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“ड्रैगन फ्रूट” (Dragon Fruit) बाजार में उपलब्ध सबसे पौष्टिक फलों में से एक है‚ जिसे
“पिताया” (Pitaya) या “पिठाया” (Pitahaya) फल के नाम से भी जाना जाता है। हाल के वर्षों
में ड्रैगन फ्रूट की लोकप्रियता बहुत बढ़ी है। देश में इसकी लगातार बढ़ती मांग के कारण‚ इसको
वृक्षारोपण फसल बनाने का अनुमान भी लगाया जा रहा है। ड्रैगन फ्रूट मूल रूप से अमेरिका का
है‚ लेकिन इसकी खेती भारत‚ ऑस्ट्रेलिया (Australia)‚ मैक्सिको (Mexico)‚ दक्षिण पूर्व एशिया
(Southeast Asia)‚ संयुक्त राज्य अमेरिका (United States)‚ कैरिबियन (Caribbean) और
मेसोअमेरिका (Mesoamerica) सहित दुनिया के सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। इस
फल के बाहरी हिस्से पर पपड़ीदार नोक और इसके चमड़े की तरह दिखने वाली त्वचा के कारण
इसे “ड्रैगन फ्रूट” कहा जाता है‚ यह नाम 1963 से इस्तेमाल किया जा रहा है। मेक्सिको में इसे
पिठाया और पिताया नाम से जाना जाता है जबकि मध्य अमेरिका और उत्तरी दक्षिण अमेरिका
में इसे “पिताया रोजा” (pitaya roja) नाम से जाना जाता है। इनके अलावा इसे दुनिया भर में
स्ट्रॉबेरी नाशपाती (strawberry pear)‚ रात की रानी (queen of the night) और नोबलवुमन
(noblewoman) के रूप में भी जाना जाता है। यह फल छोटे काले बीजों‚ धब्बेदार सफेद या
गुलाबी मांस और गुलाबी लाल त्वचा के साथ एक ड्रैगन अंडे जैसा दिखता है। कुछ लोगों का
कहना है कि यह कीवी (kiwi)‚ तरबूज‚ स्ट्रॉबेरी और नाशपाती के स्वाद का एक मीठा मिश्रण है
जबकि अन्य लोग इसे अस्पष्ट रूप से केवल मीठे या नमकीन के रूप में वर्णित करते हैं।
अच्छी तरह से बढ़ने की स्थिति और फल का पकना इसके स्वाद को प्रभावित करता है। इसके
फूल 20 सेमी से अधिक चौड़े होते हैं और गर्मियों में दिखाई देते हैं। वे बाहर से पीले हरे रंग के
होते हैं‚ जो शाम को खुलते हैं और केवल एक रात तक ही रहते हैं। यह कठोर होता है और
विभिन्न प्रकार की मिट्टी के साथ विविध जलवायु परिस्थितियों में भी बढ़ सकता है‚ विशेष रूप
से भारत के अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में।
ड्रैगन फ्रूट्स के कम रखरखाव और उच्च लाभप्रदता ने भारत में कृषक समुदाय को अपनी ओर
आकर्षित किया है‚ जिससे आंध्र प्रदेश‚ ओडिशा‚ कर्नाटक‚ गुजरात‚ तेलंगाना‚ तमिलनाडु‚ पश्चिम
बंगाल‚ महाराष्ट्र और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के साथ-साथ कई उत्तर पूर्वी राज्यों में
ड्रैगन फ्रूट की खेती में भारी मात्रा में वृद्धि हुई है। ड्रैगन फ्रूट को 1990 के दशक में भारत के
घरेलू उद्यानों में पेश किया गया था। किसानों के बीच इसकी व्यापक लोकप्रियता का कारण
इसकी लाभप्रदता और यह तथ्य था कि इसे एक बार स्थापित करने के बाद कम इनपुट की
आवश्यकता होती है। ये पौधे 20 से अधिक वर्षों तक उपज बनाए रखते हैं‚ इसमें उपस्थित
न्यूट्रास्युटिकल (nutraceutical) गुणों में उच्च है और मूल्य वर्धित प्रसंस्करण उद्योगों के लिए
लाभदायक है। यह बहुत कम लागत के साथ शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में विकसित हो सकता
है। ड्रैगन वेलनेस फार्म (Dragon Wellness Farm) के महाप्रबंधक मारिजो एल फैबरे (Marijo
L Fabre) बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की लोकप्रियता इसके पोषण मूल्यों और कई अन्य चीजों के
कारण बढ़ी है। उन्होंने कहा कि इसमें विटामिन सी‚ खनिज और फाइटोएल्ब्यूमिन
(phytoalbumins) युक्त उच्च फाइबर सामग्री होती है। ये पोषक तत्व मूल रूप से
एंटीऑक्सिडेंट (antioxidants) के लिए जाने जाते है‚ जो कैंसर पैदा करने वाले फ्री रेडिकल्स को
बनने से रोकने में मदद कर सकते हैं। इसके नियमित सेवन से उच्च रक्तचाप और मधुमेह से
पीड़ित लोगों को भी फायदा होता है। महाराष्ट्र के बारामती शहर में “इंडियन कौंसिल ऑफ
एग्रीकल्चरल रिसर्च नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ आबिओटिक स्ट्रेस मैनेजमेंट” (Indian Council of
