सनातन सहित विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में "अमृत या अमरत्व" शब्द का प्रयोग विभिन्न स्थानों में देखने को
मिलता है! अमृत, अर्थात ऐसा तरल जिसे पाने के बाद व्यक्ति मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। किंतु
यदि आप गौर करें, तो पाएंगे की जल भी स्वयं में अमृत कहलाने की प्रतिभा रखता है! क्यों की भले ही यह
इंसानों को सदा के लिए अमर न कर सके, लेकिन वास्तव में पानी हर इंसान को, जीने के लिए एक नया
दिन प्रदान कर रहा है, और सरकार द्वारा संचालित अमृत सरोवर मिशन के द्वारा पानी की इस अहमियत
को हमारे शहर रामपुर में विशेष प्रासंगिकता भी मिली है!
शहरी पारिस्थितिकी तंत्र में झीलें और आर्द्रभूमि एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। पीने के पानी का
स्रोत होने और भूजल को रिचार्ज करने से लेकर जैव विविधता का समर्थन करने और आजीविका प्रदान
करने तक, यह हमें कई महत्वपूर्ण पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं। आज जबकि
शहर तेजी से अनियोजित शहरीकरण की चुनौती का सामना कर रहे हैं, ऐसे में उनकी भूमिका और भी
महत्वपूर्ण हो जाती है।
लेकिन दुर्भाग्य से इनकी संख्या तेजी से घट रही है। उदाहरण के लिए, 1960 के दशक में बैंगलोर में 262
झीलें थीं, वही आज उनमें से केवल 10 में ही पानी है। 2001 में अहमदाबाद में कम से कम 137 झीलों को
सूचीबद्ध किया गया था, लेकिन आज इनमें से 65 पर निर्माण कार्य शुरू हो गया। शहरी जल निकायों के
इस बढ़ते नुकसान को प्रदर्शित करने वाले सबसे बड़े शहर, हैदराबाद ने पिछले 12 वर्षों में, अपनी 3,245
हेक्टेयर आर्द्रभूमि खो दी है।
2010 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority (NDMA)
द्वारा प्रकाशित, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशानिर्देश: शहरी बाढ़ प्रबंधन रिपोर्ट के अनुसार, कई शहरों और
कस्बों में कांक्रीटीकरण (Concretization) एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है। केंद्रीय शहरी विकास
मंत्रालय (Union Ministry of Urban Development (MoUD) के आंकड़े बताते हैं की, वर्ष 2011 में देश
का 31 प्रतिशत शहरीकरण किया गया था! और ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि 2050 तक देश का
लगभग 50 प्रतिशत शहरीकरण हो जाएगा। इसी क्रम में MoUD के आंकड़े 2001 और 2011 के बीच शहरों
और कस्बों की संख्या में 54 प्रतिशत की वृद्धि का सुझाव देते हैं।
हजारों वर्षों में बने प्राकृतिक जलधाराओं और जलकुंडों को शहरीकरण ने पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है।
“परिणामस्वरूप, वाटरशेड के शहरीकरण (urbanization of watersheds) के अनुपात में पानी के प्रवाह
में वृद्धि हुई है। आदर्श रूप से, तूफानी जल के उच्च प्रवाह को समायोजित करने के लिए प्राकृतिक नालियों
को चौड़ा किया जाना चाहिए था। लेकिन, इसके विपरीत, प्राकृतिक नालों और नदी बाढ़ के मैदानों पर बड़े
पैमाने पर अतिक्रमण हुआ है। नतीजतन, प्राकृतिक नालों की क्षमता कम हो गई है, जिसके परिणामस्वरूप
बाढ़ जैसी आपदाएं हर वर्ष वृद्धि कर रही हैं।
भारत में शहरी जल निकाय अनियोजित शहरीकरण के शिकार रहे हैं, जिसके कारण उन्हें, अतिक्रमण,
सीवेज का निपटान, भूजल में गिरावट के कारण पानी के स्तर में गिरावट, अनियोजित पर्यटन और
प्रशासनिक ढांचे का अभाव जैसे कई खतरों का सामना करना पड़ता है!
