City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2001 | 8 | 2009 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
भारत में आम को 'फलों का राजा' भी कहा जाता है। इस फल को प्राचीन शास्त्रों में कल्पवृक्ष के रूप
में दर्शाया जाता है। यह भारत और सम्पूर्ण दुनिया भर में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले फलों
में से एक है। भारत, दुनिया में आम का सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा इसकी वृद्धि के लिए
विशिष्ट पारिस्थितिक-भौगोलिक आवश्यकताओं वाली लगभग 1,000 किस्मों का घर है। भारत के
अधिकांश राज्यों में आम के बागान उपस्थित हैं। इस फल के कुल उत्पादन में उत्तर प्रदेश, बिहार,
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा कर्नाटक के बागानों की एक बहुत बड़ी भूमिका है। भारत से निर्यात की
जाने वाली प्रमुख आम किस्मों में अल्फांसो (Alphonso), केसर (Kesar), तोतापुरी (Totapuri)
और बंगनपल्ली (Banganpalli) आम किस्में शामिल हैं।
आधिकारिक खुलासे में कहा गया है कि आम का निर्यात मुख्य रूप से तीन रूपों में किया जाता है:
ताजा आम, आम का गूदा और आम का टुकड़ा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के कुछ निर्यात
प्रतिस्पर्धियों में ब्राजील (Brazil), मैक्सिको (Mexico), पाकिस्तान (Pakistan), पेरू (Peru),
थाईलैंड (Thailand), यमन (Yemen) और नीदरलैंड (Netherland) शामिल हैं। आम के मौसम
के दौरान लगभग 30 मीट्रिक टन आम को यूरोपीय संघ (The European Union), ब्रिटेन
(Britain), आयरलैंड (Ireland) तथा मध्य पूर्व के देशों आदि को बेचा गया है।
वर्तमान में, हमारे निर्यात में अल्फांसो और केसर का अधिक प्रभाव है, लेकिन अन्य किस्मों की भीबहुत मांग है। हालांकि किसान अभी लंगड़ा, दशहरी, हिमसागर और जरदालु जैसी कई किस्मों को
आगे बढ़ाने की सोच रहे हैं। दरअसल, पिछले वित्त वर्ष के दौरान आम का निर्यात पिछले वित्त वर्ष
की तुलना में काफी कम रहा है। 2019-20 में 56 मिलियन डॉलर से अधिक के निर्यात की तुलना
में, पिछले साल के निर्यात का मूल्य अप्रैल और फरवरी के बीच लगभग 28.3 मिलियन डॉलर था।
इसके लिए आंशिक रूप से लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कोविड-19 (COVID-
19) महामारी से उत्पन्न लॉजिस्टिक चुनौतियों के बावजूद भारत में आम का निर्यात बढ़ा दिया गया
है।
इसी के अंतर्गत एक प्रमुख पहल के रूप में, पश्चिम बंगाल के मालदा जिले से प्राप्त भौगोलिक
संकेत (Geographical Indication, GI) प्रमाणित फाजिल आम (Fazil Mango) किस्म का
माल बाहरैन (Bahrain) को निर्यात किया गया था। इस पहल के कारण पूर्वी क्षेत्र में, विशेष रूप से
मध्य पूर्व के देशों में आम निर्यात क्षमता को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
एपीडा (APEDA) एक
पंजीकृत डीएम उद्यम है, जो कोलकाता गैर-पारंपरिक क्षेत्रों और राज्यों से आम के निर्यात में वृद्धि
करने के तौर तरीके शुरू कर रहा है। बाहरैन को यह माल एपीडा द्वारा दोहा (Doha), कतर
(Qatar) में एक आम प्रचार कार्यक्रम आयोजित करने के कुछ दिनों बाद भेजा गया था, जहां
पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से जीआई प्रमाणित सहित नौ किस्मों के आमों को आयातक फैमिली
फूड सेंटर (Family Food Centre) के भंडारण पर प्रदर्शित किया जाता है। जीआई (GI) प्रमाणित
खिरसापति, लखनभोग, फाजली, आम्रपाली और चौसा, पश्चिम बंगाल के नदिया से लंगड़ा और उत्तर
