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पूरी दुनिया, आज तब जाकर मानव जीवन में पेड़ों के महत्व को समझ पाई है, जब पर्यावरण
प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) जैसी समस्याएं इंसानी प्रजाति के सिर पर मौत
बनकर नाच रही हैं! लेकिन भारत ने ऐतिहासिक काल से ही यह साबित कर दिया था की कैसे यहां
समय के साथ प्रकृति और संस्कृति का जोड़ हमने बनाकर रखा है। यदि आप गौर करें तो
पाएंगे की गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े हुए बोधि वृक्ष और महाभारत की महागाथा से जुड़े हुए
पारिजात जैसे कई अन्य पौराणिक वृक्ष, प्राचीन भारत के प्रकृति प्रेम और पर्यावरण के प्रति
जागरूकता की गवाही देते हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य में बाराबंकी के किन्तूर में स्थित पारिजात भारत सरकार द्वारा संरक्षित वृक्ष है,
और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लोकमत में इसका संबंध महाभारतकालीन घटनाओं से
जोड़ा गया है। मान्यता के अनुसार बाराबंकी के किन्तूर गांव का नाम पाण्डवों की माता कुन्ती के
नाम पर रखा गया है। जब अज्ञातवास के दौरान भगवान शिव की पूजा करने के लिए माता कुंती ने
स्वर्ग से पारिजात पुष्प लाये जाने की इच्छा ज़ाहिर की तो अपनी माता की इच्छानुसार अर्जुन ने
स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित कर दिया।
आज भी यह वृक्ष किन्तूर में स्थापित हैं, किंतु दुःखद रूप से इसके हालात पहले से कई अधिक
ख़राब हैं! हालांकिअच्छी खबर यह हैं की वैज्ञानिकों ने लखनऊ से मात्र 27 किलोमीटर की दूरी पर
बाराबंकी में स्थित, स्वर्ग से लाए हुए इस श्रद्धेय पेड़ की कमज़ोरी को देखते हुए, इसका क्लोन (
“clone”वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग से किसी पौधे या पशु की सही अनुकृति बनाना!) बनाने की
कोशिश कर रहे हैं। यह प्रयोग (NBRI), सीएसआईआर (CSIR's) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला में
किया जा रहा है।
इस प्रयोग के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफेसर एस.के तिवारी (Professor SK Tiwari) के अनुसार उन्होंने
2017 में भी इसी तरह का प्रयास किया था, लेकिन तब उन्हें स्थानीय पुजारियों के प्रतिरोध का
सामना करना पड़ा, जो उन्हें सांस्कृतिक तौर पर महत्वपूर्ण इस पेड़ की क्लोनिंग के लिए नमूने
एकत्र करने की अनुमति नहीं दे रहे थे। लेकिन उनके अनुसार "इस बार, वह नाराजगी का मुकाबला
करने के लिए दृढ़ हैं।
इस पेड़ की देखभाल की जिम्मेदारी वन विभाग के कंधों पर है, क्योंकि एक एकड़ से भी कम का
भूखंड जहां पेड़ खड़ा है वह भूमि वन विभाग के अंतर्गत आती है। विभिन्न जीवाणु और कवक
संक्रमणों (bacterial and fungal infections) से बचाव हेतु, फरवरी 2016 से पेड़ का निरंतर
उपचार किया जा रहा है। स्थानीय लोगों के अनुसार "पिछले 10 वर्षों में, पेड़ उस तरह से नहीं फूला
है, जैसे की पूर्व में फला-फुला करता था। हालांकि, यह ठीक होने के संकेत दे रहा है।" बाराबंकी के
FDO मानते हैं की "क्लोनिंग से इसकी विरासत को जीवित रखने की उम्मीद की जा सकती है।"
एक वृक्ष को जीवित रखने का यह वैज्ञानिक प्रयास आश्चरचकित भी करता है और सराहनीय भी हैं!
