राजनीतिक व्यंग्य की परिभाषा और भारत में इनकी वर्तमान स्थिति

दृष्टि II - अभिनय कला
29-01-2022 10:03 AM
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राजनीतिक व्यंग्य की परिभाषा और भारत में इनकी वर्तमान स्थिति

हास्य अभिनेता अर्थात कॉमेडियन (comedian) बेहद मामूली या गंभीर प्रतीत होने वाली किसी भी वस्तु अथवा विषय को इतने शानदार और हास्यास्प्रद ढंग से प्रस्तुत करते हैं की, मुस्कुराने में कंजूसी करने वाले लोग भी पेट पकड़कर लोट-पोट हुए बिना नहीं रह सकते! हालांकि वे अधिकांश मुद्दों को बेहद मनोरजंक और रोचक ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं, किन्तु धार्मिक, राष्ट्रिय मुद्दों एवं राजनितिक दलों पर किये जाने वाले व्यंग्य अर्थात हास्यास्प्रद टिप्पणियां कई बार इन्हीं के लिए गंभीर सबब बन जाती हैं।
हास्य अभिनेताओं द्वारा आमतौर पर दर्शकों के मनोरंजन हेतु राजनितिक दलों अथवा नेताओं पर किये गए व्यंग्य को राजनितिक व्यंग (Political satire) कहा जाता है। इन व्यंगों को आमतौर पर राजनीति से मनोरंजन प्राप्त करने के लिए किया जाता है, लेकिन कई बार इसका उपयोग विध्वंसक इरादे के साथ भी किया जा सकता है। राजनीतिक व्यंग्य को आमतौर पर राजनीतिक विरोध या राजनीतिक असंतोष से अलग करके देखा जाता है, क्यों की इसमें जरूरी नहीं है की कॉमेडियन द्वारा किये गए व्यंग के पीछे कोई विशेष एजेंडा (Agenda) हो अथवा वह राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित करना चाहता हो। जबकि ऐसा हो सकता है, इसका उद्देश्य आमतौर पर केवल मनोरंजन प्रदान करना हो। राजनितिक व्यंग का सबसे पुराना उदाहरण अरिस्टोफेन्स (Aristophanes) से संदर्भित किया जाता है। राजनीतिक व्यंग ने ज़ीउस (Zeus) के नेतृत्व काल के दौरान धर्म और क्लियोन (Cleon), जैसे शीर्ष राजनेताओं को लक्षित किया। "व्यंग्य और उपहास ने उत्तरोत्तर आस्था के मौलिक और सबसे पवित्र तथ्यों पर भी हमला किया," जिससे आम जनता में धर्म के प्रति संदेह बढ़ गया। ऐतिहासिक रूप से, एथेनियन लोकतंत्र (Athenian democracy) में जनता की राय, थिएटर में हास्य कवियों द्वारा किए गए राजनीतिक व्यंग्य से उल्लेखनीय रूप से प्रभावित थी। प्राचीन काल से व्यंग्य देखना या पढ़ना एक संस्कृति और समाज को समझने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता है। 20वीं और 21वीं सदी के दौरान भी व्यंग्य मीडिया (कार्टून में भारी कैरिकेचर (heavy caricatures) और अतिशयोक्ति के साथ राजनीतिक कार्टून और राजनीतिक पत्रिकाओं की लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। राजनीतिक व्यंग्य का एक प्रारंभिक और प्रसिद्ध उदाहरण दांते अलीघिएरी (Dante Alighieri) की एक कविता है, जिसे डिवाइन कॉमेडी (Divine Comedy) कहा जाता है। 1308–1320 में अपनी कविता के माध्यम से दांते ने सुझाव दिया कि फ्लोरेंस (florence) में उस समय के राजनेताओं को नरक की यात्रा करनी चाहिए। रंगमंच के माध्यम से राजनीतिक व्यंग्य का एक और प्रसिद्ध रूप विलियम शेक्सपियर (William Shakespeare's) का नाटक रिचर्ड (Richard) है, जिसने उस समय की राजनीति और सत्ता के आंकड़ों की आलोचना की थी। ब्रिटेन में राजनीतिक व्यंग्य की एक लंबी परंपरा है, जो अंग्रेजी साहित्य के प्रारंभिक वर्षों से चली आ रही है। 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान संपादकीय कार्टून व्यंग्य के रूप में विकसित हुए, जिसमें पंच (Punch) की तरह समर्पित व्यंग्य पत्रिकाएं 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में प्रदर्शित हुईं। कई स्ट्रीट कलाकारों (street artists) ने पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और युद्ध जैसे विभिन्न विषयों पर टिप्पणी करने के लिए मुख्य रूप से भित्तिचित्रों (graffiti) के माध्यम से गहरे राजनीतिक हास्य और सामाजिक टिप्पणियों का उपयोग किया है। 