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पेड़, पोंधों और झाड़ियों को मनचाहा आकार देने की कला है, टोपरी या शस्यकर्तन

लखनऊ

 24-03-2022 07:56 AM
पेड़, झाड़ियाँ, बेल व लतायें

इंसान होने की सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक यह भी है की, हम रचनात्मक हो सकते हैं! हमारे लिए किसी भी वस्तु अथवा विषय की दिखावट या सुंदरता उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी की उसकी कार्य क्षमता! एक रचनात्मक उदाहरण के तौर पर हम उन पेड़ों अथवा पोंधों को ले सकते हैं, जिन्हे सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए इंसानों ने अपने मनचाहे आकार में ढाल दिया, तथा इस प्रकिया को नाम दिया "शस्यकर्तन" या टोपरी (Topiary)। यह कला पहली शताब्दी ईस्वी या उससे भी पहले शुरू हो चुकी थी।
बारहमासी अर्थात साल भर हरी-भरी रहने वाली झाड़ियों, छोटे पेड़ों और कभी-कभी जड़ी-बूटियों को सजावटी या मनचाहे आकार में ढालने की कला को टोपरी के रूप में जाना जाता है। इसके अंतर्गत पोंधों को पक्षियों, जानवरों, मनुष्यों और कई अन्य विषयों के रूपों में ढाला जा सकता है। यह नाम रोमन शब्द "टोपियारिया (topiaria)" से लिया गया है जिसका अर्थ है, “सजावटी बागवानी”। कहा जाता है कि टोपरी का आविष्कार प्राचीन रोमन सम्राट ऑगस्टस (Augustus) के एक मित्र ने किया था, और माना जाता है कि इसका अभ्यास पहली शताब्दी सीई में किया गया था। रोमन काल से बाद चीन और जापान में झाड़ियों और पेड़ों की कतरन और उन्हें मनचाहा आकार देने का अभ्यास समान कठोरता के साथ किया जाता रहा है। उनकी सबसे केंद्रित अभिव्यक्ति चीनी पेनजिंग और जापानी बोन्साई की संबंधित कलाओं (Chinese penjing and Japanese bonsai) में देखने को मिलती हैं । जापानी ज़ेन उद्यान (कारेसनसुई, सूखे रॉक गार्डन) करिकोमी (झाड़ियों और पेड़ों को बड़े घुमावदार आकार या मूर्तियों में काटने की एक शीर्ष तकनीक) और हाको - ज़ुकुरी (बक्से और सीधी रेखाओं में काटे गए झाड़ियों) का व्यापक उपयोग करते हैं। 16वीं शताब्दी में अपने यूरोपीय पुनरुद्धार के बाद से , यूरोपीय अभिजात वर्ग के बगीचों के छतों और छतों के साथ-साथ साधारण कुटीर उद्यानों में भी टोपरी को देखा जा सकता है। पारंपरिक टोपरी रूपों में पत्ते या ज्यामितीय आकृतियों में क्यूब्स, ओबिलिस्क , पिरामिड, शंकु, या टियर प्लेट और टेपरिंग सर्पिल (cubes, obelisks, pyramids, cones, Or tear plates and tapering spirals) का निर्माण किया जाता है। साथ ही लोगों, जानवरों और मानव निर्मित वस्तुओं को दर्शाने वाले प्रतिनिधि रूप भी लोकप्रिय रहे हैं। टोपरी कार्य के लिए ऐसे पोंधे उपयुक्त होते हैं, जिनमे पत्ते घने या मोटे होते हैं। इन पोंधों को वांछित आकार देने में कई साल लगते हैं। ऐसे पौधों को उगाने में बहुत अधिक ध्यान, पर्याप्त मात्रा में श्रम और समर्पित माली के एक समूह की आवश्यकता होती है। चूंकि टोपरी के पौधे लंबे समय तक चलते हैं, इसलिए रोपण से पहले गहरी खुदाई करके जमीन की पूरी तैयारी की जरूरत होती है। कई बार पौधों को मनचाहा आकार देने के लिए उनमें धातु के तार से बना एक पिंजरा फंसा देते है और समय के साथ इस पूरे पिंजरे पर पत्तियां छा जाती है और कुछ ही महीनों में मनचाहा आकार प्राप्त हो जाता है। शस्यकर्तन का सबसे साधारण उदाहरण घरेलु हैज (बाड़) होता है, जिसे बाहरी सीमा, दीवार या पर्दा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। सामान्य आकार