आम फलों का राजा है इसका स्वाद हमारे जिह्वा से लेकर उदर तक मिठास फैला देता है। आम कच्चा हुआ तो अचार से लेकर मिठाई तक का सफर करता है और अगर पक्का हुआ तो आमरस से लेकर अमावट तक का। यह ऐसा फल है जिसे विभिन्न कवियों से लेकर शायरों तक नें अपनी लेखनी में से उतारा है। ऐसा ही एक वाकया उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा गालिब से जुड़ा है- मिर्ज़ा-ग़ालिब उर्दू के शायर आमों के भी रसिया थे। इक दिन इक साहिब के साथ जिन्हें आमों से उतनी ही चिढ़ थी बैठे गुफ़्तुगू फ़रमा रहे थे। ग़ालिब आमों की ख़ूबियाँ और वो ख़ामियाँ गँवा रहे थे, तभी सड़क से गुज़रते हुए चंद गधों ने वहाँ पड़े हुए आम के छिलकों को सूँघा और ये देख कर कि आम हैं (कुछ ख़ास नहीं) आगे निकल गए; वो साहिब उछल कर बोले देखा ग़ालिब पता नहीं तुम्हें आम हैं क्यूँ इतने भाते अरे आम तो गधे तक नहीं खाते मिर्ज़ा-ग़ालिब ने सर हिला कर फ़रमाया हाँ हुज़ूर आप सच ही हैं फ़रमाते बे-शक गधे आम नहीं खाते। आम की ऐतिहासिकता को यदि परखा जाये तो यह महाकाव्य काल तक जाता है। रामायण और महाभारत में हमें आम के उपवनों का वर्णन मिलता है। सिकन्दर के आक्रमण के समय सिंधु घाटी में उसे आम के पेड़ दिखे। ह्वेनसांग ने भी आम के बारे में आम का विवरण प्रस्तुत किया है। घुमक्कड़ महोदय इब्न-बतूता ने आम के प्रयोग व इसको खाने के बारे में बताया हैं। भारत के प्रमुख आमों की बात की जाये तो- दशहरी, चौसा, नीलम, सफेदा, बंबइया, जर्दालू, फजली, समर बहिस्त चौसा, सुवर्ण रेखआ, अल्फांसो, आम्रपाली, लंगड़ा आदि हैं। इन आमों के नामों का भी अपना एक अलग संसार है, सभी आमों का नाम उनसे जुड़ी किसी ना किसी किवंदन्ती से सम्बन्धित है। जैसा की अपने दशहरी का ही नाम ले लीजिये- इसका प्रथम प्रमाण काकोरी के पास स्थित गाँव दशहरी से मिला था। तब से ही यह आम दशहरी के नाम से जाना जाता है। लखनऊ और दशहरी आम का बहुत गहरा रिश्ता है, यहाँ का दशहरी आम अपनी खास महक व स्वाद के लिये जाना जाता है। प्राप्त पेड़ अवध के नवाबों के अंतर्गत आता था तथा फल लगने के समय इस आम के पेड़ की सुरक्षा बढा दी जाती थी तथा यह भी कहा जाता है कि जब किसी को यह आम भेजा जाता था तो उस समय इसके फल में छेद कर दिया जाता था जिससे कोई अन्य इस नस्ल को उगा ना सके परन्तु समय के साथ-साथ यह आम आस-पास के क्षेत्र में फैला और यह आम मलीहाबाद में आया। दशहरी आम की यह कहानी आज मलीहाबाद, लखनऊ व काकोरी में एक लोक कथा के रूप में फैल गयी है। विश्व के कई देशों में दशहरी लखनऊ व इसके आस-पास के क्षेत्रों से ही भेजे जाते हैं। मलीहाबाद के मशहूर शायर भारत छोड़नें से पहले लिखते हैं कि- आम के बागों में जब बरसात होगी पुरखरोश मेरी फुरकत में लहू रोएगी, चश्मे मय फरामोश रस की बूदें जब उड़ा देंगी गुलिस्तानों के होश कुंज-ए-रंगी में पुकारेंगी हवांए जोश जोश सुन के मेरा नाम मौसम गमज़दा हो जाएगा एक महशर सा महफिल में गुलिस्तांये बयां हो जाएगा ए मलीहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा। 1. भारत का राष्ट्रिय वृक्ष और राज्यों के राज्य वृक्ष- परशुराम शुक्ल, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 2013 2. भुलक्कड़ों का देश- सुनृत कुमार वाजपेयी, अनामिका पब्लिशर्स, नई दिल्ली, 2009 3. http://www.scientificworld.in/2016/04/mango-benefits-hindi-language.html 4. https://satyagrah.scroll.in/article/9522/socio-cultural-history-of-mango
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