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अवध नवाब का आकर्षक सिंहासन लंदन के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय में है प्रदर्शित

लखनऊ

 10-12-2021 10:33 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

अवध के नवाब की आकर्षक “सिंहासन कुर्सी”‚ जो उत्तर भारत में लखनऊ के महल की वस्तुओं का एक दुर्लभ तथा अवशिष्ट उदाहरण है‚ अब लंदन (London) के विक्टोरिया एंड अल्बर्ट संग्रहालय (Victoria & Albert Museum)‚ में प्रदर्शित है। यह संग्रहालय एप्लाइड आर्ट्स (applied arts)‚ सजावटी कला (decorative arts) और डिजाइन (design) का‚ दुनिया का सबसे बड़ा संग्रहालय है‚ जिसमें 2.27 मिलियन से अधिक वस्तुओं का स्थायी संग्रह है। इसकी स्थापना 1852 में हुई थी और इसका नाम महारानी विक्टोरिया (Queen Victoria) और और उनके पुत्र राजकुमार अल्बर्ट (Prince Albert) के नाम पर रखा गया था‚ इसे वी एंड ए (V&A) के रूप में भी जाना जाता है। “सिंहासन कुर्सी”‚ नवाब गाजी-उद-दीन हैदर शाह (Ghazi-ud-Din Haidar Shah) द्वारा भारत के गवर्नर-जनरल‚ विलियम एमहर्स्ट (William Amherst) को दिया गया एक उपहार था। नवाब ने यह कुर्सी 1827 में‚ एमहर्स्ट की लखनऊ यात्रा के दौरान उन्हें दी थी‚ हलांकि यह एक भारतीय शासक द्वारा उपयोग किए जाने के लिए बनाई गई थी। गाजी-उद-दीन हैदर शाह‚ नवाब सआदत अली खान (Saadat Ali Khan) के तीसरे बेटे थे‚ जो अपने पिता की मृत्यु के बाद 11 जुलाई 1814 से 19 अक्टूबर 1818 तक‚ अवध के अंतिम नवाब वज़ीर रहे‚ और 19 अक्टूबर 1818 से 19 अक्टूबर 1827 तक अवध के पहले राजा थे। विलियम एमहर्स्ट‚ एक ब्रिटिश राजनयिक और औपनिवेशिक प्रशासक‚ तथा 1823 और 1828 के बीच भारत के गवर्नर-जनरल थे। “लखनऊ सिंहासन कुर्सी” (“Lucknow Throne Chair”) के रूप में जानी जाने वाली यह कुर्सी लगभग 1820 की है। संभावना है कि अवध राजसभा में एक प्रसिद्ध स्कॉटिश कलाकार‚ रॉबर्ट होम (Robert Home) ने इसे नवाब के लिए डिजाइन किया था। रॉबर्ट होम‚ एक ब्रिटिश ऑइल पोर्ट्रेट चित्रकार (British oil portrait painter) थे‚ जिन्होंने 1791 में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की। अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक दृश्यों और परिदृश्यों को भी चित्रित किया। वह लखनऊ में 13 साल तक दरबारी चित्रकार थे‚ जहाँ उन्होंने राजचिह्न के साथ-साथ शाही गाड़ियां‚ हावड़ा‚ नाव और महल की साज-सज्जा का सामान भी तैयार किया। वो यूरोपीय (European) शैली का पालन करते थे‚ लेकिन इस कुर्सी की तरह‚ वे अक्सर लखनऊ के शासकों का “जुड़वां-मछली” वाला बैज धारण करते थे। “सिंहासन कुर्सी” की विशिष्ट ब्रिटिश बनावट को लकड़ी‚ गिल्ट पीतल (gilt brass)‚ गिल्ट गेसो माउंट (gilt gesso mounts)‚ अलंकृति चित्रों और नीले मखमली असबाब के साथ लखनऊ के शासकों के “जुड़वां-मछली” बैज से सजाया गया है। इसकी चौड़ाई 61 सेमी‚ गहराई 65.5 सेमी तथा ऊंचाई 90 सेमी है। इसके पैरों को पंजे की आकृति दी गई है‚ तथा तीन नक्काशीदार मछलियाँ प्रत्येक भुजा को सहारा देती हैं‚ और पीछे की सीट को खंजर के दोनों ओर मछली की एक जोड़ी द्वारा समर्थित किया गया है। इसे पत्तेदार रूपांकनों‚ पुट्टी‚ हंसों और रोसेट की आकृति में गिल्ट मेटल माउंट (gilt metal mounts) से सजाया गया है। इसमें सीट कुशन‚ आर्म कुशन और गोल्ड ट्रिम के साथ गहरे नीले रंग का बैक पैड भी है। ये सिंहासन कुर्सी‚ मिस्र के पुनरुद्धार के यूरोपीय प्रतिकृति पर आधारित है। रॉबर्ट होम ने अपनी कला में भारतीय रूपांकनों और विदेशी प्रभावों को मिलाया‚ शैलियों का यह मेल आसान नहीं होता है‚ लेकिन यह हमेशा मनोरंजक और अक्सर प्रेरक होता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण‚ स्वयं रॉबर्ट होम के बेवजह बिना जांचे- परखे काम हैं‚ जिसमें वे सफल हुए। एक निडर यॉर्कशायर (Yorkshire) प्रवासी के रूप में होम‚ जिसने जर्मन (German) में जन्मी ब्रिटिश चित्रकार एंजेलिका कॉफ़मैन (Angelica Kauffmann) के साथ अध्ययन किया और अंततः भारतीय उपमहाद्वीप पर प्रसिद्धि और भाग्य पाया‚ वास्तव में एक सिटर ने उन्हें “एशिया में सर्वश्रेष्ठ कलाकार” (“the best artist in Asia”) के रूप में वर्णित किया है। रॉबर्ट होम ने भारत आने से पहले 1783 से 1789 तक डबलिन (Dublin) और लंदन में भी काम किया। 5 फरवरी 1791 को‚ होम को तीसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध (Anglo-Mysore War) में लॉर्ड कॉर्नवालिस (Lord Cornwallis) की सेना का अनुसरण करने की अनुमति दी गई‚ क्योंकि यह बैंगलोर की ओर बढ़ गया था। होम जब दक्षिण भारत में थे‚ तो उन्होंने अपने कुछ जाने-माने चित्रों को चित्रित किया‚ जैसे: ‘द होस्टेज प्रिंसेस लीविंग होम विद द वकील’ (The Hostage Princes leaving home with the Vakil)‚ ‘गुलाम अली’ (Ghulam Ali) और ‘लॉर्ड कॉर्नवालिस रिसीविंग टीपू साहिब सन’ (Lord Cornwallis Receiving Tipu Sahib's Sons)। नवंबर 1792 में होम‚ कलाकार थॉमस डेनियल (Thomas Daniell) और विलियम डेनियल (William Daniell) के संपर्क में आये‚ जिन्होंने उन्हें पेंटिंग परिदृश्य जारी रखने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद उन्होंने 1793 में जनवरी से फरवरी के बीच महाबलीपुरम का दौरा किया‚ जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने दो पेंटिंग चित्रित की‚ जिसका शीर्षक ‘महाबलीपुरम के खंडहर’ (Ruins of Mahabalipuram) है। ये पेंटिंग अब‚ द एशियाटिक सोसाइटी‚ कोलकाता (The Asiatic Society‚ Kolkata) के संग्रह में हैं। 1795 में होम‚ कलकत्ता पहुंचे और वहां एक स्थापित कलाकार के रूप में अपना काम जारी रखा। वह 1804 में कुछ समय के लिए सोसायटी के सचिव और पहले पुस्तकालय प्रभारी भी थे‚ जहां उन्होंने अपना छोटा लेकिन मूल्यवान कला संग्रह दान किया। 1814 में वे लखनऊ आए‚ जहां उन्होंने नवाब गाजी-उद-दीन हैदर के दरबारी चित्रकार के रूप में काम किया। 1827 में उन्होंने कानपुर की यात्रा की‚ जहाँ 1834 में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनकी पुस्तक “सेलेक्ट व्यूज इन मैसूर‚ द कंट्री ऑफ टीपू सुल्तान” (Select Views in Mysore‚ the Country of Tippoo Sultan) 1794 में‚ लंदन और मद्रास में प्रकाशित हुई थी‚ और कलकत्ता में उन्होंने भारतीय स्तनीयजन्तु‚ पक्षियों और सरीसृपों के 215 जलवर्णचित्र बनाए‚ जिनमें से कुछ पर उन्होंने ऑइल वर्क भी किया।

संदर्भ:
https://bit.ly/3EwZf9G
https://bit.ly/3ouP8N0
https://bit.ly/3dqK7ir
https://bit.ly/3pyrCy6
https://bit.ly/3395EKw
https://bit.ly/3oxj9fc
https://bit.ly/3y4YlPy

चित्र संदर्भ
1. “सिंहासन कुर्सी”‚ नवाब गाजी-उद-दीन हैदर शाह (Ghazi-ud-Din Haidar Shah) द्वारा भारत के गवर्नर-जनरल‚ विलियम एमहर्स्ट (William Amherst) को दिया गया एक उपहार था। जिसको दर्शाता एक चित्रण (collections.vam.ac.uk)
2. नवाब गाजी-उद-दीन हैदर शाह को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नवाब गाजी-उद-दीन हैदर शाह, अक्सर लखनऊ के शासकों का “जुड़वां-मछली” वाला बैज धारण करते थे। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रॉबर्ट होम‚ एक ब्रिटिश ऑइल पोर्ट्रेट चित्रकार (British oil portrait painter) थे‚ जिन्होंने 1791 में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की, जिनको दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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