प्रभु के आह्वान हेतु उत्तराखंड की जागर पूजा व् संगीत परंपरा, है इंडोनेशिया में नृत्य परंपरा के समान

लखनऊ

 04-06-2022 10:57 AM
द्रिश्य 2- अभिनय कला

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड को देवभूमि अर्थात “देवताओं की भूमि” के नाम से भी जाना जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की, आज भी उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में, अनेक पारिवारिक और पीढ़ीगत विवादों को, स्वयं देवता ही हल करते हैं! दरअसल उत्तराखंड में "जागर" नामक एक देवीय अनुष्ठान या आध्यात्मिक पूजा आयोजित की जाती हैं, और उत्तराखंड के मूल निवासी यह मानते हैं की इन जागरों में स्वयं देवता इंसानी शरीर में प्रवेश करके, न्याय करते हैं तथा पथ प्रदर्शित करते हैं!
जागर कई मायनों में ईष्ट और कुलदेवताओं तथा पूर्वजों की आत्मा की पूजा का एक अनुष्ठानिक रूप है, जो उत्तराखंड की पहाड़ियों में गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में बेहद प्रचलित है। जागर एक ऐसा धार्मिक अनुष्ठान होता है, जिसमें देवताओं और स्थानीय ईष्ट देवताओं को, उनकी सुप्त अवस्था से जगाया जाता है, और उनसे उपकार, उपाय या न्याय मांगे जाते हैं। यह अनुष्ठान दैवीय न्याय के विचार से जुड़ा है, और किसी भी अपराध का पश्चाताप करने या किसी अन्याय के लिए देवताओं से न्याय प्राप्त करने के लिए आयोजित किया जाता है। जागर शब्द संस्कृत मूल, जग से आया है, जिसका अर्थ है "जागना"। जागर में ढोल-नगाड़ों से उत्पन्न संगीत ऐसा माध्यम होता है, जिसके द्वारा देवताओं का आह्वान किया जाता है। इस दौरान गायक, जिसे जगरिया कहा जाता है, महाभारत या रामायण जैसे महान महाकाव्यों के साथ-साथ, ईष्ट और कुलदेवताओं के जीवन से जुड़ी गाथाओं को गाता है, जिसमें भगवान के कारनामों का वर्णन किया जाता है।
ये परंपराएं लोक हिंदू धर्म का अटूट हिस्सा हैं, जो मुख्यधारा के हिंदू धर्म के साथ अभी भी सह-अस्तित्व में है तथा पूरे हिमालय क्षेत्र में प्रचलित है। हिमालय के भीतर, कठिन जीवन और प्रकृति की अनियमितताओं ने अपसामान्य घटनाओं और कई लोक देवताओं में एक मजबूत विश्वास को प्रेरित किया, जिन्हें बहुत दिया जाता था।
पहाड़ों में मान्यता है की, पहले प्रत्येक गाँव का अपना एक देवता था, जिसे भूमियाल या क्षेत्रपाल कहा जाता था, जो उस गावं की सीमाओं की रक्षा करता था। आज भी यहां प्रत्येक परिवार का अपना कुल देवता या कुल देवी होती है। इसके अलावा, कई अन्य दयालु देवी-देवता थे, जो लोगों को पुरस्कृत और दंडित कर सकते थे। ये प्रथाएं दुनिया भर के प्राचीन संस्कारों में प्रचलित, शैमनवादी परंपराओं के समान ही मानी जाती हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश देवता खो गए हैं, या एकेश्वरवादी प्रथाओं में शामिल हो गए हैं। हिंदू धर्म में मजबूत कुलदेवता परंपराएं हैं, जो भारत और नेपाल में जागर परंपरा को आकार देती हैं। हालांकि कुमाऊं और गढ़वाल के अलगाव ने, स्थानीय धार्मिक परंपराओं के उद्भव को बढ़ावा दिया, जो मुख्यधारा के हिंदू धर्म के साथ इन क्षेत्रों में अभी भी मजबूत हैं।
जागर समारोहों में आम तौर पर तीन प्राथमिक प्रकार होते हैं। पहला, देव जागर, या किसी देवता का आह्वान, जिसमें आमतौर पर किसी मानुष के शरीर में देवता आते हैं। दूसरा है, भूत जागर, जिसमें मानुष के शरीर में मृत व्यक्ति की आत्मा का आह्वान किया जाता है। तीसरे और कम प्रचलित रूपों में मसान पूजा शामिल है। आज कई कुमाउनी और गढ़वाली लोग दिल्ली में रहने लगे हैं, और इस कारण हर साल, जागर के लिए अपने पैतृक गांवों में जाने में असमर्थ हैं, इसलिए उन्होंने दिल्ली में ही जागर की शुरुआत की है। आज, जागर को स्थानीय विरासत के सांस्कृतिक और संगीत घटक के रूप में देखा जाता है, जिसे संरक्षण की आवश्यकता है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और नई दिल्ली में भी अत्यधिक पूजनीय माना जाता है।
उत्तराखंड तथा नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रों में कुछ ग्राम देवताओं (गांव के देवता) जैसे गंगनाथ, गोलु, भनरीया, काल्सण आदि की पूजा कि जाती है। जागर का आयोजन मन्दिर अथवा घर में कहीं भी किया जाता है। जागर गाने वाला, जगरीया, हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए इन देवताओं की कहानी शुरू करता है। आमतौर पर जगरीया के साथ में दो तीन लोग और रहते हैं, जो जगरीया के साथ-साथ जागर गाते हैं, तथा कांसे की थाली को नगाड़े की तरह बजाते हैं!
