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अय्यप्पन (सस्था या धर्मस्थ या मणिकंदन) एक हिंदू देवता हैं जो दक्षिण भारत (खासकर केरल राज्य
में) में लोकप्रिय हैं। अयप्पा को आत्म-नियंत्रण के हिंदू देवता के रूप में भी जाना जाता है।अय्यपा को
मोहिनी (विष्णुअवतार) और शिव के पुत्र और माता पार्वती के सौतेले पुत्र के रूप में माना जाता है।
उन्हें धर्म, सच्चाई और धार्मिकता का प्रतीक माना जाता है और अक्सर ऐसा कहा जाता है कि ये
बुराई को समाप्त करते हैं। कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सभी हिंदू समुदायों के
सदस्यों के समक्ष केरल राज्य में अयप्पा की पूजा बहुत लोकप्रिय हो गई है। देवता का उल्लेख
विभिन्न शास्त्रों में किया गया है और दक्षिण भारतीय हिंदू परंपराओं में ये पूजनीय हैं। यद्यपि दक्षिण
भारत में अय्यप्पन की भक्ति पहले भी प्रचलित थी, लेकिन ये केवल 20वीं शताब्दी के अंत में ही
लौकिक हुए।
अय्यप्पन को अयप्पा, सस्तवु, हरिहरसुधन, मणिकंदन, शास्त्र या धर्म शास्त्र और सबरीनाथ के नाम से
भी जाना जाता है। अय्यप्पन की प्रतिमा में उन्हें एक सुंदर ब्रह्मचारी भगवान,गले में घंटी पहने हुए
तथा योग करते हुए और धर्म के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है ।उन्हें केरल में मुसलमानों द्वारा
सम्मानित किया जाता है,क्योंकि उन्होंने मुस्लिम डाकू वावर को पराजित किया था, जिसके बाद उसने
उनकी पूजा करनी शुरू कर दी।भारत के पश्चिमी घाटों में लोकप्रिय हिंदू परंपरा में, वे शिव और विष्णु
की शक्तियों से पैदा हुए थे और आकार बदलने वाले दुष्ट भैंस राक्षस महिषी का सामना करने और
उसे हराने के लिए पैदा हुए थे। उनका पालन-पोषण एक निःसंतान शाही दंपति राजशेखर पांडियन और
कोपरुंदेवी ने किया था, और वे नैतिक और धार्मिक जीवन के योद्धा योगी शूरवीर के रूप में बड़े
हुए।दक्षिण भारतीय संस्करण में, अय्यप्पन की छवियों में उन्हें एक बाघिन की सवारी करते हुए
दिखाया गया है, लेकिन श्रीलंका जैसे कुछ स्थानों में उन्हें एक सफेद हाथी की सवारी करते हुए
दिखाया गया है।
अय्यप्पन की प्रसिद्धि भारत के कई हिस्सों में बढ़ती जा रही है, और सबसे प्रमुख अय्यप्पन मंदिर
सबरीमाला में है, जो केरल के पथानामथिट्टा की पहाड़ियों में स्थित है।मंदिर में हर वर्ष दिसंबर के
अंत और जनवरी की शुरुआत में लाखों तीर्थयात्री आते हैं, जिनमें से कई हफ्तों पहले तैयारी करते हैं
और फिर नंगे पैर पहाड़ी पर चढ़ते हैं, जिससे यह दुनिया के सबसे बड़े सक्रिय तीर्थ स्थलों में से एक
बना गया है।
वहीं हमारे लखनऊ के गोमती नगर में भी भगवान अयप्पा का दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ
मंदिर स्थित है जहां बहुत से भक्त पूजा और दर्शन करने आते हैं। कुछ स्रोतों से पता चलता है कि
इस मंदिर का पुनरुद्धार 2002 में हुआ था और दुबारा नवीनीकरण 2012 में किया गया था। साथ
ही मंदिर के पास एक काफी ऊँचा स्तंभ बना हुआ है जो की देखने में अलौकिक लगता है , इस
स्तंभ के आगे एक पत्थर है, जिसको भगवान का रक्षक कह सकते हैं, लखनऊ के इस मन्दिर के
चारों तरफ छोटे-छोटे स्तंभ हैं, जो की मन्दिर और देशवासियों की रक्षा के लिए बनाये गए हैं। मंदिर
के अंदर भगवान अयप्पा के साथ साथ श्री गणेश, श्री राम, माँ वैष्णवी देवी के भी मंदिर हैं साथ ही
मंदिर के प्रांगण में कुछ और भी सुंदर मंदिर हैं जैसे माँ काली, शिवजी और नवदुर्गा।
पुराणों या प्राचीन शास्त्रों में भगवान अयप्पा की उत्पत्ति की पौराणिक कथा काफी लुभावनी है। ऐसा
माना जाता है कि जब माँ दुर्गा ने राक्षसों के राजा महिषासुर का वध किया तब महिषासुर की बहन
