समय - सीमा 261
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1055
मानव और उनके आविष्कार 830
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
| Post Viewership from Post Date to 28- Apr-2022 | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 1567 | 132 | 0 | 1699 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
इंसानों को महामारी और युद्ध जैसे विषम हालातों से इसलिए भी बचकर रहना चाहिए! क्यों की ये
विषमतायें, न केवल हजारों-लाखों लोगों की जान ले सकती हैं, बल्कि जो लोग जीवित है, उनकी जीवन शैली
और प्रत्याशा को भी बद से बदतर बना देती हैं! पिछले दो वर्षों के दौरान पूरी दुनिया ने कोरोना महामारी
और युद्ध जैसी दोनों स्थितियों को झेला है, या अभी भी झेलना पड़ रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप मानव
सभ्यता पर इसका बोझ भुखमरी तथा महंगाई के रूप में पड़ रहा है!
कमोडिटी (commodity) की कीमतों में बढ़ोतरी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण, आपूर्ति में व्यवधान को
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक दोहरी चुनौती माना जा रहा है। वित्त मंत्रालय की मासिक आर्थिक
समीक्षा में कहा गया की, इससे विकास धीमा हो सकता है, जबकि मुद्रास्फीति और अधिक बढ़ सकती है।
आगे इस प्रभाव की भयावहता इस बात पर निर्भर करेगी कि, ऊंची कीमतें कब तक बनी रहती हैं।
हालांकि सरकार सस्ती कीमत पर कच्चे तेल की खरीद के लिए आयात विविधीकरण (import
diversification) सहित, कई अन्य विकल्प भी तलाश रही है। आर्थिक सर्वेक्षण ने जनवरी में 2022-23 में
अर्थव्यवस्था के 8 से 8.5% के बीच बढ़ने का अनुमान लगाया था। लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
कच्चे तेल की कीमतें लंबे समय तक उंची बनी रहती हैं, तो यह बड़ी हुई कीमतें, 2022-23 में 8% से अधिक
आर्थिक विकास दर हासिल करने की भारत की संभावनाओं को बाधित कर सकती है।
वित्त वर्ष 2021-22 में थोक महंगाई दर 12.96% रही। COVID-19 की दूसरी लहर, रूस-यूक्रेन युद्ध और
अन्य आपूर्ति श्रृंखला बाधाओं के परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है, जिससे खाद्य पदार्थों और
अन्य आवश्यक वस्तुएं अधिक महंगी हो गई हैं। केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में मुद्रास्फीति
(inflation) बढ़ रही है। क्योंकि कई कारकों के संयोजन ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रखा है,
जिससे दुनिया भर में कीमतों में वृद्धि हुई है।
परिणाम स्वरूप, दुनिया भर के बाजार कमजोर प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत में भी, भारतीय रिजर्व बैंक नेअपना ध्यान देश के विकास पर केंद्रित करने के बजाय मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करने पर केंद्रित करदिया है। आरबीआई ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को 7.8% से घटाकर
7.2% कर दिया है। परिणामस्वरूप आम आदमी को पूरे भारत में वस्तुओं, खाद्य तेल, दालों, मसालों,
सब्जियों और फलों जैसी आवश्यक वस्तुओं की भारी कीमतों के चुकाना पड़ रहा है।
थोक मुद्रास्फीति में प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक कच्चे तेल की कीमतों में भी भारी वृद्धि हुई है, और
इसके परिणामस्वरूप, पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगभग
20% की वृद्धि हुई है।
हालांकि जबकि देश भू-राजनीतिक संघर्ष और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान (supply chain disruption) जैसी
वैश्विक चुनौतियों के कारण कीमतों में बढ़ोतरी से जूझ रहा है, वहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार
भारत में मुद्रास्फीति ने मुद्रास्फीति लक्ष्य को अभी भी इतनी बुरी तरह से पार नहीं किया है। आपूर्ति श्रृंखला
व्यवधानों के साथ-साथ रूस-यूक्रेन के बीच भू-राजनीतिक संघर्ष के कारण कमोडिटी की कीमतें कई वर्षों के
अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। हाल ही में, थोक मूल्य मुद्रास्फीति मार्च में चार महीने के उच्च स्तर
14.55% पर आ गई थी।
एक उच्च थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति (WPI Inflation) को, उच्च उपभोक्ता कीमतों के अग्रदूत के रूप
में देखा जाता है। “कंपनियों के उच्च इनपुट कीमतों और उधार लेने की उच्च लागत की दोहरी मार का
सामना करने की संभावना है, क्योंकि बैंकों ने उधार दरों में बढ़ोतरी शुरू कर दी है, और आरबीआई ने प्रभावी
रूप से रातोंरात मुद्रा बाजार दरों को 40 बीपीएस बढ़ा दिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इन बढ़ते मुद्रास्फीति दबावों को ध्यान में
रखते हुए नवीनतम एमपीसी (MPC) बैठक में कहा कि, शीर्ष बैंक अब मुद्रास्फीति को प्राथमिकता दे रहे है।
इसके अलावा, आरबीआई ने अब बाहरी अनिश्चितताओं के कारण अपने मुद्रास्फीति दृष्टिकोण को ऊपर
की ओर, और विकास के दृष्टिकोण को नीचे की ओर संशोधित किया है। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2013 के
सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का अनुमान 7.8% के पिछले पूर्वानुमान से घटाकर 7.2% कर दिया। इससे
पता चलता है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद, प्रमुख औद्योगिक इनपुट कीमतों में व्यापक-आधारित
उछाल और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों से प्रेरित इनपुट लागत दबाव (input cost pressure) पहले
की अपेक्षा अधिक समय तक बना रहेगा।
संदर्भ
https://bit.ly/3K552W5
https://bit.ly/3OtSGu8
https://bit.ly/3L5mVp6
चित्र संदर्भ
1. भारत की मुद्रास्फीति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. 1981 से 2017 के बीचअत्यधिक गरीबी में जनसंख्या के हिस्से, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रूस को भारतीय निर्यात - 1995 से 2012 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)