1960 के दशक के दौरान अमेरिकी टेलीविजन राजनीतिक व्यंग्य का इस्तेमाल करने वाले कुछ शुरुआती शो में दैट वाज़ द वीक (That Was the Week) कार्यक्रम के ब्रिटिश और अमेरिकी संस्करण शामिल हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत में राजनितिक व्यंग एक नई शुरुआत है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय हास्य कलाकारों की बढ़ती संख्या के कारण सामाजिक टिप्पणी और राजनीतिक व्यंगों का विस्तार हो रहा है। हालांकि हमारे कॉमेडियन प्रतिष्ठित राजनेताओं का नाम लेने के बजाय चतुर नए प्रेयोक्ति ( कोई उपनाम) का प्रयोग करते हैं, इसका प्रमुख कारण यह है की भारत भारत में कई व्यंगकारों को राजनीतिक दलों, धर्म या राष्ट्रवादीता पर व्यंग करने पर जनता के आक्रोश और कानूनी कार्यवाही का सामना भी करना पड़ा है। राजनीति के अंतर्गत कॉमेडी कोई गंभीर विषय नहीं है। लेकिन हास्य तर्क की आड़ में राष्ट्रवादी या 'राष्ट्र- विरोधी' बयानबाजी से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि यह भी सत्य है की कई बार राजनेता स्पष्ट तौर पर कुछ न कुछ हास्यास्प्रद कृत्य कर ही देते हैं। यही कारण है की राजनितिक व्यंग बहुत सारे युवा हास्य कलाकारों के लिए एक संदर्भ बिंदु बन गया। कुणाल कामरा, वरुण ग्रोवर और संजय राजौरा जैसे भारतीय कॉमेडियन सीधे तौर पर राजनीति पर केंद्रित अपनी सामग्री के कारण बड़े पैमाने पर लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर कामरा ने इस साल की शुरुआत में तब सुर्खियां बटोरीं, जब उन्होंने रोहित वेमुला (हैदराबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी के पीएचडी छात्र 26 वर्षीय दलित रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को युनिवर्सिटी के होस्टल के एक कमरे में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी थी. उनकी आत्महत्या का मामला लंबे वक़्त तक सुर्खियों में रहा।) की मौत का हवाला देते हुए एक फ्लाइट में एक भारतीय पत्रकार का "सामना" करते हुए एक वीडियो पोस्ट किया। जहां वीडियो ने उनकी प्रसिद्धि को बढ़ाया, वहीं कुछ ऐसे वर्ग भी थे जो इस मामलें के बारे में विवादित थे। जैसे कामरा द्वारा सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करना अनुचित देखा गया था उनके अधिकांश चुटकुले भारत में अति राष्ट्रवाद और #MandirWahiBanega पर केंद्रित हैं। दक्षिणपंथी मानसिकता और प्रधानमंत्री मोदी की अंधी पूजा पर चुटकुले हैं। इन दिग्गजों पर कामरा के दोहराए गए हमलों ने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई, उन्हें युवा भारत की निडर आवाज के रूप में ताज पहनाया। यह उल्लेखनीय है कि भारत में स्टैंड-अप दृश्य बदल रहा है। कॉमेडियन आलोचना करने और अधिकारियों से सवाल करने को तैयार हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3KPDgOY
https://bit.ly/3fYUcEn
https://bit.ly/3rXjvft
https://bit.ly/3u3zprn
https://en.wikipedia.org/wiki/Political_satire
https://deadant.co/no-country-for-political-satire/

चित्र संदर्भ   
1. नेवादा में ट्रम्प विजयी, 1885 की वाराणसी पेंटिंग के बाद राजनितिक व्यंग को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. द हेन दैट लाइड द गोल्डन एग्स, 1918 - राफेल टक एंड संस को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. एबी थिएटर में रिचर्ड III के 2018 के प्रोडक्शन की कास्ट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कुणाल कामरा की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)