लेकिन पेड़ों के साथ लोगो की भावनाएं बेहद गहरे स्तर पर जुडी रहती है, इस बात का एक अन्य
प्रमाण तब सामने आया जब लॉकडाउन के दौरान गुजरात के सूरत में 400 साल पुराना राजसी
अफ्रीकन बाओबाब पेड़ (African Baobab) दो हिस्सों में टूट गया!
अदजान गम में मुख्य सड़क पर खड़ा 400 साल पुराना अफ़्रीकी बाओबाब पेड़ को 'चोर अमलो'
('Chor Amlo') के नाम से भी जाना जाता है। यह अदजान में पर्यावरणविदों और निवासियों के
लिए आकर्षण का केंद्र था। चूंकि यह बेहद पुराना पेड़ था, इसलिए अदजान के लोगों की भावनाएं
पेड़ से गहराई से जुड़ी हुई थीं।
दुनिया भर में पाई जाने वाली बाओबाब की आठ प्रजातियों में से छह प्रजातियाँ, विशेष रूप से
मेडागास्कर (madagascar) में पाई जाती हैं। मेडागास्कर पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित
दुनिया का चौथा सबसे बड़ा द्वीप (ग्रीनलैंड, न्यू गिनी और बोर्नियो “Greenland, New Guinea
and Borneo” के बाद) है। भूवैज्ञानिक रूप से, मेडागास्कर 167 मिलियन वर्ष पहले गोंडवानालैंड
(gondwanaland) से अलग हो गया था, और लगभग 65 मिलियन वर्ष पहले भारतीय टेक्टोनिक
प्लेट (Indian tectonic plate) से अलग होने के बाद बाकी दुनिया से भी अलग हो गया था।
मेडागास्कर एक वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट (Biodiversity Hotspot) है, और इसके
अद्वितीय वनस्पतियों, जीवों को राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क के माध्यम से
संरक्षित किया जाता है, जिसमें 120 से अधिक साइटें शामिल हैं।
इस द्वीप में फूलों के पौधों की लगभग 13,000 प्रजातियां हैं, जिनमें से 89% स्थानिकमारी
(endemic) वाले हैं। यह बाओबाबों के वृक्षों की मातृभूमि भी है।
बाओबाब (बौग-बॉब) का पेड़ कई अफ्रीकी संस्कृतियों में अपने आकार और आध्यात्मिक महत्व के
लिए जाना जाता है। इसमें 60 प्रतिशत तक पानी होता है। इसे मंकी-ब्रेड ट्री (monkey-bread
tree), उल्टा पेड़ और जीवन के पेड़ के रूप में भी जाना जाता है, और यह एक स्वादिष्ट और
पौष्टिक फल पैदा करता है। बाओबाब फल दक्षिणी अफ्रीका के कई हिस्सों के बच्चों के लिए स्कूल
से घर के रास्ते में एक पारंपरिक नाश्ते के रूप में खाया जाता है, गर्भवती महिलाओं के लिए यह एक
पूरक आहार होता है, और नींबू पानी के समान एक ताज़ा पेय होता है। पेट दर्द, बुखार और मलेरिया
को कम करने के लिए इसे सदियों से औषधीय रूप से भी इस्तेमाल किया जा रहा है। यह गर्म, शुष्क
जलवायु में उगता है, और इसकी ट्रंक (Trunk) में 1,200 गैलन पानी स्टोर करने की क्षमता के
आधार पर इसे बोतल के पेड़ या जीवन के पेड़ के रूप में भी जाना जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3H0InJ3
https://bit.ly/3JJgV4k
https://bit.ly/3p52aAH
https://bit.ly/3p5xQWF
चित्र संदर्भ
1. अफ्रीकन बाओबाब पेड़ को दर्शाता चित्रण (flickr)
2. उत्तर प्रदेश राज्य में बाराबंकी के किन्तूर में स्थित पारिजात भारत सरकार द्वारा संरक्षित वृक्ष है, जिसको दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. गुजरात के सूरत में 400 साल पुराना राजसी अफ्रीकन बाओबाब पेड़ (African Baobab) दो हिस्सों में टूट गया! जिसको दर्शाता चित्रण (facebook)
4. मेडागास्कर के बाओबाब वृक्षों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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