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इस्लामी कला एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनते ही, भव्य इमारतों, कलाओं, मूर्तिरूपों आदि का
विचार हमारे मन और मस्तिष्क में तुरंत आ जाता है। यूं तो इस शब्द से सामान्य तौर पर
यह लगता है, कि यह कला मुस्लिम संरक्षकों के लिए या मुस्लिम कलाकारों, कारीगरों और
वास्तुकारों द्वारा बनाई गई होगी, लेकिन पूरी तरह से यह सोचना गलत है।इसमें मुस्लिम
कलाकारों द्वारा किसी भी धर्म के संरक्षक के लिए बनाए गए कार्यों को शामिल किया गया
है, चाहे फिर वह धर्म ईसाई हो, यहूदी हो या फिर हिंदू। इसमें वह कला शामिल है, जिसे
इस्लामी भूमि में रह रहे यहूदियों, ईसाइयों और अन्य लोगों द्वारा बनाया गया था। इस
प्रकार इस्लामी कला शब्द न केवल मुस्लिम आस्था की सेवा में विशेष रूप से बनाई गई
कला का वर्णन करता है, बल्कि यह मुस्लिमों द्वारा शासित भूमि, मुस्लिम संरक्षकों के लिए
उत्पादित, या मुस्लिम कलाकारों द्वारा बनाई गई ऐतिहासिक रूप से निर्मित कला और
वास्तुकला का वर्णन करता है। इस्लामी कला 19वीं शताब्दी में कला इतिहासकारों द्वारा
बनाई गई एक आधुनिक अवधारणा है, ताकि सातवीं शताब्दी में अरब(Arab) से उभरे
इस्लामी लोगों के तहत पहली बार उत्पादित सामग्री के वर्गीकरण और अध्ययन में सुविधा
हो।
हमारे रामपुर में भी इस्लामी कला के महत्वपूर्ण उदाहरण मौजूद हैं। इमामबाड़ा, जामा
मस्जिद, रजा लाइब्रेरी आदि में इस्लामी कला की झलक देखने को मिलती है।इस्लामी कला
का स्पष्ट रूप तब सामने आया, जब इस्लामी युग का तेजी से विस्तार हो रहा था।तब
इस्लामी संस्कृति की प्रारंभिक भौगोलिक सीमाएँ वर्तमान सीरिया (Syria) में थीं।शुरुआती
इस्लामी वस्तुओं को फ़ारसी या सासैनियन (Sassanian) और बीजान्टिन (Byzantine) कला
में अपने पूर्ववर्तियों से अलग करना काफी मुश्किल है, तथा इस्लाम के प्रारंभिक प्रसार के
बाद जब कलाकारों सहित आबादी का बड़े पैमाने पर रूपांतरण हुआ तब यह समय इस्लामी
कला के लिए एक महत्वपूर्ण समय रहा। इस समय अनग्लेज्ड सिरामिक (Unglazed
ceramics) इस्लामी कला का एक महत्वपूर्ण उत्पादन था तथा इसका साक्ष्य एक प्रसिद्ध
छोटा कटोरा या बाउल है,जिसे लूव संघ्रालय (Louvre, Paris) में संरक्षित किया गया है।
इसके अभिलेख यह बताते हैं, कि यह इस्लामी कला से सम्बंधित है।इन प्रारंभिक कृतियों में
पादप रूपांकन सबसे महत्वपूर्ण थे।
इस्लामी कला ऐतिहासिक परिस्थितियों के मेल से बनी सभ्यता की कला है। यह एक ऐसे
समय की कला है, जब अरबों द्वारा प्राचीन विश्व पर विजय प्राप्त की गई, इस्लाम के बैनर
तले एक विशाल क्षेत्र का जबरन एकीकरण किया गया। यह एक ऐसे क्षेत्र में उभरी कला है,
जिसे विदेशी लोगों के विभिन्न समूहों द्वारा अधिकृत किया गया था। शुरू से ही, इस्लामी
कला की दिशा बड़े पैमाने पर राजनीतिक संरचनाओं द्वारा निर्धारित की गई थी जो
भौगोलिक और सामाजिक सीमाओं को काटती थी। इस्लामी कला की जटिल प्रकृति अधिकृत
विभिन्न देशों में पूर्व-इस्लामी परंपराओं के आधार पर विकसित हुई। यह अरब, तुर्की
(Turkish) और फारसी (Persian) परंपराओं का एकीकृत मिश्रण है, जिसे मुस्लिम साम्राज्य
के सभी हिस्सों में एक साथ लाया गया था।
इस्लामी कला के चार बुनियादी घटकों में सुलेख, वनस्पति पैटर्न, ज्यामितीय पैटर्न और
आलंकारिक प्रतिनिधित्व शामिल हैं।सुलेख इस्लामी दुनिया में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कला
रूप है। कुरान, जिसे सुरुचिपूर्ण लिपियों में लिखा गया है, अल्लाह या ईश्वर के ईश्वरीय शब्द
का प्रतिनिधित्व करता है। माना जाता है, कि इसे मुहम्मद ने अपने दर्शन के दौरान सीधे
अल्लाह से प्राप्त किया था।सुलेख में निष्पादित कुरान की आयतें कला और वास्तुकला के
कई अलग-अलग रूपों पर पाई जाती हैं। इसी तरह, चीनी मिट्टी के कटोरे से लेकर घरों की
