, इस छुरी से मुर्गा प्रतिद्वंदी पर वार करता है, प्रतिद्वंदी मुर्गे की मौत के बाद ही खेल खत्म माना जाता है। पुराने समय में लड़ाई जीतने के लिए मुर्गे के शरीर में सियार की चर्बी का लेप लगा दिया जाता था, जिसकी बदबू से प्रतिद्वंदी मुर्गा मैदान छोड़कर भाग जाता था। 1. इंडियन रेनैस्संस- ब्रिटिश रोमांटिक आर्ट एण्ड द प्रोस्पेक्ट ऑफ़ इंडिया: हर्माइनी डे अल्मीडा, जॉर्ज एच. गिलपिन 2. लाइट टु कम लाइट टु गो: राल्फ नेविल 3. हिस्टोरिक लखनऊ: सिडनी हे 4. पापुलर पोल्ट्री ब्रीड्स: डेविड स्क्रिविनर