कचरे के निपटान के लिए बुनियादी ढांचे जैसी, नागरिक सुविधाओं के विस्तार के बिना शहरी आबादी में
विस्फोटक वृद्धि देखी गई है। और जैसे-जैसे अधिक लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, वैसे-वैसे शहरी
नागरिक सेवाएं भी कम पर्याप्त होती जा रही हैं। नतीजतन, भारत में अधिकांश, शहरी जल निकाय प्रदूषण
के कारण पीड़ित हो रहा है।
प्रदूषण के बाद अतिक्रमण शहरी जल निकायों के लिए यह एक और बड़ा खतरा है। जैसे-जैसे अधिक लोग
शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, भूमि की उपलब्धता भी कम होती जा रही है। आज, शहरी क्षेत्रों में भूमि के
एक छोटे से टुकड़े का भी उच्च आर्थिक मूल्य है। अतिक्रमण के कारण शहर की आर्द्रभूमि का आकार भी
तेजी से घट रहा है। इसके साथ ही पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए जल निकायों का उपयोग भी भारतमें कई शहरी झीलों के लिए खतरा बन गया है। लद्दाख में त्सो मोरारी और पोंगशो झीलें (Tso Morari
and Pongsho Lakes) भी, अनियोजित और अनियमित पर्यटन के कारण प्रदूषित हो गई हैं!
जल निकायों को अतिक्रमण और शहरी आबादी को भावी जल संकट से बचाने के लिए, जल संरक्षण की
दृष्टि से, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 24 अप्रैल 2022 को मिशन अमृत सरोवर नाम से एक नई
पहल शुरू की गई है।
इस मिशन का उद्देश्य आजादी का अमृत महोत्सव के उत्सव के रूप में, देश के प्रत्येक जिले में 75 जल
निकायों का विकास और कायाकल्प करना है। भारत के पहले "अमृत सरोवर" का उद्घाटन केंद्रीय
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री, स्वतंत्र देव सिंह
जी द्व्रारा उत्तर प्रदेश के पटवई, रामपुर में किया गया। इस भव्य 'अमृत सरोवर' को बहुत ही कम समय में
खोलने में आम लोगों, ग्रामीणों की भागीदारी और सहयोग और ग्राम पंचायत और जिला प्रशासन की
तत्परता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
दरअसल अपनी 'मन की बात' कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने रामपुर के पटवई में इस 'अमृत सरोवर' का जिक्र
किया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि 'मुझे यह जानकर अच्छा लगता है कि अमृत सरोवर का संकल्प लेने
के बाद कई जगहों पर इस पर तेजी से काम शुरू हो गया है। मुझे यूपी के रामपुर की ग्राम पंचायत पटवई के
बारे में पता चला है। जहां ग्राम सभा की जमीन पर एक तालाब था, लेकिन वह गंदगी और कूड़े के ढेर से भरा
था। काफी मेहनत से, स्थानीय लोगों और स्थानीय स्कूली बच्चों की मदद से, पिछले कुछ हफ्तों में उस गंदे
तालाब को पूरी तरह से बदल दिया गया है। अब उस झील के तट पर रिटेनिंग वॉल, बाउंड्री वॉल, फूड कोर्ट,
फव्वारे और लाइटिंग (Retaining Wall, Boundary Wall, Food Court, Fountains and Lighting)
जैसी कई व्यवस्थाएं की गई हैं। आगे प्रधानमंत्री जी ने कहा की, मैं रामपुर की पटवई ग्राम पंचायत, गांव के
लोगों, वहां के बच्चों को इस प्रयास के लिए बधाई देता हूं।
इस "अमृत सरोवर" में विभिन्न मनोरंजन सुविधाओं के साथ-साथ नौका विहार भी उपलब्ध है। माना जा
रहा है की पटवई का यह "अमृत सरोवर" न केवल पर्यावरण की रक्षा और पानी के संरक्षण में मदद करेगा,
बल्कि आसपास के क्षेत्रों के लोगों के लिए भी आकर्षण का केंद्र होगा।
संदर्भ
https://bit.ly/38diJFA
https://bit.ly/39P70NX
https://bit.ly/3Nt2W4n
चित्र संदर्भ
1 रामपुर के अमृत सरोवर को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. एक सुन्दर भारतीय झील को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. तालाब के बीच में बनी ईमारत, को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. लद्दाख, भारत में पैंगोंग झील को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. रामपुर के पटवई में इस 'अमृत सरोवर' को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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