हाल के वर्षों में, शहरी उत्तराखंड में भी लोकप्रिय संगीत के रूप में जागर का विविधीकरण किया गया है। इसकी लोकप्रियता का श्रेय जागरिया के साथ-साथ लोक कलाकारों को भी जाता है, जो मनोरंजन के विभिन्न माध्यमों का उपयोग करके जागर का प्रदर्शन करने के लिए बढ़-चढकर आगे आए। जागर का उल्लेख सामवेद में भी मिलता है, जिसे 1500 से 1000 ईसा पूर्व के बीच लिखा गया था, जोकि धुनों और मंत्रों का एक प्राचीन वैदिक संस्कृत पाठ माना जाता है। 21वीं सदी के ग्रामीण उत्तराखंड में, जागर का आयोजन अभी भी देवताओं, आत्माओं और अलौकिक शक्ति को जगाने, भावनाओं को व्यक्त करने, न्याय पाने और ठीक होने के लिए किया जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार, पूजा समारोह के दौरान बजाये जाने वाले ढोल-नगाड़ों का उद्देश्य, देवताओं को जगाना और समारोह में उपस्थित लोगों के साथ-साथ प्रतिभागियों के भावनात्मक और आध्यात्मिक कल्याण को बढ़ाना है। इस प्रकार जागर का एक समारोह भावनाओं, विश्वासों, संस्कृति, मौखिक और गैर- मौखिक ध्वनियों के अंतर्संबंध का प्रतीक बन जाता है। जागर पहाड़ों के ग्रामीणों को उनकी गहरी भावनाओं को प्रदर्शित करने में मदद करता है, तथा उनका समर्थन करता है! यह उन्हें भावनात्मक प्रवचन के माध्यम से खुद को व्यक्त करने के लिए एक मंच भी प्रदान करता है।
जागर की तर्ज पर, कुछ इसी प्रकार के धार्मिंक अनुष्ठान, इंडोनेशिया के बाली (Bali, Indonesia) में भी अनुसरित किये जाते हैं! वास्तव में बाली, कई अनुष्ठान प्रदर्शनों का केंद्र माना जाता है, जो "थिएटर" या "नृत्य" की पारंपरिक पश्चिमी धारणाओं के बिल्कुल विपरीत हैं। इन अनुष्ठानों में,वाली नृत्य और रंगमंच हमेशा धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाए जाते हैं। वे आमतौर पर आंतरिक मंदिर के प्रांगण में ही सम्पन्न किए जाते हैं।
इन अनुष्ठानों में ज्यादातर कलाकार गैर-पेशेवर ही होते हैं, हालांकि बाली के कुछ रूप पेशेवर नर्तक- अभिनेताओं को भी नियुक्त कर सकते हैं। अनुष्ठान प्रदर्शन मोटे तौर पर दो समूहों में किये जाते हैं: औपचारिक नृत्य, आम तौर पर स्वदेशी मूल के प्राचीन पवित्र नृत्य, और समाधि अनुष्ठान जिसमें कलाकार और कभी-कभी दर्शक भी एक समाधि में चले जाते हैं। माना जाता है कि अधिकांश नृत्य विशुद्ध रूप से स्वदेशी परंपराओं से प्राप्त हुए हैं, हालांकि बाद में उन्होंने हिंदू शास्त्रीय नृत्य की शब्दावली को उधार लिया है। बाली के गरिमापूर्ण और औपचारिक नृत्यों में से एक बारिस गेदे (Baris Gede) भी है , जो पुरुषों द्वारा किया जाता है। यह एक प्राचीन युद्ध नृत्य है, जो आमतौर पर छह से साठ नर्तकियों के साथ पंक्तिबद्ध समूह द्वारा किया जाता है। इस दौरान नर्तक, जिन्हें मंदिर में आने वाले देवताओं के अंगरक्षक के रूप में माना जा सकता है, वे पिरामिडनुमा हेड ड्रेस (pyramidal head dress) पहनते हैं, जिन्हें मदर- ऑफ-पर्ल (mother-of-pearl) के त्रिकोणीय टुकड़ों द्वारा सजाया जाता हैं। उनके हाथों में पवित्र हथियार होते हैं, जिन्हें वे अपने पूर्वजों की विरासत मानते हैं।
उत्तराखंड की जागर और इंडोनेशिया के बाली नृत्य की समानताएं, यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं की, आखिर इतनी विशाल भौगोलिक दूरी होने के बावजूद, संस्कृतियों में इतनी समानता कैसे आ सकती है!

संदर्भ
https://bit.ly/3xbpb9E
https://bit.ly/3x8J9Sw
https://bit.ly/38X5wBf

चित्र संदर्भ

1. जागर में प्रयुक्त वाद्य यंत्रों ढोल और दमाऊ को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. जागर अनुष्ठान को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. उत्तराखंड के आराध्य देव बाबा गंगनाथ की जागर को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. गोलू देवता को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. बाली के गरिमापूर्ण और औपचारिक नृत्यों में से एक बारिस गेदे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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