महिषी अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए निकल पड़ी।महिषी को भगवान ब्रह्मा से वरदान
प्राप्त था कि उनका वध केवल भगवान विष्णु और भगवान शिव से पैदा हुई एक संतान ही कर
सकेगी, या दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह अक्षय थी।दुनिया को विनाश से बचाने के
लिए, भगवान विष्णु ने मोहिनी के रूप में अवतार लिया, और भगवान शिव से शादी की, और उनके
मिलन से भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। वहीं राजा राजशेखर जो निःसंतान थे, उन्होंने अयप्पा को
जंगल में पाया और उन्हें गोद ले लिया। राजा राजशेखर द्वारा भगवान अयप्पा को गोद लेने के बाद,
उनके अपने जैविक पुत्र राजा राजन का जन्म हुआ। हालांकि दोनों पुत्रों का पालन पोषण एक समान
हुआ, लेकिन भगवान अयप्पा ने युद्ध कला और विभिन्न शास्त्रों के ज्ञान में उत्कृष्ट प्रदर्शन
किया।अपना प्रशिक्षण और अध्ययन पूरा करने पर, जब उन्होंने अपने गुरु को 'गुरुदक्षिणा' या शुल्क
की पेशकश की, तो उनकी दैवीय शक्तियों से अवगत गुरु ने उनसे अपने अंधे और गूंगे बेटे के लिए
दृष्टि और वाणी का आशीर्वाद मांगा। जैसे ही मणिकांतन ने उनके पुत्र के सिर पर हाथ रखा
आशीर्वाद दिया, तभी चमत्कार हो गया।
12 साल की उम्र में, राजा औपचारिक रूप से मणिकांतन का सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में नाम
देना चाहते थे।हालांकि, एक दुष्ट मंत्री के प्रभाव में रानी ने विरोध किया और मंत्री और अपने
चिकित्सक के साथ मिलकर मणिकांतन को मारने की साजिश रची।बीमारी का बहाना करते हुए, रानी
ने अपने चिकित्सक से अपनी बीमारी का एक असंभव उपाय देने को कहा, जिससे चिकित्सक ने
स्तनपान कराने वाली बाघिन के दूध की सलह दी। जब कोई इसे प्राप्त नहीं कर सका, तो बहादुर
मणिकांतन ने स्वेच्छा से अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाने का विचार किया।रास्ते में उनका
सामना राक्षसी महिषी से हुआ और उन्होंने उसका अज़ुथा नदी के तट पर पराजय कर वध कर
दिया।इस प्रकार, उनके जीवन की नियति पूर्ण हो चुकी थी। लेकिन अभी उन्हें और भी कई कार्यों को
पूर्ण करना था, वे स्तनपान कराने वाली बाघिन को ढूंढते हुए जंगल में पहुंचे और बाघिन पर काबू
पाने में सफल हुए और सवार होकर वापस महल में आ गए। राजा द्वारा अपने बेटे के प्रति रानी की
साजिश को पहले ही भांप लिया गया था और मणिकांतन से क्षमा की भीख माँगी।हालाँकि,
मणिकांतन ने राजा से कहा कि चूंकि उनके जीवन की नियति पूरी हो गई है, इसलिए उन्हें वापस
स्वर्ग लौटना होगा। उन्होंने राजा से सबरी पहाड़ी के ऊपर एक मंदिर बनाने के लिए कहा, ताकि
उनके छोटे लेकिन सार्थक जीवन की स्मृति चिरस्थायी हो सके।जब मंदिर का निर्माण पूरा हो गया,
तो भगवान परशुराम ने भगवान अयप्पा की एक मूर्ति बनाई और उसे मकर संक्रांति के दिन मंदिर में
स्थापित किया। इस प्रकार, भगवान अयप्पा की देवता-सदृश पूजा करनी आरंभ हुई।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3I7uoSK
https://bit.ly/33cPpfZ
https://bit.ly/33sU7pv
https://bit.ly/3fpCUA8
चित्र संदर्भ
1. भगवान अयप्पा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. अय्यप्पन प्रतिमा को योगिक स्थिति में दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के कोडुरु में श्री अयप्पा स्वामी मंदिर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4 .सुंदर सजाई गई अयप्पा स्वामी की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. अयप्पा मंदिर उत्सवम जुलूस की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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