प्राप्त करने में लगभग 3-4 साल की कतरन का समय और प्रशिक्षण लग सकता है। झाड़ी की छंटाई बेतरतीब ढंग से नहीं की जाती है। छंटाई का उद्देश्य यह होना चाहिए कि कोई भी प्ररोह या शाखा जिसे ढांचे में प्रशिक्षित किया जा सकता है, उसे नहीं काटा जाना चाहिए। शूट टिप्स (shoot tips) और पत्ते जो फ्रेम से बाहर निकलते हैं, उन्हें नियमित रूप से काटा जाना चाहिए। टोपरी कला में उपयोग किए जाने वाले पौधों आमतौर पर सदाबहार पौधे होते हैं, जो छोटी झाड़ियाँ, पेड़, घास, लकड़ी के पौधे, सुई के पत्ते होते हैं। टोपरी रूपों के लिए उपयोग किए जाने वाले विशिष्ट पेड़ बे लॉरेल, आर्बरविटे, होली, मर्टल और प्रिवेट (bay laurel, arborvitae, holly, myrtle and privet)हैं। पारंपरिक टोपरी कला समकालीन टोपरी रूप से थोड़ी अलग है। आधुनिक टोपरी रूप में, पौधों की वृद्धि को निर्देशित करने के लिए पिंजरों और तारों का उपयोग किया जाता है, और पारंपरिक टोपरी में एक ऐसी विधि शामिल होती है जिसमें बहुत धैर्य और स्थिर हाथों की आवश्यकता होती है । वर्तमान में तीन प्रकार की टोपरियां प्रचलित हैं: 1.बेल टोपरी: रोपण की इस कला में, लताओं (vines) को प्रोविकसित किया जाता है और विभिन्न टोपरी रूपों में विकसित होने के लिए आकार दिया जाता है। 2.श्रुब टोपरी (Shrub Topiary): रोपण की इस कला में विभिन्न झाड़ियाँ प्रयुक्त होती हैं, जिन्हें विभिन्न आकृतियों और आकारों में डिज़ाइन किया जाता है। 3.मॉस टोपरी (Moss Topiary) : इस विधि में आपको एक टोपरी फॉर्म को गीले काई और चुने हुए पौधे से भरना होता है और उसके अनुसार पानी देना होता है। भारत में क्लेरोडेंड्रम इनर्म, दुरंत प्लमेरिया और बोगनविलिया (Clerodendrum inerm, Durant plumeria and Bougainvillea) पेड़ों को पक्षियों, जानवरों आदि की विभिन्न आकृतियों के निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है। साथ ही थूजा, फिकस बेंजामिना, सरू, पुत्रंजीवा, पॉलीआल्थिया (thuja, ficus benjamina, cypress, putranjiva, polyalthea) जैसे पेड़ों का उपयोग गुंबदों, शंकुओं, गोले, छतरियों आदि को आकार देने के लिए भी किया जाता है। हिल स्टेशनों में, बक्सस सेपरविरेन्स और टैक्सस बकाटा (Buxus sempervirens and Taxus baccata), व्यापक रूप से टोपरी कार्य के लिए उपयोग किए जाते हैं। भारत में लोकप्रिय टोपरी गार्डन की बात करें तो 1999 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में दर्ज सांबनलेई सेकपिल टोपरी (Sambanlei Sekpil Topiary), (मणिपुर में बाड़ लगाने के लिए इस्तेमाल की गई एक फूलदार झाड़ी), गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दुनिया की सबसे ऊँची टोपरी है। साथ ही चंडीगढ़ सेक्टर-35 में भी एक लोकप्रिय टोपरी पार्क मौजूद है।

संदर्भ

https://bit.ly/3qqooxN
https://bit.ly/3L4CD35
https://en.wikipedia.org/wiki/Topiary

चित्र सन्दर्भ
1. टोपरी गिलहरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. विशाल टोपरी गार्डन को दर्शाता एक चित्रण (MyStart)
3. टोपरी छंटाई करते युवक को दर्शाता एक चित्रण (MessyNessyChic)
4. विविध टोपरी आकृतियों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. 1999 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स (Guinness Book of World Records) में दर्ज सांबनलेई सेकपिल टोपरी को दर्शाता एक चित्रण (Twitter swaraj kumar (@Swaraj14B)



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