Agricultural Research-National Institute of Abiotic Stress Management) के एक
हालिया अनुमान में पाया गया कि भारत के विभिन्न राज्यों में ड्रैगन फलों की खेती 3‚000-
4‚000 हेक्टेयर में की जाती है और देश में हर साल लगभग 12‚000 टन फल का उत्पादन
होता है‚ जिसका निर्यात फारस की खाड़ी (Persian Gulf) के देशों‚ यूरोपीय संघ और संयुक्त
राज्य अमेरिका को भी किया जा सकता है। भारत ने जून 2021 में संयुक्त अरब अमीरात
(United Arab Emirates) में महाराष्ट्र के एक किसान से दुबई (Dubai) में ड्रैगन फ्रूट की
अपनी पहली खेप का निर्यात किया।
ड्रैगन फ्रूट कैक्टस (cactus) के पौधे से आता है‚ जो आमतौर पर लताओं की तरह दिखाई देता
है। लाल (हायलोसेरस अंडैटस) (red (Hylocerusundatus))‚ सफेद मांस (हायलोसेरस
पॉलीरिज़स) (white flesh (Hyloceruspolyrhizus))‚ और पीला (सेलेनिसेरस मेगालैंथस)
(yellow (Selenicereusmegalanthus)) इसकी व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली तीन
सबसे आम किस्में हैं। ड्रैगन फ्रूट एक व्यावसायिक उत्पाद के रूप में काफी किफायती क्षमता
रखता है‚ क्योंकि औषधीय मूल्य के अलावा अब इसका उपयोग जूस‚ जैम‚ सिरका और यहां
तक कि वाइन (Wine) के उत्पादन में भी किया जा रहा है। यह पौधा एक वर्ष में कई बार
खिलता है‚ आमतौर पर मई से अक्टूबर तक। ड्रैगन फ्रूट को हल्की सर्दियाँ और बिना ठंढ वाली
गर्म स्थितियाँ पसंद हैं। वे कभी-कभी ठंड के मौसम की पहली दस्तक को सहन कर लेते हैं‚
लेकिन उन्हें 10 डिग्री से ऊपर रखा जाना चाहिए। उनमें गर्मी‚ सूखा‚ नमी और खराब मिट्टी को
संभालने की क्षमता होती हैं जिसके साथ वे नियमित रूप से पानी और समृद्ध मिट्टी के साथ
स्वादिष्ट फल उगा सकते हैं। भारत में किसान तीन मुख्य किस्मों की खेती करते हैं: गुलाबी
त्वचा के साथ सफेद मांस (White flesh with pink skin)‚ गुलाबी त्वचा के साथ लाल मांस
(red flesh with pink skin) और पीली त्वचा के साथ सफेद मांस (white flesh with yellow
skin)।अच्छी तरह व्यवस्थित बागों में पौधे रोपण के पहले वर्ष से ही फल देना शुरू कर सकते
हैं‚ लेकिन सार्थक पैदावार तीसरे वर्ष से शुरू होती है। ड्रैगन फ्रूट में फूल आना और फल लगना
भारत में मानसून के मौसम के साथ मेल खाता है। इसके फूल उभयलिंगी प्रकृति के होते हैं।
चमगादड़ और बाज जैसे रात्रि के घटक कीट पतंगों का आहार कर परागणकों के रूप में कार्य
करते हैं। फल फूल आने के 30-35 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। एक फल का
वजन लगभग 200 से 700 ग्राम तक होता है‚ अच्छी तरह से प्रबंधित बागों में औसत उपज
प्रति एकड़ पांच टन तक हो सकती है। बाजार में फल की कीमतें अत्यधिक परिवर्तनशील हैं‚ जो
मुख्य रूप से फलों के आकार और गूदे के रंग पर निर्भर करती हैं। मुंबई‚ पुणे और सूरत के
बाजारों में फलों की कीमतें 50 रुपये से 120 रुपये प्रति किलो के बीच हैं जबकि स्थानीय बाजार
में खुदरा विक्रेता इसे 60 से 100 रुपये प्रति पीस के हिसाब से बेचते हैं। कीटों और बीमारियों
की फ़िक्र से मुक्त होने के कारण भी किसान ड्रैगन फ्रूट पर अधिक रुचि दिखा रहे हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/35WnbqH
https://bit.ly/3HBKcgo
https://bit.ly/35KkSH2
https://bit.ly/3ox9HYZ
चित्र संदर्भ
1. “ड्रैगन फ्रूट” (Dragon Fruit) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. बेचने हेतु रखे गए “ड्रैगन फ्रूट” को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. विभिन्न रंगों में “ड्रैगन फ्रूट” को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. “ड्रैगन फ्रूट" के बगीचे को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. “ड्रैगन फ्रूट” मिल्कशेक को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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