भारत में बढ़ती गर्मी की लहरों से लाखों लोग जूझ रहे हैं, क्योंकि तापमान बढ़ने से लोगों की जान
और आजीविका पर प्रभाव पड़ता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological
Department IMD) ने भी भीषण गर्मी की चेतावनी जारी की है, उन्होंने उत्तर-पश्चिमी और मध्य
भारत के अधिकांश हिस्सों में अधिकतम तापमान में 2-4C की वृद्धि का अनुमान लगाया है। भारत
में गर्मी की लहरें आम बात हैं, खासकर मई और जून में। साल की शुरुआत में मार्च से ही उच्च
तापमान के साथ गर्मी की शुरुआत हुई, जिसमें औसत अधिकतम तापमान 122 वर्षों में सबसे
अधिक था, इस दौरान गर्म तरंगें भी शुरू हो गई थी। डाउन टू अर्थ (Down To Earth) द्वारा
विश्लेषण किए गए भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 11 मार्च को शुरू हुई इस
साल की शुरुआती गर्मी की लहरों ने उत्तरी राज्य हिमाचल प्रदेश सहित लगभग 15 भारतीय राज्यों
और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रभावित किया है, जो अपने सुहाने तापमान के लिए जाने जाते हैं।
दिल्ली में भी पारा 44C के पार जाने की संभावना बताई जा रही थी।
आईएमडी (IMD) के एक
वरिष्ठ वैज्ञानिक नरेश कुमार का कहना है कि, वर्तमान गर्म तरंगों का कारण स्थानीय वायुमंडलीय
कारक हैं, विशेष रूप से एक कमजोर पश्चिमी विक्षोभ, जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाला
तूफान था, जिसका अर्थ उत्तर-पश्चिमी और मध्य भारत में कम प्री-मानसून वर्षा था। इसके अलावा
प्रतिचक्रवात (Anticyclones) भी मार्च में पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों में गर्म तथा शुष्क मौसम
का कारण बने।
किसानों का कहना है कि तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि ने उनकी गेहूं की फसल को भी प्रभावित
किया है। गर्मी ने बिजली की मांग में भी वृद्धि की है, जिससे कई राज्यों को बिजली की कटौती का
सामना भी करना पड़ रहा है। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राज्य के मुख्यमंत्रियों को
बताया कि, "देश में तापमान तेजी से बढ़ रहा है और सामान्य से बहुत जल्दी बढ़ रहा है" उन्होंने
बढ़ते तापमान के कारण आग के बढ़ते जोखिमों की संभावनाओं के बारे में भी बात की। भारत के
कई हिस्सों में, खासकर उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में हमेशा से ही भीषण गर्मियां रही हैं। एयर-कंडीशनर
(air-conditioners) और वाटर कूलर (water coolers) जैसे गर्मी से राहत दिलाने वाले संसाधनों
की बिक्री शुरू होने से पहले ही, लोगों ने गर्मी से निपटने के लिए, पानी ठंडा रखने के लिए मिट्टी
के घड़ों का इस्तेमाल करने से लेकर गर्मी से बचने के लिए कच्चे आमों को अपने शरीर पर रगड़ने
तक जैसे अपने कई तरीके तैयार कर लिए थे। कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अब अधिक तीव्र
और लगातार हीटवेव रिकॉर्ड कर रहा है जो कि लंबी अवधि के भी हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ
ट्रॉपिकल मीटीओरोलोजी (Indian Institute of Tropical Meteorology) के एक जलवायु
वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल (Roxy Mathew Koll), वायुमंडलीय कारकों के अलावा ग्लोबल वार्मिंग
को भी वर्तमान हीटवेव का कारण बताते हैं।
