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रामपुर के निकट आती प्रवासी पक्षी रूडी शेल्डक या ब्राह्मणी बतख का परिचय व् प्रवास वृतांत

लखनऊ

 30-12-2021 09:25 AM
पंछीयाँ

रूडी शेल्डक (Ruddy Shelduck) एनाटिडे (Anatidae) परिवार का सदस्य है‚ जिसे भारत में ब्राह्मणी बतख (Brahminy duck) के रूप में जाना जाता है। यह अनोखा और विशिष्ट हंस की तरह दिखने वाला एक बतख है‚ जो 110 से 135 सेमी के पंखों के साथ 58 से 70 सेमी की लंबाई वाला एक विशिष्ट जलपक्षी है। इसमें एक हल्के पीले सिर के साथ नारंगी-भूरे रंग के शरीर के पंख होते हैं और पूंछ तथा उड़ने वाले पंख काले होते हैं‚ जो सफेद पंख-आवरण के विपरीत होते हैं। यह एक प्रवासी पक्षी है‚ जो भारतीय उपमहाद्वीप में सर्दियों के दौरान आते हैं तथा दक्षिणपूर्वी यूरोप (southeastern Europe) और मध्य एशिया (central Asia) में प्रजनन करते है‚ उत्तरी अफ्रीका (North Africa) में इनकी छोटी निवासी आबादी हैं। इसमें एक जोरदार हॉर्निंग कॉल (honking call) भी होता है। ये ज्यादातर अंतर्देशीय जल-निकायों जैसे जलाशयों‚ नदियों तथा कृषि क्षेत्रों में निवास करते हैं‚ इसके अलावा ये अक्सर खारे झीलों के आसपास पाये जाते हैं। कभी-कभी इन्हें जलपक्षी संग्रह से पलायन करते हुए देशी सीमा के बाहर भी उड़ते हुए देखा जाता है। शेल्डक नर और मादा एक स्थायी जोड़ी बंधन बनाते हैं और उनका घोंसला पानी से दूर किसी दरार में या एक चट्टान या पेड़ तथा इसी तरह के किसी स्थान के छेद में हो सकता है। एक बार में मादा लगभग आठ अंडे देती है‚ जिन्हें वह लगभग चार सप्ताह तक पूरी तरह से इनक्यूबेट (incubate) करती है। बच्चों की देखभाल माता-पिता दोनों करते हैं और अंडे सेने के लगभग आठ सप्ताह बाद जब वे उड़ने के योग्य हो जाते हैं तब शेल्डक अपने बच्चों के साथ वहां से चले जाते हैं। मध्य और पूर्वी एशिया में इनकी जनसंख्या या तो स्थिर है या फिर बढ़ रही है‚ लेकिन यूरोप में आम तौर पर इनकी जनसंख्या में गिरावट देखी जा रही है। रूडी शेल्डक‚ शेल्डक जीनस टैडोर्न (genus Tadorna) का सदस्य है‚ जो जंगली पक्षी परिवार एनाटिडे से है। शेल्डक का वर्णन पहली बार 1764 में जर्मन (German) जीव विज्ञानी और वनस्पतिशास्त्री पीटर साइमन पलास (Peter Simon Pallas) द्वारा किया गया था‚ जिन्होंने इसका नाम अनस फेरुगिनिया (Anas ferruginea) रखा था‚ लेकिन बाद में इसे अन्य शेल्डक के साथ जीनस टैडोर्ना में स्थानांतरित कर दिया गया। कुछ अधिकारी इसे दक्षिण अफ़्रीकी शेल्डक “टी. कैना” (T. cana)‚ ऑस्ट्रेलियाई शेल्डक “टी. टैडोर्नोइड्स” (T. tadornoides) और पैराडाइज शेल्डक (Paradise shelduck) “टी. वेरिएगाटा” (T. variegata) के साथ जीनस कैसरका (genus Casarca) में रखते हैं। वंशावली विश्लेषण से पता चलता है कि यह दक्षिण अफ्रीकी शेल्डक (South African shelduck) से सबसे अधिक निकटता से संबंधित है। रूडी शेल्डक को टैडोर्न (Tadorna) के कई अन्य सदस्यों के साथ‚ डबलिंग डक जीनस अनस (dabbling duck genus Anas) के कई सदस्यों और मिस्र के हंस (Egyptian goose) ‘एलोपोचेन इजिपियाका’ (Alopochen aegyptiaca) के साथ संकरित करने के लिए जाना जाता है‚ जिसकी कोई उप-प्रजाति मान्यता प्राप्त नहीं है। जीनस नाम टैडोर्ना (Tadorna) फ्रांसीसी (French) सामान्य शेल्डक “टैडोर्न” (“tadorne”) से आया है और मूल रूप से एक सेल्टिक (Celtic) शब्द से निकला है‚ जिसका अर्थ है “चितकबरा जलपक्षी”। इसका अंग्रेजी नाम “शेल्ड डक” (“sheld duck”)‚ 1700 के आसपास का है और इसका अर्थ भी “चितकबरा जलपक्षी” ही है। फेरुगिनिया (ferruginea) प्रजाति का नाम “रस्टी” (“rusty”) के लिए लैटिन (Latin) है और यह पक्षी के पर या पंख के रंग को संदर्भित करता है। कश्मीर‚ लद्दाख और नेपाल में बर्फबारी जैसे कारकों के चलते रामनगर के कोसी बैराज में प्रवासी “ब्राह्मणी बतखों” का आना शुरू हो जाता है। जिनके कारण यात्रियों की संख्या में और इजाफा होने की उम्मीद होती है। पश्चिमी वृत्त के वन संरक्षक पराग मधुकर ढाकाटे (Parag Madhukar Dhakate) बताते हैं‚ कि आमतौर पर नवंबर में “रूडी शेल्डक” यहां पहुंचने लगते हैं और फरवरी के अंत तक अपनी वापसी की उड़ानें शुरू कर देते हैं। ब्राह्मणी बत्तखों के अलावा‚ अन्य प्रवासी पक्षी जिनमें बार-हेडेड गीज़ (bar-headed geese)‚ रेड क्रेस्टेड पोचार्ड (red crested pochard)‚ गडवाल (gadwall)‚ कॉमन पोचार्ड (common pochard)‚ मल्लार्ड (mallard)‚ विजन (wigeon)‚ शॉवेलर (shoveller)‚ कॉमन टील (common teal) और टुफ्टेड डक (tufted duck) भी शामिल हैं‚ जो सर्दियों के दौरान उत्तराखंड आते हैं। प्रवासी पक्षियों के आगमन के समय से लेकर उनके प्रस्थान के समय तक विभाग उन पर नजर रखता है। पराग बताते हैं कि लोगों को अवैध शिकार से बचाने के लिए भी विभाग नजर रखता है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मणी बत्तख वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act) के तहत संरक्षित है। वन्यजीव फोटोग्राफर दीप रजवार बताते हैं कि “रूडी शेल्डक” को चकवा (Chakwa)‚ नाग (Nag)‚ लोहित (Lohit)‚ चक्रवत (Chakravat)‚ केसर (Kesar) और अन्य विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। ये वे पक्षी हैं जिनका उल्लेख अक्सर कवि अपने छंदों में भी करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने भी “रामचरितमानस” (“Ramcharitmanas”) में इनका उल्लेख किया है। वे जोड़े में रहते हैं और ऐसा माना जाता है कि वे जीवन भर के लिए एक जोड़ी बनाए रखते हैं। वे शर्मीले तथा काफी सतर्क पक्षी हैं‚ थोड़ी सी भी गड़बड़ी या खतरे के संकेत होने पर उड़ जाते हैं तथा नीचे की स्थिति की निगरानी के लिए समूह में उड़ते हैं‚ और केवल तभी लौटते हैं जब वे इसे सुरक्षित समझते हैं। यह सर्वाहारी पक्षी घास‚ पौधों के अंकुर‚ जड़े‚ कलियां‚ पत्तियां‚ बीज‚ तने‚ अनाज‚ घास‚ पानी के पौधे और स्थलीय और जलीय अकशेरूकीय पर आहार करते हैं। रूडी शेल्डक को प्यार का प्रतीक भी माना जाता है‚ प्राचीन किंवदंती के अनुसार दो लोगों को प्यार हो गया लेकिन देवताओं ने उनके गठबंधन को मंजूरी नहीं दी और उन्हें रूडी शेल्डक में बदल दिया और उन्हें एक नदी के विपरीत किनारे पर रख दिया‚ एक अभिशाप के साथ कि वे कभी नहीं मिल सके। अलग होने के बाद नर मादा को अपने आम तौर पर शोकपूर्ण आवाज “आवान” में पुकारता है‚ जिसका अर्थ है “क्या मैं आ सकता हूं?” लेकिन मादा देवताओं से डरती है‚ जो समान रूप से शोकपूर्ण आवाज में जवाब देती है “ना आवेन” जिसका अर्थ है “मत आओ”‚ इसलिए वे अपना शेष जीवन नदी के विपरीत किनारे से एक-दूसरे को पुकारते हुए मातम करते हुए बिताते हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3z6O45L
https://bit.ly/32D5afn
https://bit.ly/3qw7WeE
https://bit.ly/3FHGXDi

चित्र संदर्भ   
1.रूडी शेल्डक (Ruddy Shelduck) को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2.रूडी शेल्डक‚ जोड़े को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3.नाविक और रूडी शेल्डक‚ को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. रूडी शेल्डक‚ जोड़े को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)



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