प्रदेश की दशहरी सहित ऐसे कुल नौ प्रकार की आम किस्म हैं, जिनका निर्यात किया गया था।
आधिकारिक खुलासे से पता चला है कि जून, 2021 में, बाहरैन में एक भारतीय आम प्रचार कार्यक्रम
का आयोजन किया गया था। यह कार्यक्रम एक सप्ताह तक संचालित हुआ था, जिसमें तीन जीआई
प्रमाणित किस्मों पश्चिम बंगाल के खिरसापति और लक्ष्मणभोग तथा बिहार के जरदालु सहित फलों
की 16 और किस्मों को प्रदर्शित किया गया था। बाहरैन में 13 भंडारण क्षेत्रों के माध्यम से आम की
किस्मों का निर्यात किया गया। इन आमों को बंगाल और बिहार में किसानों से खरीदा गया था।
एपीडा द्वारा आम निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आभासी खरीदार-विक्रेता बैठकें और भिन्न भिन्न
प्रकार के त्योहारों का आयोजन किया जा रहा है। इसने हाल ही में बर्लिन (Berlin), जर्मनी
(Germany) में आम उत्सव का आयोजन किया।
कोंकण अल्फांसो मैंगो प्रोड्यूसर्स एंड सेलर्स कोऑपरेटिव एसोसिएशन (Konkan Alphonso
Mango Producers and Sellers Cooperative Association) के अध्यक्ष डॉ विवेक भिड़े
(Dr Vivek Bhide) कहते हैं कि, "पिछले कुछ वर्षों से, अल्फांसो के नाम से, दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका
के मलावी और महाराष्ट्र के कई पड़ोसी राज्यों में आमों के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रकारों से
भारतीय बाजारों में बाढ़ आ रही है। जिसके परिणामस्वरूप, ग्राहक और हमारे किसान दोनों ठगे जा
रहे हैं।" वे अपने इस कथन को विस्तार से बताते हैं कि कुछ किसान कोंकण नर्सरी से पौधे खरीद
कर उन्हें अन्य क्षेत्रों में उगाते हैं। उनके फल दिखने में तो समान होते हैं, लेकिन वास्तव में अलग-
अलग होते हैं क्योंकि हर पौधा उस जगह का होता है, जहां से वह पैदा होता है। जब अपनी इस
फसल को बेचने का समय आता है, तो ये बाहरी लोग अपने अल्फांसो की तरह दिखने वाले फलों को
काफी कम कीमत पर बेचकर बाजार में बाढ़ ला देते हैं, जिससे अल्फांसो आम के किसानों को भारी
मात्रा में नुकसान होता है। इस समस्या के समाधान हेतु तथा अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने
और अपनी फसल की सही कीमत पाने के लिए, इस क्षेत्र के आम किसानों और किसान संगठनों ने
हाथ मिलाया और अक्टूबर 2018 में कोंकण अल्फांसो आमों के लिए भौगोलिक संकेत (GI) टैग
प्राप्त किया। अल्फांसो आम की किस्म भारत की एकमात्र जीआई टैग का लाभ पाने वाली पहली
आम की किस्म नहीं है। बल्कि इसके विपरित उत्तर प्रदेश के मलिहाबादी दशहरी, आंध्र प्रदेश के
बनगनपल्ले, कर्नाटक के अप्पेमिडी, पश्चिम बंगाल के फाजली, हिमसागर और लक्ष्मण भोग, बिहार
के जरदालू और गुजरात के गिर केसर जैसी अन्य कई किस्में हैं जिन्हें पहले ही जीआई-टैग की
सुविधा एवं लाभ प्राप्त होने लगी है। अल्फांसो किस्म के लिए जीआई-टैग प्राप्त करने में लगभग एक
दशक का समय लगा और इस प्रक्रिया को डॉ भिडे ने शुरू किया था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3MdKDiK
https://bit.ly/3zh7y9U
https://bit.ly/38KIEET
https://bit.ly/3NQsetw
चित्र संदर्भ
1. जीआई टैग और कटे हुए आम, को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. आम की टोकरी को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
3. भौगोलिक संकेत टैग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बाजार में सजे आमों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.