भारत में आने वाले वर्षों में और अधिक तीव्र गर्मी की लहरें देखने की संभावनाएं है, कुछ अनुमानों
के अनुसार यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। 1998 में, देश के कुछ हिस्सों में चली भीषण गर्मी
की लहर में 3,000 से अधिक लोगों की जान चली गई। उस समय आंध्र प्रदेश में शवदाहगृह,
परिवारों के लिए टोकन लेने के लिए और अपने प्रियजनों को आराम देने के लिए अपनी बारी का
इंतजार करने वाले लोगों से भरा रहता था।
यह एक ऐसी छवि है जो अक्सर गर्मी की लहरों से जुड़ी
नहीं होती है, लेकिन उस वर्ष के वृत्तांत स्पष्ट करते हैं कि एक भयंकर आपदा कितनी विनाशकारी हो
सकती है। आईएमडी के अनुसार, जब अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो
जाता है, तो गर्मी की लहर गतिमान होती है। पहाड़ी क्षेत्रों के लिए यह सीमा 30 डिग्री सेल्सियस है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) (National Disaster Management Authority
NDMA) के साथ सलाहकार के रूप में काम करने वाले हीट वेव्स के विशेषज्ञ, अनूप कुमार
श्रीवास्तव बताते हैं कि "यह केवल अब संभव है कि हम स्वास्थ्य, पशुधन, कृषि और बुनियादी ढांचे
पर प्रभाव को देखते हुए, गर्मी की लहरों के प्रभावों को अधिक समग्र रूप से देखना शुरू कर रहे हैं।
वरना हम सिर्फ तापमान और मृत्यु दर पर ही निर्भर थे"। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर
(Indian Institute of Technology, Gandhinagar) के वैज्ञानिक विमल मिश्रा ने दि प्रिंट
(The Print) को बताया कि "गर्मी की लहरों के अन्य प्रभावों को सीधे नहीं मापा जा सकता है,
लेकिन उनमें से कुछ में ऊर्जा की मांग, पानी की मांग, कृषि उत्पाद और श्रम दक्षता शामिल हैं।
मृत्यु दर के अलावा, इन प्रभावों को अनुक्रमित रूप में नहीं पाया जा सकता है"। एनडीएमए
(NDMA) अभी भी गर्मी की लहरों को एक प्राकृतिक आपदा नहीं मानता है। हाल के वर्षों में
अनुकूलन और शमन पर अधिक ध्यान देने के साथ, भारत ने पिछले कुछ वर्षों में सबसे खराब गर्मी
की लहरों का अनुभव किया है। राजस्थान के अलवर में 10 मई 1956 को, भारतीय मौसम विभाग
के एक मौसम केंद्र ने 50.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया था, जो उस समय तक देश में
सबसे अधिक दर्ज किया गया रिकॉर्ड था। आईएमडी (IMD) के आंकड़े बताते हैं कि मई 1956 में
औसत अधिकतम तापमान 35.4 डिग्री सेल्सियस के आसपास था, जो सामान्य औसत 35.17 डिग्री
सेल्सियस से थोड़ा अधिक था। 60 वर्षों तक 1956 का तापमान, भारत में सबसे अधिक दर्ज किया
गया तापमान बना रहा। इसके बाद 2016 में राजस्थान के जोधपुर जिले में आईएमडी के फलोदी
स्टेशन का तापमान 51 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
भारत के कुछ हिस्सों में 1966 में भी भीषण गर्मी की लहर चली थी, तब आईएमडी ने बताया था
कि गर्मी की लहर की उत्पत्ति कई प्राकृतिक जलवायु घटनाओं के ओवरलैप में हुई है। उस समय की
आईएमडी रिपोर्ट के अनुसार, बिहार और उसके आसपास तापमान सामान्य से 11 डिग्री सेल्सियस
अधिक बढ़ गया था और उसके बाद पश्चिम बंगाल और ओडिशा में उस वर्ष 7 जून से 12 जून के
बीच तापमान बढ़ता रहा। उसी वर्ष 3 से 13 जुलाई के बीच एक और गर्मी की लहर पैदा हुई, जिससे
आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात प्रभावित हुए। हाल के दशकों में सबसे खराब गर्मी की
