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अवध, भारत के इतिहास में एक विशेष स्थान रखता है, मुख्य रूप से अपनी संस्कृति और अन्य
चीजों के साथ वेशभूषा के कारण भी। नवाबों के युग, मुख्य रूप से 1722 से 1856 के दौरान के
समय ने यहां फैशन के विकास को विशेष रूप से प्रभावित किया। खैराबाद, जो कि भारत के
उत्तर प्रदेश राज्य के सीतापुर जिले का एक शहर है, का इस विकास में महत्वपूर्ण योगदान है।
खैराबाद एक ऐतिहासिक शहर है जिसे खैराबाद अवध के नाम से भी जाना जाता है। मुगल काल
में यह विद्या का प्रसिद्ध स्थान रहा है। कहा जाता है कि इस शहर की स्थापना 11वीं शताब्दी
की शुरुआत में महाराजा चिता पासी ने की थी। बाद में इसे एक कायस्थ परिवार ने अपने कब्जे
में ले लिया। खैराबाद ने न केवल अवध नवाबी सिलाई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,
बल्कि आधुनिक लखनऊ के पास एक छोटे से शहर में कुछ बेहतरीन वास्तुकला के निर्माण में
भी योगदान दिया।
250 साल पहले जिस वास्तुकला का निर्माण किया गया था, उसकी तुलना वर्तमान के लखनऊ
के साथ नहीं की जा सकती है, इसलिए अतीत के दरज़ी की ऐतिहासिक कड़ी और महत्व ध्यान
देने योग्य है।औपनिवेशिक युग के दौरान नसीरुद्दीन हैदर ने अवध पर शासन किया और वह
यूरोपीय जीवन शैली का अत्यधिक शौकीन था। उसके परिधान में अक्सर पश्चिमी शैली के
परिधान शामिल हुआ करते थे। लेकिन पूरे राज्य में केवल एक ही व्यक्ति ऐसा था, जो नवाब
के इस शौक को पूरा करने में मदद कर सकता था, और वह था खैराबाद का मक्का दर्जी।
मक्का दरज़ी ने राजा के पांच अंग्रेजी मित्रों से यूरोपीय डिजाइन के वस्त्र सिलने की कला सीखी
थी। चूंकि नवाब को यूरोपीय डिजाइन के वस्त्र पहनने का अत्यंत शौक था, इसलिए वह जानता
था कि वह नवाब के लिए कितना मूल्यवान है। मक्का दरज़ी ने अपने द्वारा सिले गए कपड़ों के
लिए नवाब से एक मोटी रकम प्राप्त की। यहां तक कि उसने अपने मालिक के वस्त्रों और सूटों
के लिए जो आवश्यक शाही अलंकरण अपनी इच्छा से बनाए, उनके लिए भी एक मोटी रकम
हासिल की। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वह नवाब की कल्पना को साकार कर रहा था।
दरज़ी को जो रकम नवाब द्वारा दी जा रही थी, उसे कई लोगों ने जबरनवसूली भी कहा, लेकिन
नवाब नसीरुद्दीन हैदर को अपने दरज़ी को भुगतान करने में कोई दिक्कत नहीं थी। क्यों कि
वह अपने परिधानों की अलमारी को ऐसा बनाना चाहता था, कि वह यूरोपीय समाज के क्रेम-डे-
ला-क्रेम (Crème-de-la-crème) के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके।किंतु कुछ समय बाद ही मक्का
दरज़ी के शक्तिशाली दुश्मन बन गए जो उसकी उच्च स्थिति से ईर्ष्या करते थे। उनका मानना
था कि, वह सिर्फ एक दरज़ी है, तथा इसमें कोई बड़ी बात नहीं कि वह फ्रॉक कोट, वेस्ट कोट,
जाबोट (Jabot) शर्ट और फैशनेबल ट्राउजर सिल सकता था।
जैसे ही उसके खिलाफ आक्रोश बढ़ा, मक्कादरज़ी को अंततः शाही दरबार छोड़ने के लिए कहा
गया और वह अपने शहर, खैराबाद लौट आए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वे
सेवानिवृत्त हो चुके थे। इसके बाद वे खैराबाद में भव्य स्मारकों के निर्माण में व्यस्त हो गए।
उन्होंने अवधी वास्तुकला के कुछ बेहतरीन उदाहरणों का निर्माण किया। इन बेहतरीन
वास्तुकलाओं में खैराबाद का इमामबाड़ा, कदम रसूल, मस्जिदआदि शामिल हैं।जो कलाकारी उनके
द्वारा सिले हुए कपड़ों में दिखाई देती थी,वही उनके द्वारा बनाए गए स्मारकों में भी दिखाई
दी।मक्का दरजी की कपास और लिनन की कृतियों की तरह, उनके द्वारा बनाए गए स्मारक भी
शानदार थे। मक्का दरज़ी का मकबरा,एक इमामबाड़ा,मस्जिद और क़दम रसूल परिसर जिसे
1830 के दशक में नासिर-उद-दीन हैदर के शासनकाल के दौरान बनाया गया था।उपाख्यानों के
अनुसार,इमामबाड़े का निर्माण दरज़ी ने राजा से जो यूरोपीय शैली के उत्तम वस्त्रों की सिलाई के
लिए धन प्राप्त किया था,उससे किया था - ब्रिटिश राज के दौरान, अवधी कारीगरी को यूरोपीय
और चीनी प्रभावों के साथ मिला दिया गया था!
विस्तृत कढ़ाई और फूलों के रूपांकनों की समृद्ध सीमाएँ शुद्ध जरदोज़ी में हुआ करती थीं और
उनकी बहुत मांग थी। मोरपंखी (मोर का पंख) की आकृति बाद के वर्षों में अपनाई गई। इसे
अक्सर ब्लाउज में जोड़ा जाता था जो कपास, रेशम, साटन जॉर्जेट और क्रेप सहित रंगों और
कपड़ों की एक श्रृंखला में बने होते थे। खैराबाद में मौजूद इन कीमती विरासत स्मारकों की
वर्तमान स्थिति यह है कि वे अब ढहने की कगार पर हैं। हालांकि, इतिहास की इन अमूल्य
चीजों की बहाली और संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए वास्तुकारों, वकीलों, इतिहासकारों
और विरासत प्रेमियों की एक विशेषज्ञ टीम बनाई जानी चाहिए, ताकि इनके संरक्षण के लिए
योजना बनाई जा सके तथा समय पर कार्रवाई के साथ इसे बचाया जा सके।
संदर्भ:
https://bit.ly/3dg2PZY
https://bit.ly/3GgPcpB
https://bit.ly/3xUwNvX
https://bit.ly/3djPMGT
https://bit.ly/3lvHyQf
चित्र संदर्भ
1. खैराबाद इमामबाड़े को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. नसीरुद्दीन हैदर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. इमामबाड़ा (मक्का जमींदार) सामने के गेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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