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पेंटेड फिश की सुंदरता के पीछे छिपा है क्रूर सत्य

लखनऊ

 17-02-2022 10:42 AM
मछलियाँ व उभयचर

पृथ्वी पर किसी भी शानदार जीव-जंतु, विषय अथवा विचार के सृजन में लाखों-करोड़ों वर्षों का समय लगा है, तब जाकर आज कहीं हम तसल्ली से कुदरत के रंगीन नज़ारों और अद्भुद जीवों की नादान हरकतों का मत्रमुग्ध होकर आनंद उठा पाते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से आज मनुष्य प्रकृति के प्रवाह के साथ चलना नहीं चाहता, और लालच में आकर न केवल अपने नैसर्गिक आनंद बल्कि कई जीव-जंतुओं का संपूर्ण नाश करने पर भी तुला हुआ है! इंसानों द्वारा कई प्राकृतिक प्रक्रियाओं में फेरबदल करके उन्हें अधिक क्षमतावान या आकर्षक तो बनाया जा सकता है, लेकिन यह कर्म कई बार प्रकृति के लिए अभिशाप बन जाता है। उदाहरण के तौर पर बेहद शानदार और प्यारी सी नज़र आने वाली इस नन्ही चित्रित मछली (Painted fish ) की पीड़ा को समझते हैं।
संभवतः आपको यह जानकर आश्चर्य और दुःख दोनों होगा की पेंटेड फिश (painted fish) या चित्रित मछली को उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए कृत्रिम रूप से रंगीन किया गया जाता है। इस सजावटी एक्वैरियम मछली (aquarium fish) को यह कृत्रिम रंग, जिसे जूसिंग (Juicing) के रूप में भी जाना जाता है, चमकीले फ्लोरोसेंट रंग डाई युक्त हाइपोडर्मिक सिरिंज (hypodermic syringe containing a brightly fluorescent colored dye) के साथ इंजेक्शन देना, मछली को डाई के घोल में डुबाना, या मछली के रंग का भोजन खिलाना जैसे कई तरीकों से दिया जाता है। यह प्रक्रिया आम तौर पर मछली को चमकीले रंग देने और उपभोक्ताओं के लिए अधिक आकर्षक बनाने के लिए की जाती है। साथ ही मछली का यह रंग स्थायी नहीं होता है, और आमतौर पर छह से नौ महीनों में फीका पड़ जाता है। "पेंटेड फिश" बनाने का सबसे प्रचलित तरीका सुई के माध्यम से डाई इंजेक्शन (dye injection) लगाना है। जहां आम तौर पर, छोटी सी मछली को कई बार इंजेक्शन लगाया जाता है। इसके बाद मछलियों के बाहरी स्लाइम कोट (outer slime coat) को हटाने के लिए उन्हें कास्टिक घोल (caustic solution) में भी डुबोया जाता है और फिर डाई में डुबोया जाता है। इस प्रक्रिया का सबसे दुखद सत्य यह है की इससे इनकी मृत्यु दर बहुत अधिक हो जाती है। साथ ही मछली का रंग बढ़ाने के लिए "रंग बढ़ाने वाले" खाद्य पदार्थों की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं। डाई इंजेक्शन वाली मछलियां अक्सर बाहरी रोग के स्पष्ट लक्षणों के बिना मर जाती हैं। मछलियों को रंगने के लिए दिए जाने वाले कुछ खाद्य पदार्थों में बीटा-कैरोटीन (beta carotene) जैसे प्राकृतिक रंग होते हैं, जो मछली के लिए हानिकारक नहीं होते हैं, लेकिन कभी-कभी थोक विक्रेताओं द्वारा हानिकारक रंगों का उपयोग किया जाता है।
रंगीन बनाने के लिए मछली को डाई के साथ कम-तीव्रता वाले लेजर का उपयोग करके भी गोदा जा सकता है। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकों द्वारा मत्स्य पालन के लिए विकसित किया गया था, लेकिन अब इसे सजावटी मछली पर लागू किया जाता है। हार्मोन प्रशासन (Hormone administration) भी कभी-कभी इनका रंग बढ़ा सकता है, लेकिन यह मादा मछली को बांझ भी बना सकता है। इसका एक और तरीका भी है जिसे अनुवंशिक संशोधन (genetic modification) कहा जाता है। कोरल और जेलिफ़िश (coral and jellyfish) से प्राप्त फ्लोरोसेंट पिगमेंट (fluorescent pigment) के लिए जीन स्थायी रंग में परिणाम देता है, जो कि संतानों को भी पारित किया जाता है, वह भी मछली को स्वयं इंजेक्शन या शारीरिक रूप से संशोधित करने की आवश्यकता के बिना।
