रज़ा पुस्तकालय में मौजूद पुस्तकों में संगीत अखाड़ों और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रामपुर घराने का वर्णन

ध्वनि I - कंपन से संगीत तक
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रज़ा पुस्तकालय में मौजूद पुस्तकों में संगीत अखाड़ों और हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के रामपुर घराने का वर्णन

अमरोहा, मुरादाबाद, पीलीभीत और शाहजहाँपुर इस क्षेत्र के कुछ अन्य महत्वपूर्ण शहर हैं जो न केवल युग-बदलते राजनीतिक विकास के साक्षी रहे हैं बल्कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और शीर्ष संगीतकारों के कई घरानों के उदय के भी गवाह हैं। उत्कृष्ट कला संगीत के अलावा, यह क्षेत्र लोक संगीत परंपराओं में भी समृद्ध है।रामपुर के प्रसिद्ध रज़ा पुस्तकालय ने दो पुस्तकें प्रस्तुत की हैं जो इस क्षेत्र के संगीत और इसके इतिहास का विस्तृत विवरण देती हैं।"उत्तर प्रदेश के रोहिलखंड क्षेत्र की संगीत परंपरा"संध्या रानी की पीएचडीथीसिस (Ph.D. thesis) पर आधारित है। जबकि "रामपुर दरबार का संगीत एवं नवाबी रसमीन" नफीस सिद्दीकी द्वारा लिखा गया है।अवध के संयोजन के बाद, नवाब वाजिद अली शाह के शासन और 1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का रंगून में निर्वासन हुआ जिसके कारण अधिकांश संगीतकार और नर्तकियां अन्य छोटे राज्यों के अलावा रामपुर, बड़ौदा, हैदराबाद, मैसूर और ग्वालियर जैसे राज्यों में स्थानांतरित हुए। यह 1857 के बाद का दौर था, जब रामपुर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य के एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा। संध्या रानी की पुस्तक रोहिलखंड के लोक संगीत के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करती है और इसे मुख्य तीन धाराओं - लोक गीत, जनवार्ता, चहारबैत में विभाजित करती है। जहां लोक गीत और जनवार्ता अधिकतर मौसमों और विभिन्न अवसरों जैसे बाल जन्म, विवाह और त्योहारों से संबंधित होते हैं वहीं चहारबैत एक विशेष रूप है जो रामपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है। चहारबैत, की उत्पत्ति पश्तो में हुई है और यह अफगानिस्तान के लोकप्रिय लोक संगीत का हिस्सा है जिसे पठानी राग भी कहते हैं। इसमें चार छंद होते है जिनमें से पहले तीन छंदों के तुक समान होते हैं जबकि चौथा छंद अलग है। भारत में चहारबैत का निर्माता मुस्तकीम खान को माना जाता है। इस क्षेत्र में बसने के बाद, अफगान रोहिलों ने जल्द ही स्थानीय भाषा (स्थानीय, फारसी और अरबी शब्दों का मिश्रण जिसे हम आज उर्दू के रूप में जानते हैं) को अपनाया। इसलिए, चहारबैत को मिश्रित भाषा में राग-बद्ध किया गया तथा ढफली संगीत उपकरण का उपयोग करते हुए गायकों के समूह द्वारा गाया गया। इस समूह को अखाड़ा कहा जाता था तथा धनी संरक्षकों द्वारा इन चहारबैत अखाड़ों के बीच प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए थे।
रामपुर नवाब, विशेष रूप से कल्बे अली खान, लोक संगीत के इस रूप के लिए उत्सुक थे। यह पुस्तक क्षेत्र में बजाए जाने वाले वाद्ययंत्रों जैसे ढोल, खंजरी, खरताल, नौबत, चमेली, चंग, नाल, नागर और इकतारा के बारे में भी बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती है। इस क्षेत्र ने रामपुर घराना, सहसवान घराना और भेंदी बाजार घराना सहित हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के कई घरानों की उत्पत्ति की। बहादुर हुसैन खान, इनायत खान, फिदा हुसैन खान, निसार हुसैन खान, छज्जू खान, नजीर खान, खादिम हुसैन खान, अंजनी बाई मालपेकर और अमन अली खान इन घरानों के शीर्ष कलाकार थे। तबला के जादूगर अहमद जान थिरकवा और ख्याल प्रतिपादक मुश्ताक हुसैन खान जैसे महान कलाकार भी लंबे समय तक रामपुर दरबार से जुड़े रहे। साथ ही रामपुर के कुछ शासकों से जुड़ी महिला गायकों के बारे में नफीस सिद्दीकी की किताब में कई दुर्लभ जानकारी भी प्राप्त होती है। जिससे पता चलता है कि नवाब अहमद अली खान (1794-1840) द्वारा कई महिला दरबारी गायकों को नियुक्त किया गया था। उनके नाम कल्लो खानम, नत्थो खानम, मधुमती, मिठो खानम, पद्मनी, गुच्छिया डोमनी और जुमानिया थे। चार अन्य महिला गायिकाएँ थीं और किसी को भी पचास रुपये से कम मासिक वेतन नहीं दिया जाता था।वहीं रज़ा पुस्तकालय ऐसी पुस्तकों को प्रस्तुत करने के लिए प्रशंसा का पात्र है।
इसके अलावा रामपुर में वर्ष 2020 में पारंपरिक उद्योग और संगीत को बढ़ावा देने के लिए एक सद्भावना केंद्र को बनाने का आदेश काफी काबिले तारीफ है। सद्भावना केंद्र में सभागार का भी निर्माण किया जाएगा, जिसमें लगभग 1000 लोगों के बैठने की व्यवस्था होगी। इसके अलावा यहां पर प्रशिक्षण केंद्र को भी बनाया जाएगा। रामपुर के पारंपरिक उद्योग, चाकू, सारंगी, पतंग, टोपी, जरी जरदौजी को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था को भी शामिल किया गया है। साथ ही इनके उत्पादों का प्रदर्शन भी किया जाएगा, जिससे लोगों के मन में प्रोत्साहन को बनाए रखने में मदद मिलेगी।केंद्र का निर्माण अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम के तहत कराया जा रहा है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3LL0RRi
https://bit.ly/33x9NZc

चित्र संदर्भ   

1. उस्मान वज़ीर खान के साथ रामपुर में रज़ा लाइब्रेरी की छवि दिखाती है, जिन्होंने रोहिलखंड के संगीत और इसके इतिहास का विस्तृत विवरण देने वाली दो पुस्तकें लिखी हैं को दर्शाता चित्रण (prarang, the hindu)
2. पठान राग पेश करते कलाकारों को दर्शाता चित्रण (prarang)
3. रज़ा लाइब्रेरी को दर्शाता चित्रण (prarang)