दीवारों तक हर चीज पर कविता मिल सकती है।ज्यामितीय और वानस्पतिक रूपांकन उन
देशों में बहुत लोकप्रिय हैं जहां इस्लाम एक बार प्रमुख धर्म हुआ करता था या आज भी
है।स्पेन (Spain) में अल्हाम्ब्रा (Alhambra) तथा सफ़ाविद ईरान (Safavid Iran) का
विस्तृत धातु कार्य इसके प्रमुख उदाहरण हैं। इसी तरह, इस्लामी दुनिया भर में कुछ विशेष
इमारतें दिखाई देती हैं, जैसे मस्जिदों के साथ उनकी मीनारें, मकबरे, बगीचे और मदरसे
आदि सभी समान हैं,हालाँकि, उनके रूप बहुत भिन्न होते हैं।
इस्लामी दुनिया की कला के बारे में सबसे आम गलत फहमियों में से एक यह है कि यह
ऐनिकोनिक (Aniconic) है,अर्थात् इस कला में मनुष्यों या जानवरों का प्रतिनिधित्व नहीं होता
है।धार्मिक कला और वास्तुकला के प्रारंभिक उदाहरण जैसे डोम ऑफ द रॉक (Dome of the
Rock) और अक्सा मस्जिद (Aqsa Mosque) और दमिश्क (Damascus) की महान
मस्जिद जो उमय्यद शासकों के तहत निर्मित हुई में मानव और जानवर की आकृतियाँ
शामिल नहीं थी।हालाँकि, शासकों के निजी निवास जैसे क़सर 'अमरा (Qasr ‘Amra) और
ख़िरबत मफ़ज़र (KhirbatMafjar), विशाल आलंकारिक चित्रों, मोज़ाइक (Mosaics) और
मूर्तिकला से भरे हुए थे।इस्लामी कला में सबसे मौलिक तत्व अनंत पैटर्न का निर्माण है,जो
लगभग प्रारंभिक समय से ही उपयोग में था।सभी अवधियों में यह इस्लामी कला का एक
प्रमुख तत्व रहा है।किसी दिए गए पैटर्न की अनंत निरंतरता, चाहे वह अमूर्त, अर्ध-अमूर्त या
आंशिक रूप से आलंकारिक हो, वास्तविक अस्तित्व की अनंतता में गहन विश्वास को
प्रदर्शित करता है। दूसरी ओर यह अस्थायी अस्तित्व की भी उपेक्षा करता है।इस्लामी कला
का अरबस्क (Arabesque) डिजाइन इस अनंत पैर्टन का एक हिस्सा है, जो एक अनंत
लीफ-स्क्रॉल (Leaf-scroll) पैटर्न पर आधारित है।इसे किसी भी सतह चाहे वह एक छोटे धातु
के बक्से का कवर हो या एक स्मारकीय गुंबद का चमकदार वक्र हो पर लागू किया जा
सकता है।इस्लामी कलाकारों ने आदतन फूलों और पेड़ों को कपड़े, वस्तुओं, व्यक्तिगत
वस्तुओं और इमारतों के अलंकरण के लिए सजावटी रूपांकनों के रूप में नियोजित किया।
उनके डिजाइन अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय तकनीकों से प्रेरित थे। उदाहरण के लिए, मुगल
वास्तुशिल्प सजावट यूरोपीय वनस्पति कलाकारों के साथ-साथ पारंपरिक फारसी और भारतीय
वनस्पतियों से प्रेरित थी।
भारत में इस्लामी कला के सबसे प्रसिद्ध स्मारकों में से एक ताजमहल है, जो भारत के
आगरा में स्थित एक शाही मकबरा है। इसके अलावा भारत में इस्लामी कला और वास्तुकला
की एक विशाल श्रृंखला देखने को मिलती है, क्यों कि मुगल शासक आधुनिक भारत के बड़े
क्षेत्रों में सदियों से हावी थे। इसके अलावा चीन (China) में जियान (Xian) की महान
मस्जिद, चीन की सबसे पुरानी और सबसे अच्छी संरक्षित मस्जिदों में से एक है। इस
मस्जिद का वर्तमान स्वरूप 15 वीं शताब्दी का है और यह एक समकालीन बौद्ध मंदिर की
योजना और वास्तुकला का अनुसरण करती है। वास्तव में, बहुत सारी इस्लामी कला और
वास्तुकला स्थानीय परंपराओं और अधिक वैश्विक विचारों के संश्लेषण के माध्यम से बनाई
गई थी और अभी भी बनाई जा रही है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3pQshMx
https://bit.ly/3sSSfB3
https://bit.ly/3pOuGHx
https://bit.ly/3FZ45xq
https://bit.ly/34kwv71
https://bit.ly/3FRCqyn
चित्र संदर्भ
1. पीलीभीत 1780 . में हाफिज रहमत खान द्वारा मस्जिद निर्माण को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. रामपुर रजा पुस्तकालय को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. रामपुर की एक मस्जिद के छज्जे में की गई शानदार नक्काशी को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. मस्जिद के गुंबद पर की गई नक्काशी को दर्शाता एक चित्रण (prarang)