लहरों में 2002 से एक थी, जिसने अकेले आंध्र प्रदेश में 1,000 लोगों की जान ले ली थी। गर्मी की
इस लहर के दौरान मरने वालों में ज्यादातर गरीब और बुजुर्ग थे, जो 50 डिग्री सेल्सियस का सामना
नहीं कर सकते थे। गुजरात के कुछ हिस्सों में मई 2010 में गर्मी की लहर चली, जिससे अहमदाबाद
में तापमान 46.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया। उस समय एनडीएमए का अनुमान था कि गर्मी की
लहर के कारण 1,274 मौतें हुईं और अन्य विश्लेषण बताते हैं कि मौतें 1,344 से भी अधिक थी।
एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि गर्मी की लहर ने नवजात शिशुओं को भी प्रभावित किया।
2016 में राजस्थान के फलोदी में तापमान 51 डिग्री सेल्सियस पर था, जहां एक रिपोर्ट में यह भी
दावा किया गया कि पारा इतना चढ़ा कि लोग गुजरात की सड़कों पर अपने जूते सड़क पर अटके
बिना चल भी नहीं सकते थे। 2019 में भारत ने अपनी तीन दशकों में 32 दिनों तक चलने वाली
सबसे लंबी गर्मी की लहर देखी, जिसमें प्री-मानसून सीज़न के दौरान विरल वर्षा के साथ-साथ
विलंबित मानसून ने गर्मी को और अधिक असहनीय बना दिया, इससे बिहार, पश्चिम बंगाल,
राजस्थान, विदर्भ और आंध्र प्रदेश सहित अन्य राज्य प्रभावित हुए। आईपीसीसी (IPCC) की एक
हालिया रिपोर्ट AR6 ने इस बात पर जोर दिया है, कि मानव शरीर पर अत्यधिक गर्मी डालने वाले
शारीरिक तनाव का आकलन करते समय आर्द्रता भी बहुत महत्वपूर्ण है। त्वचा पर वाष्पित होने वाले
पसीने का उत्पादन करके मनुष्य अपने शरीर के अन्दर उत्पन्न होने वाली गर्मी को खो देते हैं। शरीर
के स्थिर तापमान को बनाए रखने के लिए वाष्पीकरण का शीतलन प्रभाव आवश्यक है।
नमी बढ़ने से
पसीना वाष्पित नहीं होता है और शरीर के तापमान को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है, जैसे
नमी वाले स्थानों में कपड़े सूखने में लंबा समय लेते हैं, इसलिए आर्द्रता वाले स्थानों पर हमें ज्यादा
परेशानी होती है। इसके अलावा एक मुद्दा निर्जलीकरण का भी है। कार्यस्थलों पर शौचालयों की कमी
के कारण कई मजदूर, खासकर महिलाएं जानबूझकर खुद को निर्जलित रखती हैं। निर्जलीकरण से
पसीने के उत्पादन में कमी आती है, जिसके कारण हीटवेव के दौरान ऊष्माघात की संभावनाएं बढ़
जाती है। इस तरह के सार्वजनिक स्वास्थ्य कारक जीवित रहने की सीमा को कम कर सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करने की दिशा में बढ़ते तापमान और आर्द्रता
पर हालिया ध्यान एक स्वागत योग्य कदम है। यहां यह महसूस करना आवश्यक है कि हीटवेव के
प्रति हमारी संवेदनशीलता एक प्रणालीगत समस्या है, जो बहुत लंबे समय से मौजूद है और यह
केवल बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर निर्भर नहीं है।
संदर्भ:
https://bit.ly/39L39RL
https://bit.ly/3Fx700O
https://bbc.in/38cL137
https://bit.ly/3w3G71s
चित्र संदर्भ
1 भारत में बढ़ती गर्मी की लहरें बन रही है, जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. ग्रामीण खेतों को दर्शाता एक चित्रण (Pixabayl)
3. भारतीय गर्मी तरंगों की सूची को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. शुरुआती सीज़न हीट वेव्स स्ट्राइक को दर्शाता एक चित्रण (
NASA Earth Observatory)
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