आज चमकीले रंगों में आनुवंशिक रूप से संशोधित एक्वेरियम मछली ग्लोफिश (Glofish) के व्यापारिक नाम के तहत व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं।
मछलियों की पेंटिंग, रंगाई और "जूसिंग" 1970 के दशक के अंत में शुरू हुई, और 80 के दशक में आम हो गई। जिसकी शुरुआत भारतीय ग्लासफ़िश (glassfish) से हुई, जो एक पारदर्शी शरीर वाली एक आकर्षक प्रजाति है। तब से, यह प्रथा अन्य पारदर्शी और हल्के रंग की मछलियों में फैल गई है। रंगाई की प्रक्रिया के दौरान लगने वाली चोट, तनाव या आघात के बाद, एक मछली कई सूक्ष्मजीव रोगों से पीड़ित हो सकती है। और यह रोग एक मछली से दूसरी मछली में रोग फैल सकते हैं। मछलियों के रंगने के दुष्परिणामों को देखते हुए आज एक्वेरियम व्यापार के कुछ सदस्य इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, ब्रिटिश प्रकाशन प्रैक्टिकल फिशकीपिंग (Practical Fishkeeping) ने 1996 में खुदरा विक्रेताओं से रंगे हुए मछली की बिक्री बंद करने के लिए एक अभियान शुरू किया, जिसके कारण यूनाइटेड किंगडम में बेची गई संख्या में उल्लेखनीय कमी आई। प्रैक्टिकल फिशकीपिंग ने वैश्विक दायरे के साथ एक समान अभियान शुरू किया है और उन स्टोरों का एक रजिस्टर रखता है जो रंगे हुए मछली का स्टॉक नहीं करते हैं।
द रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (The Royal Society for the Prevention of Cruelty to Animals) इस प्रथा को क्रूर और अनावश्यक कॉस्मेटिक विकृति के रूप में मानता है। ऑस्ट्रेलिया और यूके में एक अभियान ने इन मछलियों की बिक्री को सीमित कर दिया है। हालांकि यहाँ रंगी हुई मछलियाँ अभी भी उपलब्ध हैं और आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया से आयात की जाती हैं। फरवरी 2006 में, यूके के पर्यावरण, खाद्य और ग्रामीण मामलों के विभाग (डीफ़्रा) ने पुष्टि की कि पशु कल्याण विधेयक के तहत ब्रिटेन में रंगे हुए मछली को बेचने को अवैध नहीं बनाया जाएगा।
इस बात में कोई संदेह नहीं है की कृत्रिम रूप से रंगना मछली पशु क्रूरता का एक अस्वीकार्य उदाहरण है, खासकर तब, जब हमारे पास नियॉन टेट्रास, बेट्टा और फैंसी गप्पी (Neon Tetras, Betta and Fancy Guppy) जैसे प्राकृतिक रूप से शानदार मछली चुनने के लिए बहुत सारे विकल्प मौजूद हैं। मछली के शौकीनों के रूप में, हमारा लक्ष्य इन मासूम और प्राकृतिक रूप से शानदार जीवों को पीड़ा देना नहीं, बल्कि उन्हें तनाव मुक्त वातावरण में स्वस्थ और संतुष्ट रखना है।

संदर्भ
https://bit.ly/36kOb3o
https://bit.ly/33wK3fG
https://bit.ly/34IjyEG
https://en.wikipedia.org/wiki/Painted_fish

चित्र संदर्भ   
1. पेंटेड फिश को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. रंगीन सुइयों को दर्शाता चित्रण (istock)
3. भारतीय ग्लासफ़िश (glassfish) को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. द रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (The Royal Society for the Prevention of Cruelty to Animals) को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. नियॉन टेट्रास, प्राकृतिक रूप से शानदार मछली को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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